झारखंड में नियोजन नीति का झुनझुना, आखिर कब तक गलत नीतियों का शिकार होते रहेंगे युवा

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Published : Dec 22, 2022, 5:35 PM IST

Updated : Dec 22, 2022, 7:19 PM IST

Planning policy canceled by High Court Politics in Jharkhand

झारखंड में इन दिनों नियोजन नीति को लेकर सड़क से सदन तक बवाल हो रहा है (Politics on planning policy). झारखंड हाई कोर्ट से नियोजन नीति रद्द होने के बाद से एक ओर जहां विपक्ष सरकार पर हमलावर है वहीं सरकार बचाव की मुद्रा में है. इधर युवा भी इसे लेकर सड़क पर हैं.

मंत्री आलमगीर आलम और विधायक बिरंची नारायण का बयान

रांची: राज्य गठन के बाद से झारखंड के युवाओं को नियोजन नीति का झुनझुना थमाया जाता रहा है. इस बार भी कुछ वैसा ही हुआ है. हाई कोर्ट के फैसले के बाद वर्तमान हेमंत सरकार के द्वारा अगस्त 2021 में बनाई गई नियोजन नीति रद्द हो गई है (Planning policy canceled by High Court). नियोजन नीति रद्द होते ही राज्य में बबाल मचा हुआ है (Politics on planning policy). सदन से लेकर सड़क तक में सरकार की फजीहत हो रही है. इन सबके बीच सरकार जहां आश्वासन की झड़ी लगाकर आक्रोशित छात्रों के आंदोलन को शांत करने में जुटी है वहीं सदन के अंदर और बाहर विपक्ष इस मुद्दे को जिंदा रखने में जुटा है.

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संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम भी मानते हैं कि समय समय पर बनी नियोजन नीति में त्रुटि होने की वजह से इसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ा है. सरकार वर्तमान परिस्थिति में एक बार फिर हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगायेगी जिससे यहां नियुक्ति का रास्ता साफ हो सके. इधर बीजेपी विधायक बिरंची नारायण ने हेमंत सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि एक बार फिर सरकार ने वही गलती की है जो पहले होते रहे हैं. यहां के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता रहा है.

उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले ने सरकार की पोल खोल कर रख दी है. जिस समय नियोजन नीति बनाई जा रही थी उस समय भी भारतीय जनता पार्टी सरकार से इसकी खामियों को दूर करने का आग्रह किया था. मगर सरकार ने अनसुना कर दिया. आज झारखंड के छात्र सड़क पर हैं और सारी नियुक्ति प्रक्रिया ठप पड़ गई है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट जाने के बजाए यहीं पर ऐसी नियोजन नीति बनाएं जिससे राज्य में नियुक्ति प्रक्रिया सुचारू ढंग से चल सके.

अब तक तीन बार बन चूकी है नियोजन नीति: झारखंड में स्थानीय नीति और नियोजन नीति को लेकर विवाद होता रहा है. राज्य गठन के बाद से अब तक तीन बार नियोजन नीति बन चुकी है. जब जिसकी सरकारें नियोजन नीति का मुद्दा छाया रहा. राज्य बनने के बाद सर्वप्रथम बाबूलाल नेतृत्व में बनी सरकार ने स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर राज्य में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की. स्थानीय और नियोजन नीति में खामियों की वजह से झारखंड हाई कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. फिर 2016 में रघुवर दास के नेतृत्व में राज्य में बनी सरकार ने नियोजन नीति बनाया जिसके तहत राज्य के 13 जिलों को अधिसूचित क्षेत्र और 11 जिलों को सामान्य श्रेणी में बांटकर जिलास्तर पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई. यह नियोजन नीति भी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार रद्द कर दिया गया.

हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य में बनी यूपीए की सरकार दें रघुवर दास के समय बने नियोजन नीति को खारिज करते हुए 2021 में एक नई नियोजन नीति बनाया जिसके तहत झारखंड से मैट्रिक-इंटर पास की अनिवार्यता के अलावे हिंदी और अंग्रेजी को किनारे करते हुए प्रत्येक जिले में उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई. जिसके खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. हाई कोर्ट से नियोजन नीति रद्द किये जाने के बाद जेएसएससी की विभिन्न परीक्षा लटक गई है. जिससे छात्र आक्रोशित हैं और आंदोलन पर हैं. बहरहाल एक बार फिर राज्य में नियोजन नीति का मुद्दा गरम है और सरकार बीच का रास्ता निकालने में जुटी है.

Last Updated :Dec 22, 2022, 7:19 PM IST
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