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दम तोड़ रही है झारखंड की शिक्षा व्यवस्था! सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं हजारों स्कूल, गांवों में उठने लगी हक की आवाज

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Published : Apr 17, 2023, 6:15 PM IST

झारखंड में तकरीबन सात हजार ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जहां सिर्फ एक ही टीचर हैं. सरकार की इस व्यवस्था को लेकर अब ग्रामीण क्षेत्रों के अभिभावक भी आवाज उठाने लगे हैं. इन लोगों की मांग है कि एक स्कूल में कम से कम दो टीचर होने चाहिए और एक दिन में कम से कम चार घंटे पढ़ाई होनी चाहिए.

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रांची: गरीबों के बच्चे पढ़ेंगे नहीं तो बढ़ेंगे कैसे. कैसे अपने हक के लिए आवाज उठा पाएंगे. बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें, इसके लिए मिड डे मील की व्यवस्था की जाती है. फिर भी ढाक के तीन पात की स्थिति बनी हुई है. एकीकृत जिला सूचना प्रणाली के 2021-22 के डाटा पर नजर डालेंगे तो आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि इस राज्य में 6,904 ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जो एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा 6,388 प्राथमिक स्कूल हैं. राज्य में कुल सरकारी स्कूलों की संख्या करीब 35,438 है. इसमें 21,283 प्राथमिक स्कूल हैं. उसमें 30 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक मास्टर जी है.

ये भी पढ़ें- Latehar News: एक शिक्षक के भरोसे स्कूल! अर्थशास्त्री प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने जताई चिंता

यह व्यवस्था बता रही है कि झारखंड में किस तरह से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 का खुला उल्लंघन हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक एकल-शिक्षक स्कूलों में नामांकित छात्रों के अनुपात के मामले में 22 अन्य राज्यों में झारखंड सबसे खराब स्थिति में है. इस राज्य का हर पांचवा छात्र ऐसे सरकारी स्कूल में पढ़ता है, जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं. अच्छी बात यह है कि शिक्षा के अधिकार को लेकर गांवों में लोग जगने लगे हैं.

लातेहार जैसे नक्सल प्रभावित जिला के गारू प्रखंड के अभिभावकों ने प्रखंड अधिकारियों को स्कूलों की समस्या से अवगत कराया है. अब वह अपनी बात मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंचाना चाह रहे हैं. संयुक्त ग्राम सभा मंच और ज्ञान विज्ञान समिति की ओर से अभियान शुरू हुआ है. रांची में अपनी बातों को सीएम तक पहुंचाने के मकसद से आई लातेहार की ग्रामीण महिला अमिता देवी ने बताया कि मैं तो सिर्फ पांचवी तक पढ़ीं हूं. मैं नहीं चाहती कि मेरे गांव-घर के बच्चे अनपढ़ बन जाएं. उन्हें शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए.

एकल शिक्षक स्कूलों का चौंकाने वाला डाटा: एक तरह झारखंड सरकार दावा कर रही है कि वह सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के तर्ज पर विकसित करेगी. इस दिशा मॉडल स्कूल को लेकर काम भी किए जा रहा है. लेकिन दुर्भाग्य है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद में ही दीमक लगा हुआ है. राज्य का कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां एकल शिक्षक स्कूल नहीं है. इस मामले में सत्ताधारी दल झामुमो का गढ़ कहे जाने वाले दुमका टॉप पर है. यहां 699 ऐसे स्कूल हैं जो सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. पश्चिमी सिंहभूम में भी झामुमो का बोलबाला है. लेकिन यहां 581 स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के जिम्मे हैं. इस मामले में रांची तीसरे नंबर पर है. यहां 520 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक हैं. इसके अलावा गिरिडीह में 518, साहिबगंज में 419, पलामू में 412, गोड्डा में 407, देवघर में 375, गढ़वा में 312, बोकारो में 276, सराईकेला-खरसांवा में 269, चतरा में 258, धनबाद में 252, लातेहार में 249, पाकुड़ में 222, हजारीबाग में 175, पूर्वी सिंहभूम में 173, गुमला में 171, खूंटी में 153, सिमडेगा में 115, लोहरदगा में 106, कोडरमा में 94, जामताड़ा में 75 और रामगढ़ में 73 ऐसे स्कूल हैं.

लातेहार के गारू प्रखंड के गोताग, लाटू और जयगिर जैसे गांव में मौजूद स्कूलों में मास्टर जी पूर्णिमा के चांद की तरह कभी कभार दिखते हैं. ग्रामीण चाहते हैं कि हर स्कूल में कम से कम दो शिक्षक हों. हर दिन कम से कम चार घंटा पढ़ाई हो. शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन हो. शिकायतों पर फौरन एक्शन लिया जाए. सप्ताह में छह बार मिड डे मील के साथ अंडा दिया जाए.

ग्रामीणों का कहना है कि जगरनाथ महतो को असमय निधन के बाद से राज्य में शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी किसी को नहीं दी गई है. उनका निधन 6 अप्रैल को हुआ था. तब उन्होंने भरोसा दिलाया था कि वह इस समस्या को जल्द दूर करेंगे. लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं हैं. इस गंभीर मसले पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की जड़ और खोखली जाएगी. बच्चों का व्यवस्था से भरोसा उठ जाएगा. इसके बाद क्या होगा यह बताने की जरूरत नहीं.

रांची: गरीबों के बच्चे पढ़ेंगे नहीं तो बढ़ेंगे कैसे. कैसे अपने हक के लिए आवाज उठा पाएंगे. बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें, इसके लिए मिड डे मील की व्यवस्था की जाती है. फिर भी ढाक के तीन पात की स्थिति बनी हुई है. एकीकृत जिला सूचना प्रणाली के 2021-22 के डाटा पर नजर डालेंगे तो आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि इस राज्य में 6,904 ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जो एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा 6,388 प्राथमिक स्कूल हैं. राज्य में कुल सरकारी स्कूलों की संख्या करीब 35,438 है. इसमें 21,283 प्राथमिक स्कूल हैं. उसमें 30 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक मास्टर जी है.

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यह व्यवस्था बता रही है कि झारखंड में किस तरह से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 का खुला उल्लंघन हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक एकल-शिक्षक स्कूलों में नामांकित छात्रों के अनुपात के मामले में 22 अन्य राज्यों में झारखंड सबसे खराब स्थिति में है. इस राज्य का हर पांचवा छात्र ऐसे सरकारी स्कूल में पढ़ता है, जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं. अच्छी बात यह है कि शिक्षा के अधिकार को लेकर गांवों में लोग जगने लगे हैं.

लातेहार जैसे नक्सल प्रभावित जिला के गारू प्रखंड के अभिभावकों ने प्रखंड अधिकारियों को स्कूलों की समस्या से अवगत कराया है. अब वह अपनी बात मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंचाना चाह रहे हैं. संयुक्त ग्राम सभा मंच और ज्ञान विज्ञान समिति की ओर से अभियान शुरू हुआ है. रांची में अपनी बातों को सीएम तक पहुंचाने के मकसद से आई लातेहार की ग्रामीण महिला अमिता देवी ने बताया कि मैं तो सिर्फ पांचवी तक पढ़ीं हूं. मैं नहीं चाहती कि मेरे गांव-घर के बच्चे अनपढ़ बन जाएं. उन्हें शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए.

एकल शिक्षक स्कूलों का चौंकाने वाला डाटा: एक तरह झारखंड सरकार दावा कर रही है कि वह सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों के तर्ज पर विकसित करेगी. इस दिशा मॉडल स्कूल को लेकर काम भी किए जा रहा है. लेकिन दुर्भाग्य है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद में ही दीमक लगा हुआ है. राज्य का कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां एकल शिक्षक स्कूल नहीं है. इस मामले में सत्ताधारी दल झामुमो का गढ़ कहे जाने वाले दुमका टॉप पर है. यहां 699 ऐसे स्कूल हैं जो सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. पश्चिमी सिंहभूम में भी झामुमो का बोलबाला है. लेकिन यहां 581 स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के जिम्मे हैं. इस मामले में रांची तीसरे नंबर पर है. यहां 520 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक हैं. इसके अलावा गिरिडीह में 518, साहिबगंज में 419, पलामू में 412, गोड्डा में 407, देवघर में 375, गढ़वा में 312, बोकारो में 276, सराईकेला-खरसांवा में 269, चतरा में 258, धनबाद में 252, लातेहार में 249, पाकुड़ में 222, हजारीबाग में 175, पूर्वी सिंहभूम में 173, गुमला में 171, खूंटी में 153, सिमडेगा में 115, लोहरदगा में 106, कोडरमा में 94, जामताड़ा में 75 और रामगढ़ में 73 ऐसे स्कूल हैं.

लातेहार के गारू प्रखंड के गोताग, लाटू और जयगिर जैसे गांव में मौजूद स्कूलों में मास्टर जी पूर्णिमा के चांद की तरह कभी कभार दिखते हैं. ग्रामीण चाहते हैं कि हर स्कूल में कम से कम दो शिक्षक हों. हर दिन कम से कम चार घंटा पढ़ाई हो. शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन हो. शिकायतों पर फौरन एक्शन लिया जाए. सप्ताह में छह बार मिड डे मील के साथ अंडा दिया जाए.

ग्रामीणों का कहना है कि जगरनाथ महतो को असमय निधन के बाद से राज्य में शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी किसी को नहीं दी गई है. उनका निधन 6 अप्रैल को हुआ था. तब उन्होंने भरोसा दिलाया था कि वह इस समस्या को जल्द दूर करेंगे. लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं हैं. इस गंभीर मसले पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था की जड़ और खोखली जाएगी. बच्चों का व्यवस्था से भरोसा उठ जाएगा. इसके बाद क्या होगा यह बताने की जरूरत नहीं.

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