मिलिए झारखंड के तिरंगा बाबा से, समर्पित कर दिया है जीवन
Updated on: Jan 25, 2023, 6:14 PM IST

मिलिए झारखंड के तिरंगा बाबा से, समर्पित कर दिया है जीवन
Updated on: Jan 25, 2023, 6:14 PM IST
रांची के हिंदपीढ़ी में एक घर है. यह घर हजारों घर जैसा ही है, लेकिन एक चीज जो इसे दूसरों से अलग करती है, वह है तिरंगे के प्रति समर्पण. समर्पण का भाव इस कदर है कि हर साल एक लाख से ज्यादा झंडा इस घर से बनता है.
रांचीः गणतंत्र दिवस की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. रांची के हिंदपीढ़ी के एक घर में तिरंगा बनाया जा रहा है. घर का हर सदस्य तिरंगा निर्माण में जुटा हुआ है. सबका नेतृत्व कर रहे हैं 80 से ज्यादा वसंत देख चुके अब्दुल सत्तार. उनके बनाए झंडे पूरे झारखंड में शान से लहराते हैं. हर साल एक लाख से ज्यादा तिरंगा अब्दुल सत्तार बनाते हैं.
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तिरंगे के नीचे ही हर भारतीय का सम्मान, इसलिए तिरंगा निर्माण को ही अपना लियाः अब्दुल सत्तार बताते हैं कि बात 1980 के करीब की रही होगी. जब वह टेलरिंग के साथ साथ छोटे स्तर पर झंडा बनाते थे. तब डीसी कार्यालय में आईएएस अधिकारी सजल चक्रवर्ती के सामने एक व्यक्ति ने उनका परिचय कराया तिरंगा बनाने वाले अब्दुल सत्तार के रूप में. इसके बाद उन्हें लगा कि तिरंगा बनाने के काम में सम्मान बहुत है, फिर तो तिरंगा और सरना झंडा बनाने में ही रम गए.
जब तक जिंदा हैं तिरंगा बनाते रहेंगेः हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के लिए तिरंगा झंडा बनाने का काम चार महीने पहले ही शुरू कर देते हैं. बचे चार महीने में वह सरना झंडा बनाते हैं. 82-83 साल के हो चुके अब्दुल सत्तार कहते हैं कि जब तक जिंदा हूं तब तक तिरंगा बनाता रहूंगा. क्योंकि यही हम सभी भारतीय की पहचान है. अब्दुल सत्तार कहते हैं कि जब हम हज के लिए मक्का मदीना गए थे तो वहां हमारी पहचान यही तिरंगा होता है. अब्दुल सत्तार कहते हैं कि हर साल करीब एक लाख छोटे-बड़े झंडे वह बनाते हैं और राज्यभर में उनका बनाया तिरंगा बड़े शान से फहरता है.
दूसरे देश से रांची आये अतिथि से नहीं लेते झंडे के पैसेः अब्दुल सत्तार कहते हैं कि तिरंगा हमारे देश की शान है. कोई भी विदेशी अतिथि राची आता है और सम्मान के साथ उनसे तिरंगा लेकर अपने देश लौटना चाहता है तो वह उन्हें तिरंगा निशुल्क देते हैं. यह भी बताते हैं कि तिरंगा हमारी शान है और कैसे इसे पूरे सम्मान के साथ रखना होता है. अब्दुल सत्तार ईटीवी भारत से कहते हैं कि हाल ही में बेल्जियम से आई महिला, उनके हिंदपीढ़ी आवास पर आयी थी और तिरंगे की मांग की तब उन्होंने उन्हें सम्मान के साथ तिरंगा दिया. वह जब इसका भुगतान करने लगीं तो उन्होंने हाथ जोड़ लिए.
दूसरे प्रदेश से मंगाते हैं खादी का कपड़ाः अब्दुल सत्तार कहते हैं चार दशक से भी अधिक समय से वह लगातार तिरंगा झंडा बना रहे हैं. वैसे तो तिरंगे की कोई कीमत हो ही नहीं सकती, फिर भी उनके बनाए तिरंगे 5 रुपये से 900रुपये तक का होता है. इसमें लागत और सिर्फ मजदूरी होती है कोई लाभ नहीं कमाते.
जब झंडे का अपमान होते देखते हैं तो दिल दुखी होता हैः अब्दुल सत्तार और उनकी पत्नी फातिमा बीबी कहती हैं कि तिरंगा देश की शान है और इसे हमेशा सम्मान के साथ फहराते हुए ही रहना चाहिए. हर घर तिरंगा कार्यक्रम का जिक्र करते हुए अब्दुल सत्तार कहते हैं कि वह एक बढ़िया आयोजन था, लेकिन उसके बाद लोगों ने ध्वज के सम्मान का ख्याल नहीं रखा. किसी के घर के ऊपर अधझुके, गंदे झंडे, रास्ते में या कचड़े में पड़े ध्वज को देखते हैं तो दिल को पीड़ा पहुंचती है, ऐसा नहीं होना चाहिए.
वयोवृद्ध हो चुके अब्दुल सत्तार जीवन के अंतिम सांस तक तिरंगा बनाने की चाहत रखते हैं. उन्होंने अपने बेटों को भी यही सीख दी है कि व्यवसाय वह बहुत सा कर सकते हैं, उस व्यवसाय से परिवार भी चला सकते हैं, लेकिन तिरंगे को बनाने और अपने बनाए तिरंगे को बड़ी-बड़ी हस्तियों द्वारा फहराए जाने में जो सुकून और सम्मान मिलता है, वह किसी अन्य काम में नहीं है.
