बन्ना का भोजपुरी राग! जानिए झारखंड की राजनीति में नए संकेत

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Published : Sep 20, 2022, 10:02 PM IST

Jharkhand Politics on issue of 1932 Khatian

झारखंड में 1932 का मुद्दे (Jharkhand Politics on issue of 1932 Khatian) ने कई नेताओं की परेशानी बढ़ा दी है. कोई खुलकर इसका विरोध नहीं कर पा रहा है, लेकिन कईयों के लिए खुले दिल से स्वीकार करना भी मुश्किल हो रहा है. लिहाजा बयानों का दौर जारी है और उन बयानों के मायने भी निकाले जाने लगे हैं.

रांची: मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति (Jharkhand Politics on issue of 1932 Khatian) और ओबीसी को 27% आरक्षण का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित करा कर ऐसा तीर छोड़ दिया है कि विरोधी दलों के साथ सहयोगी दल भी दुविधा में पड़ गए हैं. भाजपा 1932 खतियान आधारित कैबिनेट प्रस्ताव पारित होने पर इसे लाने की सिर्फ मंशा पर सवाल उठा रही है तो सुदेश महतो की पार्टी आजसू को तो संवाददाता सम्मेलन बुलाकर सरकार के इस कदम का स्वागत और समर्थन करना पड़ा. वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी पार्टियां कांग्रेस और राजद भी दुविधा में नजर आती हैं.

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झारखंड में हेमंत सोरेन की 1932 खतियान आधारित राजनीति ने झारखंड की सियासत में बहुत सारे लोगों की तबीयत खराब कर दी है. मधु कोड़ा ने कोल्हान की सियासत को लेकर अपना विरोध पत्र सीएम हेमंत सोरेन को भेज दिया. जबकि कांग्रेस के कई नेता इस बात को लेकर नाराज हैं कि बहुत कुछ इसमें करना बाकी रह गया है.

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राजनीति की खराब हो रही हालत को लेकर कई लोगों ने अब भाषा और बोली का सहारा लिया है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने भोजपुरी को अपने विरोध का जरिया बताया है और कहा है कि हमनी के रहते केहू के कुछ ना होई.

1932 आधारित खतियान पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता चाहे जितना खुश हों, चाहे जमीन पर उतारी जा रही हो. लेकिन कुछ नेता ऐसे हैं, जिन्हें 1932 आधारित खतियान ने उनकी राजनीतिक जरूरत के आधार पर बीमार कर दिया है. अब देखना यह है बन्ना गुप्ता ने राजनीति को साधने के लिए जिस तरीके से भाषा को आत्मसात करके विरोध जताया है. इसकी बुनियाद मजबूत होती है और कितनी दूर तक जाती है. लेकिन एक बात तो साफ है कि 1932 का खतियान बहुत लोगों को आसानी से हजम नहीं हो रहा है. ऐसे में झारखंड की राजनीति किस करवट बैठेगी आने वाले वक्त में ही पता चलेगा.

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