झारखंड की खेती पर नैनो यूरिया का असरः छिड़काव से उपज में 10-15 प्रतिशत बढ़ोतरी

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Published : Jun 3, 2022, 7:15 PM IST

Updated : Jun 3, 2022, 7:42 PM IST

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झारखंड में खेती पर नैनो यूरिया का असर सकारात्मक नजर आ रहा है. बीएयू ने तीन वर्ष तक नैनो यूरिया का फसल पर प्रभाव (nano urea on agriculture) का नतीजा उत्साहजनक है. नैनो यूरिया के छिड़काव से उपज में 10-15 प्रतिशत बढ़ोतरी देखी जा रही है. अब किसानों के खेतों में नैनो यूरिया के प्रभाव का आकलन की जरूरत है.

रांचीः पिछले दिनों गुजरात के अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश के पहले नैनो यूरिया प्लांट का उद्घाटन किया. तब अचानक नैनो यूरिया चर्चा में आ गया. झारखंड के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (Birsa Agricultural University) में भी वर्ष 2019 से 2022 तक मृदा वैज्ञानिकों द्वारा लगातार तीन वर्षो तक नैनो यूरिया का फसल पर प्रभाव (Effect of nano urea) पर शोध किया गया. जिसका बेहतर और उत्साहवर्धक परिणाम आया है.

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नैनो यूरिया एक सूक्ष्म तरल उर्वरक है, इसके उपयोग से उर्वरक लागत में कमी व अधिक उपज मिलने के साथ-साथ प्रदूषण का प्रभाव भी कमी होता पाया गया है. इसके प्रयोग से अन्य उर्वरकों की उपयोगिता क्षमता एवं उपज क्षमता में बढ़ोतरी के साथ फसल गुणवत्ता में सुधार भी देखा गया है. BAU के वरिष्ठ मृदा वैज्ञानिक डॉ. बीके अग्रवाल ने बताया कि सही मायने में नैनो यूरिया आने वाले दिनों में झारखंड के गरीब किसानों के लिए भी वरदान साबित हो सकता है. एक ओर जहां खेती की लागत कम होगी वहीं इससे भारत सरकार द्वारा यूरिया का आयात भी कम होने से विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी.

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बीएयू के मृदा विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बीके अग्रवाल ने बताया कि बीएयू एवं इफको द्वारा नैनो उर्वरक शोध कार्यक्रम के तहत हुए शोध के परिणाम उत्साहजनक रहे हैं. वर्ष 2019-20 से इफको के सौजन्य से नैनो यूरिया (तरल यूरिया) का गेहूं के फसल पर प्रभाव अनुसंधान कार्यक्रम चलाया जा रहा है. तीन वर्ष के शोध में इस उर्वरक के प्रभाव का परिणाम बढ़िया रहा है. उन्होंने कहा कि अनुशंसित मात्रा (75 प्रतिशत रासायनिक एवं 25 प्रतिशत जैविक खाद) में उर्वरकों के प्रयोग के साथ 4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चूना के प्रयोग से अच्छा उपज मिलता है.

बुआई के समय प्रयोग के बाद यूरिया की जगह दो बार नैनो यूरिया (तरल) उर्वरक के छिड़काव से उपज में 10-15 प्रतिशत तक अधिक उपज पाया गया है. मिट्टी पर इसका कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिला है. शोध परिणाम के मुताबिक नैनो यूरिया (तरल) जो 50 प्रतिशत तक दानेदार यूरिया को रीप्लेस कर सकता हैं. 50 प्रतिशत दानेदार यूरिया के प्रयोग के साथ नैनो यूरिया (तरल) का दो बार छिड़काव करने से अच्छी फसल देखने को मिली है. इसमें पहला छिड़काव बुआई के 30 दिनों के बाद तथा पहली छिड़काव के 20 दिनों के बाद दूसरा छिड़काव किया गया. इस उपचार से फसल उपज में 10 से 15 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त हुआ.


डॉ. अग्रवाल बताते है कि नैनो यूरिया (तरल) का 4 मिली. मात्रा से एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना फायदेमंद होता है. छिड़काव साफ मौसम में सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक किया जा सकता है. नैनो यूरिया (तरल) का प्रयोग सभी फसलों पर की जा सकती है. दरअसल फसलों की पत्तियों में स्टोमाटा खुला रहता है, जो नैनो यूरिया के कण को अवशोषित करता है. पत्तियों के माध्यम से यह कण पौधे के अन्य भागों में पहुंच जाता है.

इफको ने देश के 20 शोध केंद्रों एवं 11 हजार किसानों के खेतों में तकनीकी परीक्षण के बाद इस तरल उर्वरक को किसानों के लिए हाल में लॉन्च किया है. इस तरल उर्वरक का एक बोतल करीब एक बोरी यूरिया के बराबर है. एक बैग दानेदार यूरिया का मूल्य 2600 रुपया है और सब्सिडी के बाद यह 266 रुपया प्रति बैग की दर से किसानों को मिलता है. जबकि एक बोतल नैनो तरल यूरिया का मूल्य महज 240 रुपये है, जो एक बैग दानेदार यूरिया के बराबर होता है. इफको नैनो तरल यूरिया कम लागत में ज्यादा फायदेमंद हो सकती है. इसके उपयोग से कृषि उत्पादन और किसानों की आय में वृद्धि, जल, वायु एवं मृदा प्रदूषण में कमी के साथ उपज की गुणवत्ता में वृद्धि होगी. यह परिवहन व भंडारण में किफायती एवं सुविधाजनक, सस्ता एवं प्रभावी और सभी के लिए सुरक्षित है.

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क्या है नैनो यूरियाः नैनो यूरिया ठोस यूरिया का ही तरल (liquid) रूप है. इसके 500 मिलीलीटर की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान करता है. यह तरल यूरिया किसानों के लिए काफी सुविधाजनक और किफायती है.

नैनो यूरिया की विशेषताएंः ठोस यूरिया के मुकाबले नैनो यूरिया कम कीमत पर मिलती है. यह तरल यूरिया पौधों के पोषण के लिए काफी प्रभावी और असरदार है. इसका परिवहन न और भंडारण कम खर्च होता है. इससे फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है. नैनो यूरिया भूमिगत जल की गुणवत्ता सुधारने में मदद करती है. ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में अहम भूमिका निभाती है.

इफको ने किया विकसितः इफको (Indian Farmers Fertiliser Cooprative) ने हाल के वर्षों में नैनो यूरिया लिक्विड की खोज की है. देश की 94 से अधिक फसलों पर इसका परीक्षण किया गया. इसकी शुरुआत 31 मई 2021 को हुई थी. इफको के अनुसार लिक्विड यूरिया के इस्तेमाल से सामान्य यूरिया की खपत 50 प्रतिशत तक कम हो सकती है. नैनो यूरिया (तरल) की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है जो सामान्य यूरिया के एक बैग के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व देता है. इफको नैनो यूरिया एकमात्र नैनो फर्टिलाइजर है, जिसे भारत सरकार ने मान्यता दी है और फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर में शामिल किया है. इसे इफको ने विकसित किया है और इसक पैटेंट भी इसी के पास है.

फसलों में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए यूरिया का होता है. अब तक यूरिया सफेद दानों के रुप में उपलब्ध थी. इसका इस्तेमाल करने पर आधे से भी कम हिस्सा पौधों को मिलता था जबकि बाकी जमीन और हवा में चली जाती थी. भारत नैनो लिक्विड यूरिया को लॉन्च करने वाला पहला देश है. मई 2021 में इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने इसे लॉन्च किया. इससे पहले नैनो तरल यूरिया को 94 से ज्यादा फसलों को देश भर में 11,000 कृषि क्षेत्र परीक्षण (एफएफटी) पर परिक्षण किया गया, इसके बाद आम किसानों को दिया गया. नैनो यूरिया इफको का पहला नैनो फर्टिलाइजर है. इसके पहले भी इफको ने किसानों को खरपतवार, बीमारी और कीट से पौधों को बचाने के लिए विडीसाइड, फंगीसाइड और पेस्टीसाइड लिक्विड (तरल) के रूप में मुहैया करा रही है.

Last Updated :Jun 3, 2022, 7:42 PM IST
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