नक्सलियों के लाइफ लाइन रहे हथियार ढोने और खाना बनाने वाले सेकेंड कैडर पर वार- करो सरेंडर वरना होगा एनकाउंटर

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Published : Jan 17, 2023, 7:38 PM IST

Etv Bharat

झारखण्ड पुलिस की बेहतर रणनीति के कारण नक्सली संगठन सिमटने लगे हैं. कई बड़े नक्सली मारे जा चुके हैं और कुछ सलाखों के पीछे जा चुके हैं. पुलिस अब नक्सलियों के लाइफ लाइन को तोड़ने में जुटी है. नक्सलियों की लाइफ लाइन वे हैं जो सेकंड लाइन के नक्सल कैडर है जो हथियार ढोने से लेकर खाना बनाने तक का काम करते हैं. अब उन्हे लेकर पुलिस काम कर रही है.

रांची: झारखंड पुलिस अपने बेहतरीन रणनीति के दम पर नक्सल फ्रंट पर बेहतर रिजल्ट दे रही है, झारखण्ड पुलिस की बेहतर रणनीति के कारण ही पिछले दो सालों के दौरान नक्सलियों को ना सिर्फ अपने कई मजबूत किले खोने पड़े है बल्कि प्रशांत बोस जैसे बड़े नक्सल कमांडरों को भी सलाखों के पीछे पहुंच गए. हालात तो यह हैं कि बूढ़ा पहाड़ और बुलबुल जगंल से भागे नक्सलियों के छोटे कैडर अब भाग कर दूसरे राज्यों में मजदूरी करने लगे हैं ताकि पुलिस ने बच सकें. वहीं दूसरी तरफ ऐसे कैडरों को लेकर झारखण्ड पुलिस ने अपनी एक ठोस रणनीति बना रखी है, वो है उनके आत्मसमर्पण के जरिये मुख्यधारा में जोड़ कर उनके पुनर्वास की योजना.

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क्या है पुलिस की योजना: दरअसल झारखंड में नक्सल अभियान की रूपरेखा तैयार करने वाले पुलिस अधिकारी यह बखूबी जानते हैं कि यह सही समय है नक्सलियों के सेकंड लाइन को टारगेट करने का, इस सेकंड लाइन में वैसे नक्सल कैडर हैं जो हथियार ढोने से लेकर खाना बनाने तक का काम करते हैं. इनकी संख्या काफी बड़ी है और फिलहाल इनके मन में पुलिसिया अभियान का खौफ अंदर तक समाया हुआ है. ऐसे में पुलिस अधिकारी गांव गांव जाकर नक्सली कैडरों के परिवार वालों को यह समझा रहे हैं कि उन्हें वे आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करें ताकि उनका पुनर्वास किया जा सके.

दरअसल, पुलिस अफसर यह नहीं चाहते कि संगठन छोड़कर भाग चुके कैडर एक बार फिर से संगठन से जुड़े, इसलिए उनकी तलाश जोर शोर से की जा रही है. संगठन छोड़ कर भागे कैडरों के परिवार वालों को भी यह समझाया जा रहा है कि वे उन्हें पुलिस के सामने लाएं. पुलिस की इस रणनीति के पीछे दो मकसद है पहला कि नक्सली आत्मसमर्पण कर दें दूसरा इन्हीं छोटे कैडरों के बल पर बूढ़ा पहाड़ जैसे बीहड़ इलाके में नक्सली फल-फूल रहे थे अगर इस पर ब्रेक लगा दिया जाए तो उन्हें दोबारा उस इलाके में फलने फूलने का मौका नहीं मिलेगा.



छोटे कैडर लौटे तो बीहड़ फतेह होगा आसान: नक्सली संगठनों के छोटे कैडर लोकल होते हैं. उन्हें नक्सली नेता डरा धमका कर या फिर प्रलोभन देकर संगठन में शामिल करवाते हैं और फिर उनके भौगोलिक जानकारी का बेहतरीन फायदा उठाते हैं. यह वही कैडर है जो पुलिस के आने की सूचना, बंदूक ढोने और खाना बनाने तक का काम करते हैं. अगर यह भी संगठन से अलग हो जाएं तो पुलिस की चुनौती एक हद तक काफी आसान हो जाएगी और बीहड़ों में उनकी पहुंच भी बेहद सुलभ हो जाएगी.



संगठन छोड़ बने मजदूर: साल 2021 के मार्च महीने में झारखंड पुलिस के आईजी अभियान की जिम्मेवारी संभालने वाले आईपीएस अफसर अमोल वेणुकांत होमकर की बेहतरीन रणनीति के कारण नक्सलियों को कई स्थानों पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. आईजी होमकर के अनुसार बूढ़ा पहाड़ जैसे नक्सलियों के गढ़ को ध्वस्त किए जाने के बाद वहां के बड़े नक्सली नेता अपने छोटे कैडरों को छोड़ कर भाग खड़े हुए. अब छोटे कैडरों को यह समझ में ही नहीं आ रहा है कि वह क्या करें. उनमें से कुछ लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख कर चुके हैं. वहीं कुछ जंगलों में ही पुलिस की नजरों से छुपने के लिए भागे भागे फिर रहे हैं. आईजी होमकर के अनुसार ऐसे कैडरों के लिए सुनहरा मौका है कि वे मुख्यधारा से जुड़ कर अपने आप को सुरक्षित कर ले. झारखंड पुलिस उनके पुनर्वास के लिए बेहतरीन काम करने के लिए तैयार बैठी है उन्हें से आने की जरूरत है.



पहले भी गिरफ्तार हो चुके मजदूर और किसान बने नक्सली: पूर्व में छोटे सरकार, गिरिउवा मुंडा, डिम्बा पाहन और बुद्धराम मुंडा जैसे दुर्दांत नक्सली भी दूसरे राज्यों में मजदूरी करते हुए धरे गए थे. एक दर्जन से ज्यादा पुलिस वालों के हत्या का आरोपी छोटे सरकार पुलिसिया अभियान से इतना घबरा गया था कि वह महाराष्ट्र के ईट भट्ठे में काम करने लगा था. वहीं डिंबा पाहन की कहानी तो काफी चर्चित हुई थी डिंबा पाहन कुख्यात नक्सली कमांडर कुंदन पहन का भाई था जब ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू हुआ तो वह हरियाणा भागा और वहां जाकर अपना मुर्गी फॉर्म खोलकर वही समय बिताने लगा. टेक्निकल सेल की मदद से उसे गिरफ्तार किया गया. वही कुख्यात नक्सली गिरिउवा मुंडा यूपी के अम्बेडकरनगर के एक इट भट्ठे से पकड़ा गया था, वहां वह अपने परिवार के साथ काम कर रहा था.


वर्तमान में क्या है पुलिस का इनपुट: सूचना के अनुसार वर्तमान समय में जिन इलाकों में झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों के द्वारा बड़े अभियान चलाकर नक्सलियों को खदेड़ दिया गया है वहां की वस्तु स्थिति फिलहाल ऐसे ही है, इन इलाकों से बड़े नेता भाग चुके हैं. छोटे कैडरों के पास ना हथियार है ना गोलियां और ना ही रसद जिनके बल पर वे संगठन को आगे बढ़ा सके ऐसे में उन्होंने जंगल छोड़कर दूसरे शहर या राज्य जाकर रोजगार खोजना ही अपने लिए बेहतर समझा. लेकिन वे दूसरे राज्य शहर में पुलिस की नजरों से दूर हैं तो यह उनके लिए एक मात्र छलावा है क्योंकि पुलिस की टेक्निकल टीम लगातार उन पर काम कर रही है. सूचना के मुताबिक दो दर्जन से ज्यादा नक्सली कैडर हरियाणा, पंजाब और यूपी जैसे राज्यों में पनाह लिए हुए हैं, वे वहां के खेतों और ईट भट्टों में काम कर रहे हैं.


बंधुवा मजदूर बना रखा था नक्सलियों ने: झारखंड पुलिस के अधिकारियों को यह भी सूचना मिली है कि बूढ़ा पहाड़ जैसे बीहड़ों पर नक्सली नेताओं ने बड़ी संख्या में ग्रामीणों को बंधुआ मजदूर बनाकर अपने साथ रखा हुआ था. उनसे भी तरह तरह के काम करवाते थे. संगठन छोड़कर भाग गए अधिकांश लोग ऐसे हैं जिन पर कोई भी मामला दर्ज नहीं है पुलिस ऐसे लोगों से लगातार अपील कर रही है कि वह आत्मसमर्पण करें जब उन पर कोई मामला ही नहीं है तो उन्हें जेल भी नहीं भेजा जाएगा.

जो नहीं सुधरे, वे एनकाउंटर के लिए रहें तैयार: वहीं दूसरी तरफ आईजी अभियान अमोल होमकर ने वैसे नक्सली कैडर जो नक्सलियों के जुल्म, उनके भय दोहन से संगठन में भर्ती हुए थे उनके लिए खुला ऑफर है कि वह पुलिस के पास आ जाएं उन्हें हर तरह की सहायता दी जाएगी. लेकिन जो जंगल में रहकर विकास के कार्यों में बाधा बनेंगे उनके खिलाफ झारखंड पुलिस का अभियान निरंतर चलता रहेगा और वे इनकाउंटर के लिए तैयार रहें.

रसद पर लग गई है ब्रेक: जंगलों और बीहड़ों में रहकर पुलिस से मुकाबला करने की कोशिश में लगे नक्सलियों के सामने कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो गईं हैं. आमतौर पर हम पुलिस की सफलता का आकलन उनके द्वारा गिरफ्तार किए गए. एनकाउंटर में मारे गए नक्सलियों के अलावा छापेमारी में बरामद असलहे और गोला बारूद को लेकर करते हैं. यह सही है कि किसी भी संगठन के अत्याधुनिक हथियार और गोला बारूद बड़ी संख्या में अगर पुलिस जब्त कर ले तो संगठन कमजोर हो जाता है लेकिन सच्चाई यह भी है कि अगर संगठन के बीच अनाज, कपड़ा और मेडिसिन की कमी हो जाय तो ये उनके लिए बड़ी मुसीबत है.

झारखंड पुलिस के तरफ से नक्सलियों के मजबूत गढ़ माने जाने वाले कई स्थानों पर उनकी रसद को ही रोक दिया गया है. जो रोजमर्रा के सामान नक्सलियों ने बंकर में छुपा कर रखा था वह भी पुलिस की नजर में आ गए और पुलिस ने उन बंकरों को ध्वस्त कर दिया. अब छोटे कैडर झारखंड पुलिस के टारगेट में है ताकि उन्हें मुख्यधारा में जोड़कर नक्सलियों को बड़ी और गहरी चोट दी जा सके और जो लोग समाज की मुख्यधारा से भटक गए हैं उनको समाज से जोड़ा जाय.

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