दुमका: भारत में नॉर्वे के राजदूत हंस जैकब फ्रायडेनलेंड जल्द दुमका आयेंगे. यह जानकारी आज जिले के उपायुक्त रवि शंकर शुक्ला ने दी. उन्होंने बताया कि संभव है कि इसी महीने उनका दुमका दौरा होगा, जहां वे आदिवासी संथाल समाज की भाषा, संस्कृति और सभ्यता से रूबरू होंगे.
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क्या है दुमका और नॉर्वे का कनेक्शन: दरअसल, नॉर्वे के लोगों का दुमका की धरती से बहुत गहरा लगाव रहा है. नॉर्वे के मिशनरी से रहे लार्स ओरसेन स्क्रेप्सरूड ने 1867 ईसवी में संथाल परगना की धरती पर वर्तमान दुमका जिले के बेनागड़िया गांव में एवेंजर मिशन की स्थापना की थी. बाद में वे असम गये तो 1868 में नार्दन इवानजेलिकल लुथेरियन चर्च की स्थापना की. उनके बाद पॉल ओल्फ बोडिंग (पी.ओ बोडिंग) भी नार्वे से दुमका पहुंचे थे.
इन दोनों ने संथाली भाषा और साहित्य का ना केवल अध्ययन किया, बल्कि इस क्षेत्र को लेकर काफी कुुछ जानकारी भी जमा की, खुद संताली सीखी और पुस्तक लेखन कर संथाली साहित्य, व्याकरण, कथा-कहानी और लोकोक्तियों के अलावा चिकित्सा पद्धति को भी लिपिबद्ध किया. इतना ही नहीं बेनागड़िया जैसे सुदूरवर्ती इलाके में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना कर संथाली पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन कराया था. इसमें संथाली और अंग्रेजी शब्दकोश प्रमुख हैं.
हाल ही में स्क्रेप्सरूड और पीओ बोडिंग की मनाई गई थी जयंती: नॉर्वे से भारत आकर संथाली भाषा और साहित्य को विकसित करने वाले स्क्रेप्सरूड और पीओ बोडिंग की जयंती पर दुमका जिला प्रशासन ने जब साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजित किया, तो नार्वे के राजदूत हंस जैकब फ्रायडेनलेंड ऑनलाइन माध्यमों से ना केवल जुड़े थे, बल्कि संदेश भी दिया था. अपने दुमका दौरे पर वह नार्वे का संथाल परगना से कनेक्शन को देखने और जानने का प्रयास करेंगे. दुमका के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला ने बताया कि नार्वे के राजदूत हंस जैकब का आगमन इसी महीने दुमका में होगा, जहां वे लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले अपने देश से आयेस्क्रेप्सरूड और पीओ बोडिंग की स्मृतियों से रूबरू होंगे.