महामहिम देने की राजनीति से लड़ रहा है झारखंड

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Published : Jun 22, 2022, 3:35 PM IST

Jharkhand politics for presidential election

देश में राष्ट्रपति चुनाव के लिए राजनीति गर्म है. एक तरफ जहां एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं यूपीए की तरफ से कभी यशवंत सिन्हा चुनाव लड़ेंगे. इन सबके बीच झारखंड में भी राजनीतिक दलों में सियासी जंग छिड़ी हुई है.

रांची: देश में महामहिम के चयन को लेकर सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्ष ने अपने अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. जो नाम सामने हैं उसमें झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू और झारखंड के बडे़ राजनीतिक कद के नेता यशवंत सिन्हा हैं. सियासत में नाम, काम की पूरी परिधि जाति की उस समग्रता की गोलाई पर निर्भर करती है जो राजनीति में सिर्फ और सिर्फ फायदा दे जाए. 2014 के चुनाव में भाजपा ने गैर आदिवासी मुख्यमंत्री की बात कहकर चुनाव लड़ा था और 2022 में द्रौपदी मुर्मू के साथ देश में महामहिम के चुनाव को लड़ने जा रही है. देश के जिस पद के लिए चुनाव होने जा रहा है उसमें देश की सियासत का रुख चाहे जैसा हो लेकिन देश में महामहिम के पद के लिए झारखंड बहुत सिद्दत से चुनाव लड़ रहा है.

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झारखंड में बीजेपी की सियासत विपक्ष में बैठने से पहले गैर आदिवासी वाले मुख्यमंत्री की थी, लेकिन महामहिम के चुनाव में जाति की राजनीति वाला मुद्दा बदला हुआ है. इसकी बहुत बड़ी वजह भी बीजेपी को मिल गई है. सूबे में 2014 की राजनीति में सवर्ण राजनीति और धर्म के आधार पर बैठाकर चाहे जिस रूप में बताई गई हो, लेकिन हकीकत यही है कि ओबीसी वोट बैंक पर जिस पकड़ को बीजेपी ने कायम किया है वह सियासी मुद्दा बनने की वजह बन गया है.

झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू के सामने विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को उतारा है. दरअसल बदलती राजनीति और बदलने वाली राजनीति का सच यही है जिन्होंने कभी झारखंड में बीजेपी की राजनीति को मजबूत करने का काम किया था, आज बीजेपी उसी नाम को कमजोर करने की हर राजनीति को कर रही है.

साल 2000 के नवंबर में बिहार से झारखंड के अलग किया गया तो तब बीजेपी के महामहिम अटल बिहारी वाजपेयी थे. जिनकी नीति आज भी बीजेपी अपना मूल मंत्र मानती है, लेकिन झारखंड की राजनीति में आज वाली भाजपा के सर्वे सर्वा अटल बिहारी वाली सोच के 2014 में बदल दिए और 2022 में लौट आए. गैर आदिवासी वाली राजनीति से द्रौपदी मुर्मू वाली सियासत के सफर में यशवंत सिन्हा राज्य के निर्माण में अटल बिहारी की वाली नीति के लागू करने वाले हैं.

अटल बिहारी कि राजनीति ने ही झारखंड को आदिवासी राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र माना था और आज वाली बीजेपी को खड़ा करने में मेहनत भी यशवंत सिन्हा ने खूब किया. जिस निति को कभी यशवंत सिन्हा झारखंड के लिए लेकर आए थे आज उसी राजनीति से उनकी लड़ाई है. इसी उहापोह वाली उलझन में झारखंड अपनों से लड़ रहा है चाहे झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रोपदी मुर्मू की बात हो या फिर झारखंड के बडे़ राजनीतिक कद के नेता यशवंत सिन्हा की. सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने उम्मीदवार के लिए भले ही लड़ रहा हो लेकिन झारखंड पूरे देश में इस राजनिति से अकेले लड़ रहा है.

क्या है लड़ाई की वजह: राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर भाजपा ने जिस नाम को दिया है वह देश में बदलते जातीय राजनीति के उस वोट बैंक से है जो भाजपा के खाते में आकर गिरा है. अगर राज्य के अनुसार बात करें तो बिहार में बीजेपी का 26 फीसदी ओबीसी वोट बैंक पर कब्जा है. जबकि क्षेत्रीय पार्टियों की बात करें तो नीतीश वाली जदयू को 25 फीसदी और राष्ट्रीय जनता दल को सिर्फ 11 फीसदी वोट मिला. कांग्रेस महज 4 फीसदी पर सिमट गई है जो कभी लगभग 26 फीसदी से ऊपर हुआ करती थी.

बात उत्तर प्रदेश की करें तो यहां के ओबीसी का 61 फीसदी वोट बैंक बीजेपी के पास है जबकि सपा के पास 14 परसेंट और बसपा के साथ 15 फीसदी है. कांग्रेस इसमें कहीं टिकती ही नहीं है. बात पश्चिम बंगाल की करें तो वहां भी 68 फीसदी वोट बैंक बीजेपी के पास है. जबकि तृणमूल कांग्रेस के पास 27 फीसदी वोट बैंक है. कांग्रेस यहां कहीं भी नहीं दिखती. तेलंगाना की करें तो भाजपा के पास 23 फीसदी, टीआरएस के पास 42 फीसदी है. आंध्र प्रदेश में तो बीजेपी बहुत कुछ नहीं कर पाई है लेकिन टीडीपी 46 फीसदी और वाईएसआर कांग्रेस 34 फीसदी ओबीसी वोट बैंक पर कब्जा किए हुए हैं.

वहीं, कर्नाटक में बीजेपी को ओबीसी का 50 फीसदी वोट बैंक मिला है, जबकि जेडीएस को 13 फीसदी, कांग्रेस दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई है. ओडिशा में भी ओबीसी वोट बैंक पर बीजेपी 40 फीसदी कब्जा किए हुए हैं जबकि बीजू जनता दल भी 40 फीसदी वोट बैंक पर कब्जा जमाए हुए हैं.

राष्ट्रपति के पद के लिए नामों के एलान के बाद झारखंड में चर्चा वाली राजनीति गर्म हो गयी है. देश में महामहिम की लड़ाई झारखंड में सबसे ज्यादा लड़ी जा रही है और खुद झारखंड उसे लड़ रहा है. चाहे बात द्रौपदी मुर्मू की हो या फिर झारखंड के यशवंत सिन्हा की. देश के सभी राजनीतिक हस्तियों ने अपने बधाई संदेश भी देने शुरू कर दिए हैं. अब बात झारखंड के सत्ता की है वह किस राजनीति का हिस्सा बनेगा. 2014 में भाजपा के गैर आदिवासी राजनीति से 2022 में बदलकर आए वाली राजनीति पर या फिर सत्ता पक्ष और विपक्ष वाली राजनीति पर, लेकिन एक बात तय है कि महामहिम देने की राजनीति से झारखंड खुद से ही खूब लड़ रहा है.

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