चुनावी नाकामी के बाद वजूद बचाने के लिए नाक में दम करता ट्रंपवाद

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Published : Nov 11, 2020, 5:00 PM IST

चुनावी नाकामी के बाद ट्रंप का वजूद

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 कई मायनों में ऐतिहासिक रहा. इस साल के मतदान में अमेरिकी लोगों ने रिकॉर्ड कायम करते हुए सदी में सबसे अधिक वोटिंग की. मतदान के बाद डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन को विजेता घोषित किया गया. हालांकि, अमेरिका में कुल लोकप्रिय मतों के मामले में बाइडेन ट्रंप से पीछे ही रहे. 2016 में ट्रंप ने लोकप्रिय मतों के मामले में ओबामा को भी पीछे छोड़ दिया था. अब जबकि अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के शपथ शपथ ग्रहण का समय नजदीक आ रहा है, ऐसे में माना जा रहा है कि ट्रंपवाद अमेरिका की राजनीति में दम करने वाला साबित होगा. ट्रंप की चुनावी विफलता अमेरिका में अशांति का सबब बन सकती है.

अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति के रूप में बाइडेन के चुने जाने के बाद उत्साह व्यक्त करने की ये आवाज कुछ विचित्र सी लग सकती है. वास्तव में अमेरिका के 59 वें राष्ट्रपति चुनाव के खाते में कई उपलब्धियां हैं. वर्ष 1992 के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब कोई राष्ट्रपति लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से चुनाव जीतने में नाकाम रहा. बाइडेन को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में 7.5 करोड़ से भी अधिक मत मिले जो अब तक किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को मिले वोट से अधिक है. बाइडेन ने 2008 के बराक ओबामा के 6.95 करोड़ मतों के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया. इस चुनाव में रिकॉर्ड संख्या में चुनाव की तिथि से पहले और मेल-इन के जरिए मतदान हुआ. क्योंकि कई राज्यों ने कोविड-19 महामारी के कारण मेल के जरिए मतदान करने के लिए प्रतिबंधों में छूट दी थी.

बहुत अधिक संख्या में मेल-इन मतपत्रों की वजह से कुछ राज्यों में (swing states) में वोटों की गिनती और उसकी रिपोर्ट करने में देर हुई. इसकी वजह से प्रमुख समाचार संस्थानों में 7 नवंबर, 2020 तक यानी चार दिन बाद भी किसकी जीत होगी इसका अनुमान नहीं लगाया जा सका. अमेरिका में स्विंग स्टेट उन्हें कहा जाता है जिनके नागरिकों के बारे में यह तय नहीं होता कि उनका वोट दोनों दलों में से किस पार्टी को जाएगा. सबसे महत्वपूर्ण घटना यह हुई कि जोसेफ आर बाइडेन की सहयोगी कमला हैरिस उपराष्ट्रपति के रूप में पहली अश्वेत महिला चुनी गईं.

इस तरह की उपलब्धियां के बावजूद अमेरिका में 59वें राष्ट्रपति चुनाव में जनादेश उतना निर्णायक और सशक्त नहीं था जैसा कि मतदान का सर्वेक्षण करने वाले अनुमान लगा रहे थे. यह याद करना जीत का उन्माद हटा देने वाला मामला है कि पदस्थ राष्ट्रपति को सात करोड़ से भी अधिक मत प्राप्त हुए जो राष्ट्रपति बराक ओबामा के पक्ष में पड़े लोकप्रिय मतों से भी अधिक थे. वास्तव में ट्रंप ने अपनी नीति के लिए समर्थन का विस्तार किया. यह वर्ष 2016 और 2020 के बीच के मतदान के तरीके से पता चलता है. 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को 6 करोड़ 29 लाख 84 हजार 828 वोट मिले जो कुल पड़े वोटों का करीब 46 फीसद था. 2020 में ट्रंप के पक्ष में पड़े वोट बढ़कर 7 करोड़ 10 लाख 98 हजार 559 हो गए जो कुल वोटों का करीब 48 फीसद हैं. (खबर लिखे जाने तक करीब 93 फीसद मतों की गिनती हो पाई थी) यह स्पष्ट है कि इस राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की हार के बावजूद ट्रंपवाद के लिए लोकप्रिय समर्थन का विस्तार हुआ है.

मौजूदा जीत वर्ष 2020 के अमेरिकी सीनेट चुनाव में डेमोक्रेट्स की जीत को रेखांकित करती है. रिपब्लिकन पार्टी ने 18 सीटें जीती हैं, इस प्रकार अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन सांसद 48 हो गए हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी ने 13 सीटें जीतीं और सीनेट में कुल 46 सीटें हुईं. दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार हैं. अमेरिकी सीनेट में बहुमत के लिए 51 सीटों की जरूरत है जो जॉर्जिया में होने वाले दो रन ऑफ चुनावों पर टिकी हुई है. उस राज्य में पार्टी को कुल पड़े वोटों का 50 फीसद या अधिक हासिल करने में कामयाबी नहीं मिली जिसकी वजह से रन ऑफ की स्थिति आई. मीडिया विश्लेषक और सर्वेक्षक 3 नवंबर, 2020 को हुए राष्ट्रपति चुनाव के लिए उत्साह के साथ बड़ी संख्या में मतदान होने का श्रेय ट्रंप के महोत्सव जैसे चुनाव अभियान को दे रहे हैं.

ट्रंप की सफलता समर्थकों के जबरदस्त उत्साह के साथ किए गए मतदान को प्रदर्शित कर रहा है, मूल रूप से यह एक गुप्त विचारधारा के साथ उनके संपर्क का परिणाम है जो जब से एक राष्ट्र के रूप में अमेरिका का निर्माण हुआ तब से ही अमेरिकी राजनीति में है और जिसे हम ट्रंपिज्म के रूप में जान सकते हैं. यह बहुत अधिक रूढ़िवादी प्रवृत्ति, भावना, विचारों के साथ-साथ जाति, लिंग, वर्ग और वैज्ञानिक स्वभाव का एक मिलाजुला रूप है. इस नव रूढ़िवादी पारिस्थितिक तंत्र को निश्चित रूप से ट्रंप ने नहीं बनाया है, लेकिन मुख्यधारा की राजनीति में इन विचारों की घुसपैठ के लिए वह एक सुदृढ़ सेतु बन गए.

नव-रूढ़िवादी राजनीति की स्थिति का निर्माण संगठनों और समूहों के एक सामूहिक प्रभाव से हुआ है. उनके बीच कोई व्यवस्थित संबंध स्थापित करना मुश्किल होगा, वे बहुत अलग-अलग संगठनात्मक सिद्धांतों का पालन करते हैं लेकिन उपर्युक्त चीजों के लिए एक गुप्त विचारधारा की समानता है. इसे छोड़कर इनमें समान बहुत कम हैं. संगठनों के इस प्रभाव का असर है कि एक छोर पर बिना किसी आकार के समूह हैं जिनका कोई मान्य नेता, राजनीतिक केंद्र या गठित संगठन नहीं है. क्वानन ऐसे समूहों का एक विशेष उदाहरण है. दूसरे छोर पर छिपे हुए, बहुत ही अनुशासित और वर्गीकृत तौर पर संगठित श्वेत वर्चस्ववादियों की एक नागरिक सेना है और अंत में रेडियो टॉक शो, केबल समाचार और राजनीतिक सुधार या उदारवाद की घोर विरोधी वेबसाइट हैं. उदाहरण के लिए ब्रेइटबार्ट न्यूज़ नाम की एक वेबसाइट घोर दक्षिणपंथियों के लिए एक मंच है.

गुप्त विचारधारा और उससे जुड़े समूह न तो पार्टी का हिस्सा हैं और न ही इसके नियंत्रण में है. तब भी इससे रिपब्लिकन पार्टी के लिए पड़े वोटों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मिलता है. ग्रैंड ओल्ड पार्टी के साथ घोर दक्षिण पंथ को मिलाना पूरी तरह से ट्रंप और उनके सहयोगियों का काम है. ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी के ऊपर लगते हैं यही उसका आधार है. इस चुनावी हार के बावजूद ट्रंप और उनके भरोसेमंद सहयोगी पार्टी पर मजबूती से पकड़ बनाए रहेंगे और डेमोक्रेट और कथित अन्य दुश्मनों के साथ टकराव जारी रखने के लिए बाध्य होंगे. संक्षेप में कहें तो चुनावी हार के बाद भी विभाजनकारी राजनीति जो ट्रंप के राष्ट्रपति पद की पहचान थी, बरकरार रहेगी.

अमेरिका के औपचारिक राजनीतिक दलों में महत्वपूर्ण परिवर्तन के लिए अमेरिका के संयुक्त राज्यों की राज्य व्यवस्था में बढ़ती नजाकत की चर्चा के बगैर कोई भी विश्लेषण अधूरा रहेगा. रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों दलों के अंदर गलती की रेखाएं (फाल्ट लाइन्स) उभरी हैं. वर्ष 2016 में हुए 58 वें राष्ट्रपति चुनाव के बाद से ही रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी दोनों के संगठन में कट्टरपंथी शाखा की ओर से बड़े संकट में डालने का खतरा पैदा हुआ है. डेमोक्रेटिक पार्टी को वामपंथियों की ओर से बढ़ती चुनौती का सामना करना पड़ रहा है यह सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की बहुत धीमी गति के साथ लगातार बढ़ती जा रही है.

बर्नी सैंडर्स और द स्क्वाड डेमोक्रेट (2018 यूनाइटेड स्टेट्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव इलेक्शन में चुनी गई चार महिलाओं का एक समूह, न्यूयॉर्क की अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़, मिनेसोटा की इल्हान उमर, मैसाचुसेट्स की अयान प्रेसले और मिशिगन की रशीदा तालीब से बना है ) ने डेमोक्रेटिक पार्टी की वामपंथी चिंताओं और आकांक्षाओं को स्पष्ट रूप से उजागर किया है. यह समूह पहले ही डेमोक्रेटिक पार्टी के अहम पद पर कब्जा करने के लिए दो बार चुनौति दे चुका है हालांकि वे चुनौतियां नाकाम रहीं. वे पुलिस, चिकित्सा और शैक्षिक सुधार के आंदोलनों के साथ-साथ एक वेतन के न्यायसंगत स्वरूप के लिए प्रेरक बल भी रहे हैं.

(लेखक- प्रोफेसर कुमार संजय सिंह)

स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

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