ध्यान न देने पर मसूड़ों की बीमारी बढ़ा सकती है ह्रदयरोग तथा मनोविकारों का खतरा

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Published : Jan 5, 2022, 10:05 AM IST

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मसूड़ों में बीमारी की अनदेखी या उनका सही इलाज ना कराना, ह्रदय रोगों तथा कई अन्य बीमारियों के साथ ही मनोविकार होने का जोखिम भी बढ़ा सकता है. हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है.

बीएमजे ओपन जर्नल में प्रकाशित एक शोध के निष्कर्षों में सामने आया है कि अगर मसूड़ों में बीमारियों की अनदेखी की जाय या उनका सही इलाज ना कराया जाय तो ना सिर्फ आपके दांतों को नुकसान पहुंच सकता है बल्कि ह्रदय रोग, मधुमेह तथा स्ट्रोक के साथ ही पीड़ित को मनोविकार होने का खतरा भी बढ़ सकता है. यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम में आयोजित हुए इस शोध में शोधकर्ताओं ने ऐसे 64 हजार 379 मरीजों के सैंपल डेटा की जांच की थी जिन्हें जिंजीवाइटिस और पेरिओडांटिस जैसी मसूड़ों की बीमारियां थी.

क्या है पेरिओडांटिस व जिंजीवाइटिस

पेरिओडांटिस और जिंजीवाइटिस दोनों ही मसूड़ों की बीमारियाँ होती हैं. इन दोनों हो रोगों में मसूड़ों में सूजन आ जाती है और कई बार उनमें खून भी निकलने लगता है. ये दोनों ही बैक्टीरिया जनित संक्रमण होते हैं जो मसूड़ों के साथ दांतों को भी कमजोर तथा संवेदनशील बना देते हैं और साथ ही मुंह में बदबू का कारण बनते हैं.

पेरिओडांटिस के लिए हमारी दांतों पर बनने वाली एक चिपचिपी परत, जिसे आम भाषा में प्लाक कहते हैं, जिम्मेदार होती है. इस संक्रमण पर ध्यान ना देने से यह गले तक फैल सकता है. यही नही इस संक्रमण के ज्यादा बढ़ने पर दांतों के आकार में बदलाव भी आ सकता है और उनकी जड़ों में मवाद भी बन सकता है.

वहीं जिंजीवाइटिस, दांतों पर प्लाक की परत जमने, विशेष रूप से किसी प्रकार की एलर्जी, बैक्टीरियल संक्रमण या फंगल इंफेक्शन होने, एंटीहाइपरटेंसिव व इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं लेने के चलते या फिर मसूड़ों में अलग-अलग कारणों से बार बार संक्रमण होने के कारण हो सकता है. इसमें मसूड़ों का रंग भी बदलने (लाल होने) लगता है, या कई बार उन पर सफेद धब्बे भी नजर आने लगते हैं.

इन दोनों ही बीमारियों का सही इलाज और सही समय पर इलाज ना होने पर दांत कमजोर होने लगते हैं या समय से पहले उनके टूटने जैसी समस्याएं सामने आ सकती है. यह बीमारियां ख़राब मुँह के स्वास्थ, हार्मोनल बदलाव, धूम्रपान करना या गुटखा खाने, आदि के कारन हो सकती हैं.

शोध में हुआ सैंपल डेटा का तुलनात्मक अध्धयन

इस शोध में जिंजीवाइटिस से पीड़ित 60995 लोगों तथा परिओडांटिस से पीड़ित 3384 लोगों के सैंपल डेटा का इस्तेमाल किया गया था, जिनके रिकार्ड की तुलना ऐसे 2,51,161 लोगों से की गई थी जिन्हें पेरिओडांटिस की बीमारी नहीं थी. इस डेटा का आधार पर शोधकर्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया की कितने ऐसे लोग थे जिन्हें पेरिओडांटिस रोग नही था लेकिन फिर भी उन्हे हार्ट फेल तथा स्ट्रोक जैसे ह्रदय रोग, कार्डियो मेटाबॉलिक डिजीज जैसे हाई ब्लड प्रेशर, टाइप 2 डायबिटीज, अर्थराइटिस, टाइप -1 डायबिटीज, सोराइसिस और अवसाद, बेचैनी तथा अन्य गंभीर मानसिक रोगों व अवस्थाओं का सामना करना पड़ा था! वहीं मसूड़ों के रोगों से पीड़ित कितने लोगों में ऊपर बताए गए रोग या उनका खतरा था ।

क्या कहते हैं आँकड़े

शोध में इस्तेमाल किए गए डेटा से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि ऐसे लोग जिन्हे शोध के शुरुआती दौर में पेरिओडांटिस की शिकायत थी, उनमें मनोविकार होने का खतरा 37 प्रतिशत ज्यादा था. वहीं उनमें अर्थराइटिस, टाइप-1 मधुमेह जैसे ऑटोइम्यून रोगों का खतरा 33 प्रतिशत, ह्रदय रोगों का खतरा 18 प्रतिशत, मधुमेह टाइप 2 होने का खतरा 26 प्रतिशत तथा कार्डियो मेटाबोलिक विकार तथा उनसे जुड़े रोगों का खतरा लगभग 7 प्रतिशत था.
शोध के निष्कर्षों में ज्यादा जानकारी देते हुए प्रमुख शोध लेखकों में से एक तथा यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड हेल्थ रिसर्च के डॉ जोहट सिंह चंदन ने बताया है कि इस शोध में सामने आया कि ऐसे रोगी जो पेरिओडांटिस से पीड़ित थे, उनमें तीन साल की अवधि में या तो निम्नलिखित बीमारियों में से कम से कम एक बीमारी थी या उसके होने का जोखिम काफी ज्यादा था. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने बताया की ज्यादातर लोग मुंह के स्वास्थ्य की अनदेखी करते हैं या समस्या की शुरुआत में उन पर ध्यान नही देते है , लेकिन अगर यह समस्याएं बढ़ जाए तो गंभीर रोग का कारण भी बन सकती हैं. गौरतलब है कि इस शोध में तीन वर्षों का समय लगा.

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