Bipasha Srivastava Topper: शिमला की बिपाशा चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज की एमफिल प्रवेश परीक्षा में बनी टॉपर

Bipasha Srivastava Topper: शिमला की बिपाशा चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज की एमफिल प्रवेश परीक्षा में बनी टॉपर
कहते हैं कि प्रतिभा के साथ अगर कड़ी मेहनत, लगन और परिवार का प्रोत्साहन भी मिल जाए तो बेटियां कोई भी सफलता के ऊंचाई को नाप सकती हैं. दरअसल, शिमला की बिपाशा श्रीवास्तव ने चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज की एमफिल प्रवेश परीक्षा में बाजी मारी है. बता दें, अखिल भारतीय परीक्षा में बिपाशा ने सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं. पढ़ें पूरी खबर.. (Bipasha Srivastava Topper)
शिमला: चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज की एमफिल प्रवेश परीक्षा के नतीजे घोषित हो गए हैं. विषम परिस्थियों को बावजूद शिमला की बिपाशा ने एमफिल (क्लिनिकल साइकोलॉजी) की कठिन प्रवेश परीक्षा में टॉप करके वहां दाखिला हासिल किया है. बिपाशा शिमला की रहने वाली हैं. इन्होंने शिमला से ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर पंजाब से ग्रेजुएशन किया. दरअसल, बिपाशा श्रीवास्तव को भरोसा था कि कठिन प्रवेश परीक्षा में क्रैक लेंगी लेकिन वो टॉपर होंगी इसका अंदाजा उन्हें नहीं था.
दरअसल, शिमला की बिपाशा श्रीवास्तव ने चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज सेक्टर 32 की एमफिल प्रवेश परीक्षा में टॉप किया है. सामान्य वर्ग की सिर्फ एक सीट के लिए हुई अखिल भारतीय परीक्षा में बिपाशा ने सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किए. बताया जा रहा है कि बचपन से मनोवैज्ञानिक बनने का सपना पाले बिपाशा श्रीवास्तव ने दसवीं दयानंद पब्लिक स्कूल और 12वीं की परीक्षा लोरेटो कन्वेंट तारा हॉल शिमला से उच्च प्रथम श्रेणी में पास की थी. इसके बाद उसने पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से बीए (साइकोलॉजी ऑनर्स) और दिल्ली विश्वविद्यालय से साइकोलॉजी में एमए अच्छे अंकों से उत्तीर्ण किया.
बेटियों पर अपनी इच्छाएं नहीं थोपे अभिभावक: बता दें, चंडीगढ़ के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज सेक्टर-32 में एमफिल में सिर्फ 7 सीटें हैं. इनमें से छह पंजाब यूनिवर्सिटी से मास्टर्स करने वालों के लिए आरक्षित हैं. वहीं, सामान्य वर्ग की सिर्फ एक ही सीट है जिसके लिए देश भर के सैकड़ों बच्चों ने अप्लाई किया था. बिपाशा की मां मृदुला श्रीवास्तव सतलुज जल विद्युत निगम में उप-महाप्रबंधक हैं और पिता प्रो. अजय श्रीवास्तव हाल ही में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए हैं. उनका कहना है कि बेटियों को अपने लक्ष्य निर्धारित करने की आजादी होनी चाहिए. अभिभावकों को उन पर अपनी इच्छाएं नहीं थोपनी चाहिए. उन्हें यदि अवसर दिए जाएं तो वह कोई ऊंचाई नाप सकती हैं.
