Maad festival Karsog: करसोग में हर्षोल्लास से मनाया गया माड़ पर्व, शिविर पूर्णिमा की ब्रह्म बेला में गौ पूजन कर निभाई गई परंपरा

Maad festival Karsog: करसोग में हर्षोल्लास से मनाया गया माड़ पर्व, शिविर पूर्णिमा की ब्रह्म बेला में गौ पूजन कर निभाई गई परंपरा
मंडी जिले के करसोग में पशुधन की समृद्धि और गौ पूजा से जुड़ा माड़ पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस दौरान शिशिर पूर्णिमा की ब्रह्म बेला में पशुओं को चरागाह ले जाकर औपर दारा खिलाकर गौ पूजन किया गया. बता दें कि करसोग में इस पूजा की परंपरा सदियों चली आ रही है. पढ़ें पूरी खबर.. (Maad festival Karsog) (Maad festival celebrated in Karsog)
करसोग: हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के करसोग में सदियों चली आ रही गौ पूजा माड़ की परंपरा को श्रद्धा के साथ आज निभाया गया. दरअसल, सतलुजघाटी के सुकेत, शिमला के सुन्नी (भज्जी) क्षेत्र, कुमारसैन और शांगरी क्षेत्र में गौ पूजा का "माड़" त्यौहार मनाने की परंपरा आज भी प्रचलित है. ऐसे में आधुनिकता के दौड़ में ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर निभाई जा रही ये प्रथा समाज को पशु प्रेम का सार्थक संदेश दे रही है. करसोग में शनिवार को माड़ पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया. शिशिर पूर्णिमा की ब्रह्म बेला में पशुओं को चरागाह ले जाकर दारा खिलाकर गौ पूजन किया गया. माड़ पर्व के दौरान गाय को लक्ष्मी और बैल को नारायण का स्वरूप मानकर पूजा कर लोगों ने सुख समृद्धि की कामना की गई.
पौराणिक गीत गाकर निभाई गई परंपरा: शिशिर पूर्णिमा के दिन सुबह 4 बजे सबसे पहले पशुओं को नहला-धोकर खुरों और सींगों में घी लगातर, शरीर पर आटे और हल्दी के जल से सुन्दर चित्र अंकित किए गए. इसके साथ गौ धन के गले में जंगली फूल भूं और सतराड़ी और गलदावरी की मालाएं पहना कर गीत के साथ गौ सेवा के भाव को अभिव्यक्त किया. इसके बाद हर घर में गायो बान्हे भगवे कपड़े, बलहदुए पैहनी पागा, गाईये मेरे लखमी, बल्द हुंदा नरैण...गाये बान्हे डोलड़े,बलहुए बान्ही भेरी जैसे लोक गीत गा कर महिलाओं ने आपस में "मोड़ी" (भूनी गंदम,अखरोट की गिरी,गुड़) बांटे.
ये है मान्यता: सुकेत संस्कृति साहित्य और जन-कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाॅ. हिमेंद्र बाली का कहना है कि सहस्रबाहु (सहस्रार्जुन) के सम्मान में जमदग्नि ऋषि ने तत्तापानी में भव्य समारोह का आयोजन किया था. इस अलौकिक आयोजन से स्वर्ग में आहूत कामधेनु गाय का रहस्य सहस्रार्जुन को पता लगने के कारण ऋषि से गाय से प्राप्त करना चाहा. कामधेनु ने सहस्रार्जुन की सारी सैना का नाश कर दिया. जिससे क्रोधावेश में सहस्रार्जुन ने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया. कामधेनु सहस्रार्जुन की सैना को नष्ट कर स्वर्ग चली गई. उन्होंने कहा कि कामधेनु गाय की रक्षा के लिये जमदग्नि ऋषि के प्राणोत्सर्ग की स्मृति में सतलुज घाटी के तत्तापानी व सुन्नी के क्षेत्र में माड़ पर्व मनाने की परंपरा है.
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