Gochi Festival: यहां पुजारी के बाण तय करते हैं बेटों का जन्म, निशाने पर जितने लगेंगे तीर...उतने पैदा होंगे 'वीर'

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Published : Feb 2, 2023, 5:16 PM IST

Updated : Feb 2, 2023, 9:06 PM IST

Gochi Festival celebrated in Lahaul Spiti.

हिमाचल प्रदेश के जिला लाहौल स्पीति में आज भी गोची उत्सव मनाने की परंपरा हैं. ये उत्सव पुत्र प्राप्ति से जुड़ा है. आखिर क्या होता है गोची उत्सव ? क्या है इससे जुड़ी कहानी और परंपरा? ये सब जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर... (Gochi Festival celebrated in Lahaul Spiti) (what is Gochi Festival) (Gochi Festival in Lahaul) (Gochi Festival in Himachal)

लाहौल स्पीति: हिमाचल प्रदेश का लाहौल स्पीति जिला इन दिनों बर्फ के रेगिस्तान जैसा नजर आता है. जहां तक नजर जाती है मानो सर्दी से बचने के लिए पहाड़ों ने भी बर्फ की रजाई ओढ़ ली हो. सर्दियों में होने वाली बर्फबारी इस इलाके को अगले कई महीनों तक देश और दुनिया से अलग करके रखेगी, कई इलाकों में बिजली पानी की किल्लत लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी लेकिन इस सबके बावजूद यहां मनाए जाने वाले तीज-त्योहार लोगों को खुशियां मनाने का मौका देते हैं और इन्हें लाहौल स्पीति के लोग पूरी शिद्दत के साथ मनाते हैं. इन्हीं में से एक त्योहार है गोची उत्सव, जो लाहौल स्पीति की गाहर घाटी में मनाया जाता है.

बाणों से होता है बेटों की पैदाइश का फैसला- सर्दियों में लाहौल-स्पीति की गाहर घाटी में गोची उत्सव को मनाने की परंपरा है. इस पर्व में एक अनोखी परंपरा है जिसमें बाण चलाकर बेटों के पैदा होने की भविष्यवाणी की जाती है. इस पुत्रोत्सव में शामिल लोग अपने इष्ट देवी-देवताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि इष्ट देवी-देवताओं की कृपा से ही पुत्रहीन परिवारों को पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी. इस गोची उत्सव में केवल वही परिवार हिस्सा लेते हैं. जिनके घर में कुछ वक्त पहले बेटे का जन्म हुआ हो.

Gochi Festival celebrated in Lahaul Spiti.
लाहौल स्पीति की गाहर घाटी में मनाया जाता है गोची उत्सव

पुजारी चलाता है बाण- गाहर घाटी के बिलिंग, ग्वाजांग, कारदंग, लोअर केलांग और अप्पर केलांग में इन दिनों गोची उत्सव का आयोजन किया जा रहा है. इस खास अवसर पर लोग पुजारी के घर एकत्रित होकर युल्सा देवता (बौद्ध धर्म) की आराधना करते हैं. इसके बाद पुजारी और सहायक पुजारी पारंपरिक वेशभूषा में तैयार होकर उन घरों में जाते हैं जिन घरों में बेटा पैदा हुआ हो. उस घर के लोग धार्मिक कार्यों को पूरा करने के लिए खुलसी यानि भूसे से भरी हुई बकरी की खाल, पोकन यानी आटे की तीन फीट ऊंची आकृति, छांग मतलब मक्खन से बनी बकरी की आकृति और मशाल देते हैं.

Gochi Festival celebrated in Lahaul Spiti.
पुजारी के बाणों से तय होता है कि कितने आगामी वर्ष में कितने बेटे पैदा होंगे

इस सामान को देव स्थान पर विधिपूर्वक स्थापित किया जाता है. जिसके बाद पुजारी बकरी की खाल पर धनुष-बाण से निशाना लगाता है. बाणों की संख्या पुजारी तय करता है और जितने बाण निशाने पर लगते हैं उसी आधार पर पुजारी आगामी वर्ष में बेटे पैदा होने की भविष्यवाणी करता है. इस त्योहार में शामिल होने वाले परिवारों को उम्मीद रहती है कि इस साल उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी.

Gochi Festival celebrated in Lahaul Spiti.
गोची उत्सव वे लोग मनाते हैं जिसके घर पर पुत्र का जन्म हुआ हो.

गोची उत्सव पर बेटा पैदा होने की पार्टी- जिला परिषद सदस्य कुंगा बोध ने बताया कि सदियों से घाटी में इस परंपरा का पालन किया जा रहा है और इस परंपरा के प्रति लोगों में श्रद्धा भी बहुत है. गोची उत्सव उन लोगों के लिए मनाना काफी आवश्यक होता है जिन घरों में पुत्र की प्राप्ति हुई हो. वह परिवार अपने घर पर एक भव्य आयोजन करते हैं और स्थानीय लोग भी उस आयोजन में शामिल होते हैं. जिसमे पारंपरिक खान-पान से मेहमानों की आवभगत की जाती है. जिन परिवारों में बेटा पैदा हुआ है वही परिवार इस साल धनुष बाण वाली परंपरा में लगने वाली सभी सामग्री का इंतजाम करते हैं. इस वर्ष जिन परिवारों में पुत्र पैदा होगा अगले साल वो परिवार इस परंपरा को आगे बढ़ाएगा.

Gochi Festival celebrated in Lahaul Spiti.
गोची उत्सव को पूरी शिद्दत से मनाते हैं लाहौल के लोग

लाहौल घाटी के अप्पर केलांग में इस साल स्थानीय निवासी शरभ, तेनजिन, गुरमेध्य, राहुल और शाक्या के घर में गोची उत्सव मनाया गया. इन लोगों का कहना है कि बीते साल देवता के पुजारी के द्वारा तीर चलाए गए थे और बकरी की खाल पर यह तीर लगे थे. उससे यह साबित होता है की उनके इलाके में पुत्र पैदा होंगे. उनके घर पर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है और इसी के चलते उनके घर में यह त्योहार धूमधाम से मनाया गया है.

पुत्र प्राप्ति के लिए अपने इष्ट देवता का शुक्रिया करते ग्रामीण
पुत्र प्राप्ति के लिए अपने इष्ट देवता का शुक्रिया करते ग्रामीण

गोची उत्सव के पीछे की कहानी- लाहौल घाटी के प्रसिद्ध साहित्यकार मोहन लाल रेलिंगपा का कहना है कि आधुनिक दौर में भी लाहौल स्पीति में पारंपरिक परंपराओं का पालन किया जा रहा है और आज भी लोग इन त्योहारों में हिस्सा लेते हैं. मोहन रेलिंगपा कहते हैं कि गोची उत्सव से जुड़ी कहानी के मुताबिक यूल्सा देवता को खुश करने के लिए गोची में मानव बलि दी जाती थी. उस समय ये परंपरा इलाके की खुशहाली के लिए निभाई जाती थी और जिस व्यक्ति की बलि दी जाती थी उसे जिंदा जलाया जाता था.

जिन घरों में बेटा पैदा हुआ है वहां मनाया जाता है गोची उत्सव का जश्न
जिन घरों में बेटा पैदा हुआ है वहां मनाया जाता है गोची उत्सव का जश्न

कहा जाता है कि प्राचीनकाल में एक लामा भिक्षा मांगते हुए केलांग में एक महिला के घर पहुंच गया. घर में बूढ़ी महिला रो रही थी, लामा ने रोने का कारण पूछा तो महिला ने बताया कि उसका जवान बेटा अगले दिन यूल्सा देवता को कुर्बान हो जाएगा. यह सुनकर बोध लामा अचंभित हो गया और उन्होंने कहा कि उनके बेटे की जगह वो कुर्बान हो जाएंगे. बलि से पूर्व लबदकपा (देवता का पुजारी) ने लामा को शीत जल कुंड में 9 बार डुबकी लगाने को कहा.

गोची उत्सव में खुलसी यानि भूसे से भरी हुई बकरी की खाल पर निशाना लगाते हैं
गोची उत्सव में खुलसी यानि भूसे से भरी हुई बकरी की खाल पर निशाना लगाते हैं

इस पवित्रीकरण प्रक्रिया में लामा पर ठंड का कोई असर नहीं हुआ. क्योंकि उन्होंने अपने शरीर पर मक्खन की मालिश कर रखी थी. उसके बाद लामा को तंग कोठरी में ले जाया गया. जहां उन्हें काठू अन्न की 9 प्याला शराब (मोटे अनाज से बनी शराब) पीने को कहा गया. अंधेरे का फायदा उठाकर लामा ने शराब को बकरी के आमाशय के थैले में डाल दिया और खुद बेहोशी की मुद्रा बनाये चित हो गए. जिसके बाद गांववालों ने कोठरी बंद करके उसमें आग लगा दी.

गोची उत्सव पर यूल्सा देवी की पूजा होती है जिन्हें प्राचीन काल में मानव बलि चढ़ाई जाती थी
गोची उत्सव पर यूल्सा देवी की पूजा होती है जिन्हें प्राचीन काल में मानव बलि चढ़ाई जाती थी

अगले दिन गांववासी देखने के लिए पहुंचे कि यूल्सा देवता ने बलि स्वीकार की है या नहीं. तो लोग लामा को समाधि की मुद्रा में देख हैरान रह गए. तब लामा ने गांववासियों को कहा कि यूल्सा देवता ने उन्हें बाहों में उठाते हुए कहा कि वो गोची के रस्मो रिवाज से अति प्रसन्न हैं और आज के बाद वे मानव व पशु बलि की बजाए आटे से बनी आकृति पोकन से ही खुश होंगे तब से लेकर यह प्रथा आज तक जारी है. इलाके के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इलाके की शांति के लिए बलि या धनुष बाण चलाने की परंपरा था जो धीरे-धीरे वक्त के साथ पुत्र प्राप्ति के उत्सव में बदल गई.

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Last Updated :Feb 2, 2023, 9:06 PM IST
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