कृषि विज्ञान केंद्र धौला कुआं के इस सफल प्रयोग से हिमाचल में नहीं रहेगा पशुचारे का संकट, जानिए कैसे

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Published : Jun 25, 2022, 5:54 PM IST

Agriculture in Sirmaur District

कृषि विज्ञान केंद्र धौला कुआं (Krishi Vigyan Kendra Dhaula Kuan) ने पशुचारे के संकट की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है. कृषि विज्ञान केंद्र प्रबंधन के मुताबिक पशुचारे के संकट को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र ने अपनी जमीन में संकर उन्नत किस्म चारे की दो किस्मों न्यूट्रीफीड और न्यूट्रीफास्ट का बीज उगाया गया. इसका परिणाम यह निकला कि अप्रैल माह के पहले सप्ताह में इसकी बिजाई की गई थी. मई माह में यह चारे के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा. अब तक सुबह व शाम इसकी कई बार कटाई हो चुकी है. फिलहाल चारे का प्रयोग कृषि विज्ञान केंद्र में पाले जा रहे 30 मवेशियों के लिए किया जा रहा है. इसकी खासियत ये है कि काटे जाने के सप्ताह भर के भीतर यह दोबारा काटने के लिए तैयार हो रहा है. इसको लेकर अब किसानों को भी जागरूक किया जा रहा है.

नाहन: कृषि विज्ञान केंद्र धौला कुआं (Krishi Vigyan Kendra Dhaula Kuan) ने पशुचारे के संकट की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है. लिहाजा अब प्रदेश सहित जिला सिरमौर के किसानों को पशु चारे के संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा. दरअसल पड़ोसी राज्य पंजाब व हरियाणा से पशुचारे की आपूर्ति की जाती रही हैं, लेकिन इस बार संबंधित राज्यों से गेहूं की तूड़ी के रूप में की जाने वाले पशुचारे की सप्लाई को बंद कर दिया गया. इसके चलते काफी समय से प्रदेश सहित जिला सिरमौर के किसानों व दुध उत्पादकों को भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसी संकट को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र धौला कुआं ने एक सफल प्रयोग कर किसानों की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है.

कृषि विज्ञान केंद्र प्रबंधन के मुताबिक पशुचारे के संकट को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र ने अपनी जमीन में संकर उन्नत किस्म चारे की दो किस्मों न्यूट्रीफीड और न्यूट्रीफास्ट का बीज उगाया गया. इसका परिणाम यह निकला कि अप्रैल माह के पहले सप्ताह में इसकी बिजाई की गई थी. मई माह में यह चारे के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा. अब तक सुबह व शाम इसकी कई बार कटाई हो चुकी है. फिलहाल चारे का प्रयोग कृषि विज्ञान केंद्र में पाले जा रहे 30 मवेशियों के लिए किया जा रहा है. इसकी खासियत ये है कि काटे जाने के सप्ताह भर के भीतर यह दोबारा काटने के लिए तैयार हो रहा है. इसको लेकर अब किसानों को भी जागरूक किया जा रहा है.

बता दें कि कई पशुपालक बाहरी राज्यों से चारा मंगा रहे हैं. वर्तमान समय में चारे का दाम 2 हजार रुपये क्विंटल के करीब पहुंच गए हैं. जोकि पिछली बार इस समय 700 से 800 के करीब थे. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कृषि विज्ञान केंद्र धौला कुआं के विषयवाद विशेषज्ञ डा. सौरव शर्मा ने बताया कि इस बार पड़ोसी राज्यों से तूड़ी की सप्लाई बंद होने से यहां के किसानों को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है. उन्होंने बताया कि इसी समस्या को देखते हुए अप्रैल माह में संकर उन्नत किस्म को उगाया गया, ताकि किसानों को इस बारे जागरूक किया जा सके कि वह अकेले तूड़ी पर ही निर्भर न रहे.

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मई के प्रथम सप्ताह से इसकी कटिंग शुरू की गई. अब प्रतिदिन 150 से 200 किलो यह चारा काटा जा रहा है. उन्होंने बताया कि यदि किसान इस चारे का प्रयोग 100 दिन भी करता है, तो कम से कम एक लाख रुपये की तूड़ी की बचत होगी. उन्होंने बताया कि मार्च और अप्रैल माह में इसे उगाकर अगस्त से सितंबर तक इसका प्रयोग हरे चारे के तौर पर होगा. किसान इसमें सूखा चारा यानी भूसे का मिश्रण कर मवेशियों को खिला सकता है. उन्होंने कहा कि उन्नत किस्म के इस चारे की पैदावार काफी तेज है. यह चारा चरी जैसे अन्य चारों से काफी एडवांस और मवेशियों की सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है. उन्होंने सभी किसानों से इस चारे को उगाने का आहवान किया.

वहीं, बातचीत में कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पंकज मित्तल ने बताया कि दोनों ही हाईब्रीड के पशुचारों में शुमार है. न्यूट्रीफास्ट किस्म के चारे में न्यूट्रीफीड के मुकाबले पैदावार काफी तेज है. सप्ताह भर में यह पशुचारा काटने के लिए तैयार हो जाएगा. इसमें अधिक प्रोटीन, पाचन के लिए ज्यादा फायदेमंद, पैदावार में शीघ्रता, अधिक मिठास और चबाने में काफी नरम है. उन्होंने बताया कि न्यूट्रीफीड बीज 600-700 रुपए किलोग्राम है. जबकि न्यूट्रीफास्ट 1200 रुपए किलोग्राम है. उन्होंने बताया कि एक एकड़ जमीन पर 5 किलो बीज से सालभर का संकट दूर हो सकता है. दोनों ही चारे चार माह तक रोजाना सुबह-शाम काटे जा सकते हैं.

उन्होंने कहा कि पशुचारे के संकट को देखते हुए इस टेक्नोलॉजी को इजाद किया गया. खासियत यह भी है कि यह पशुचारा वर्षा आधारित भूमि पर भी उगाया जा सकता है. इससे किसानों पशुचारे का संकट नहीं रहेगा और किसानों पर आर्थिक मार भी नहीं पड़ेगी. कुल मिलाकर पशु चारे की समस्या को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र धौला कुआं द्वारा किया गया यह प्रयास सराहनीय है और इससे किसानों को काफी हद तक बाहरी राज्यों से सप्लाई होने वाली तूड़ी पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.

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