रोहतक: किसानों के मसीहा कहे जाने वाले सर छोटू राम की आज 75वीं पुण्यतिथि है. उनकी पुण्यतिथि पर प्रदेश भर के नेताओं ने उनको श्रद्धांजलि दी. इस बीच ईटीवी भारत हरियाणा की टीम ने उनके वंशजों से बातचीत की और ये जानने की कोशिश की कि अगर आज छोटुराम जिंदा होते तो क्या होता? सर छोटू राम के वंशजों ने माना कि अगर आज वो जिंदा होते तो कड़ाके की ठंड में अपने हकों की लड़ाई के लिए धरने पर बैठे किसान इतने मजबूर नहीं होते. क्योंकि ऐसी स्थिति में वो अपने घर बार को छोड़कर किसानों के साथ धरने पर बैठ जाते.
ईटीवी भारत की टीम सर छोटू राम के घर पहुंची और उनके परिवार के सदस्यों से बातचीत की. सर छोटू राम के पड़-पौते की बहू सरिता और उसके बेटे का कहना है कि दादा जी (सर छोटू राम) बिल्कुल शांत स्वभाव के थे, लेकिन किसानों पर वो जान छिड़कते थे.
शांत स्वभाव के थे सर छोटू राम
सर छोटू राम को किसानों का मसीहा ऐसे ही नहीं कहा जाता, वो किसानों का दर्द समझते थे. सरिता का कहना है कि अगर वो जिंदा होते तो किसानों को धरने प्रदर्शन करने की जरूरत ही नहीं होती, वहीं पेशे से जज सरिता के बड़े बेटे समीर का कहना है कि अगर वो जिंदा होते तो वो किसानों का साथ देते और धरने पर बैठ जाते चाहे उन्हें प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का ही विरोध क्यों ना करना पड़े.
वहीं जब आम किसानों से भी सर छोटू राम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि किसानों के हक के लिए सर छोटू राम जान छिड़कते थे और उनके हक के लिए हमेशा आगे रहते थे. अगर आज सर छोटू राम जिंदा होते तो किसानों की ये हालत नहीं होती.
कौन थे सर छोटू राम?
बता दें कि छोटू राम जन्म 24 नवंबर, 1881 में हरियाणा के एक छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था. उन्होंने ब्रिटिश शासन में किसानों के अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने के लिए जाना जाता था. वे पंजाब प्रांत के सम्मानित नेताओं में से थे और उन्होंने 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनावों के बाद अपने विकास मंत्री के रूप में कार्य किया. उन्हें नैतिक साहस की मिसाल और किसानों का मसीहा माना जाता था. उन्हें दीनबंधू भी कहा जाता है.
ऐसे पड़ा छोटू नाम
उनका असली नाम रिछपाल था और वो घर में सबसे छोटे थे, इसलिए उनका नाम छोटू राम पड़ गया. उन्होंने अपने गांव से पढ़ाई करने के बाद दिल्ली में स्कूली शिक्षा ली और सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया. साथ ही अखबार में काम करने से लेकर वकालत भी की.
कहा जाता है कि सर छोटूराम बहुत ही साधारण जीवन जीते थे. और वे अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा रोहतक के एक स्कूल को दान कर दिया करते थे. वकालत करने के साथ ही उन्होंने 1912 में जाट सभा का गठन किया और प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया.
असहयोग आंदोलन से हुए थे अलग
1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो वो इसके अध्यक्ष बने. लेकिन बाद में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से असहमत होकर इससे अलग हो गए. उनका कहना था कि इसमें किसानों का फायदा नहीं था. उन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया और 1937 के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली थी और वो विकास व राजस्व मंत्री बने.
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छोटूराम को साल 1930 में दो महत्वपूर्ण कानून पास कराने का श्रेय दिया जाता है. इन कानूनों के चलते किसानों को साहूकारों के शोषण से मुक्ति मिली. ये कानून थे पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस, 1934 और द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1936. इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे.