पाकिस्तान से हरियाणा आई हनुमान स्वरूप धारण की परंपरा, अंग्रेजों और दशहरे की छुट्टी से जुड़ा है इतिहास

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Published : Sep 18, 2022, 4:31 PM IST

Hanuman Swaroop in Panipat

देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से पानीपत आई हनुमान स्वरूप धारण (Hanuman Swaroop in Panipat) करने की परंपरा आज भी कायम है. बताया जाता है कि अंग्रेजों के राज में दशहरे की छुट्टी बंद कर दी थी. अंग्रेजों ने दोबारा छुट्टी करने के लिये हिंदू समाज को एक चुनौती दी थी. जिसके बाद से ये परंपरा शुरू हुई.

पानीपतः हरियाणा में बरसों से चली आ रही हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा (Hanuman Swaroop in Panipat) के 40 दिन व्रत की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इस बार दशहरा 5 अक्टूबर 2022 (Dussehra 2022) को है. इसलिये अगस्त के आखिरी सप्ताह में ये स्वरूप धारण करने का व्रत शुरू हो चुका है. हनुमान स्वरूप में व्रत धारण कर करने की ये परंपरा पाकिस्तान से (Hanuman Swaroop tradition in Pakistan) चली आ रही है. पाकिस्तान के लैय्या जिले में 90 साल से पहले शुरू हुई हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा पानीपत में खासकर लैय्या बिरादरी की देन है.

स्वरूप धारण करने के पीछे उनका उद्देश्य राम भगत पवन-पुत्र हनुमान के आदर्शों (ideals of hanuman) का प्रचार-प्रसार कर समाज में फैली कुरीतियाें को दूर करना है. इस समाज में हनुमान स्वरूप को सम्मान की नजर से देखा जाता है. यही वजह है कि इस दौरान कठिन नियमाें का पालन करने की शर्त भी लोगों को डिगा नहीं पाती. पानीपत में 1500 से ज्यादा लोग ब्रह्मचर्य जैसे कठोर नियमाें का पालन करते हुए हनुमान स्वरूप बनकर मंदिराें में बैठे हैं.

हनुमान स्वरूप पानीपत

हनुमान स्वरूप बनने का क्या है नियम- हनुमान स्वरूप दशहरा से ठीक 40 दिन पहले धारण किया जाता है. मगर समय के अभाव में कुछ 20 दिन पहले इसकी शुरूआत करते हैं. इस दौरान ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन, जमीन या लकड़ी के तख्त पर सोना, 24 घंटे में एक बार अन्न ग्रहण कराना, नंगे पैर रहना, लाल लंगोट कसने पर ध्यान दिया जाता है. इस दौरान मंदिर ही इन हनुमान स्वरूपों का ठिकाना होता है.

अष्टमी से लेकर दशहरे के अगले दिन भरत मिलाप पर नगर परिक्रमा का दौर चलता है. इस दौरान हनुमान स्वरूप ढोल नगाड़ों के साथ भक्तों के घर जाते हैं. भक्त अपनी पिछली मन्नत पूरी होने पर उन्हें घर पर आमंत्रित कर उनका खूब सम्मान करते हैं. इन चार दिनाें में हनुमान स्वरूप पूरी तरह से अन्न का भी त्याग कर देते हैं. दशहरे से ठीक दो दिन बाद हरिद्वार पहुंचकर गंगा किनारे हवन-यज्ञ के साथ इसका समापन हो जाता है.

Hanuman Swaroop in Panipat
पाकिस्तान से पानीपत पहुंची है परंपरा

एक परिवार पाकिस्तान से लाया था स्वरूप- पाकिस्तान में इस परंपरा (Hanuman Swaroop tradition in Pakistan ) की शुरूआत करने वालाें में से एक भक्त मूलचंद ने 14 वर्ष की आयु में हनुमान स्वरूप धारण किया था. मृत्यु तक वो इसे निभाते रहे. अपने पिता के समय में ही उनके बेटे जीवन प्रकाश ने परिवार की परंपरा को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. जीवन प्रकाश पिछले 34 साल से पूरी शुद्धि के साथ इसे निभाते चले आ रहे हैं.

Hanuman Swaroop in Panipat
दशहरा से 40 दिन पहले शुरू होती है हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा

स्वरूप धारण करने वालों की संख्या 15 सौ के पार- महावीर बाजार स्थित हनुमान मंदिर में 40 दिन के व्रत के साथ हनुमान स्वरूप धारण कर बैठे जीवन प्रकाश ने बताया कि उनका परिवार पाकिस्तान से आया था. 1947 में देश का बंटवारा होने के बाद पानीपत में सिर्फ भक्त मूलचंद और दुलीचंद हनुमान स्वरूप धारण करते थे. मगर बाद में धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती चली गई. पानीपत में अब इनकी संख्या बढ़कर 1500 हो चुकी है. उन्हाेंने बताया कि हनुमान स्वरूप धारण करने के पीछे मकसद हनुमान के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों को दूर करना है.

Hanuman Swaroop in Panipat
40 दिन तक रखना पड़ता है व्रत

क्या है मान्यता- बताया जाता है कि आजादी से पहले पाकिस्तान में सरहंद के पास मुस्लिम समाज के कहने पर अंग्रेज अधिकारियों ने दशहरा पर्व का अवकाश बंद कर दिया था. इसको लेकर हिदू समाज इकट्ठा होकर अंग्रेज अधिकारियों से मिला. उस समय अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि हनुमान ने 400 योजन समुंद्र लांघा था. यदि तुम सरहंद के दरिया (Sarhand river in Pakistan) को पार करके दिखा दो, तो दशहरे का अवकाश मिलेगा.

उस समय एक सिद्ध पुरुष ने इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया. उन्होंने इसके लिए एक व्यक्ति को तैयार किया. उसे बलिदान के लिए कहा गया. उस व्यक्ति को सिंदूर लगाया गया. चालिस दिन के व्रत करवाए गए. सरहंद दरिया को उस व्यक्ति ने उड़कर पार किया. दूसरे किनारे पर जाने के बाद जब वह वापस लौटा तो उसके लिए शैय्या तैयार थी. शैय्या पर पहुंचने के बाद उसने प्राण त्याग दिए. इसके बाद अंग्रेज अधिकारी ने दशहरा की छुट्टी देना शुरू कर दिया. उसी समय से हनुमान स्वरूप बनने के परंपरा शुरु हुई.

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