हरियाणा: रहस्यमयी बुखार से एक ही गांव में 8 बच्चों ने तोड़ा दम, स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप

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Published : Sep 12, 2021, 7:56 PM IST

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पलवल चिल्ली गांव (Chilli village feaver) में बुखार का प्रकोप तेजी से फैल रहा है. गांव के दर्जनों बच्चे बुखार की चपेट में हैं. ये बुखार इतना खतरनाक है कि पिछले दस दिनों में आठ बच्चों की मौत हो गई है.

पलवल: जिला पलवल के हथीन विधानसभा के गांव चिल्ली में रहस्यमयी बुखार का प्रकोप छाया है. जानकारी के मुताबिक पिछले 10 दिनों में आठ बच्चों की मौत (Eight Child Death) हो चुकी है. ग्रामीण का कहना है कि बच्चों को पहले डेंगू बुखार (Dengue Fever) हुआ था जिससे उनकी मौत हुई है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग ने डेंगू बुखार से मौतों की पुष्टि नहीं की है, लेकिन एक ही गांव में 8 बच्चों की मौत हो जाने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने जांच कर असली वजह का पता लगाना शुरू कर दिया है.

स्वास्थ्य विभाग की तरफ से अब गांव में स्वास्थ्य कर्मियों की टीमें घरों में जाकर लोगों को जागरूक कर रही है, बुखार से पीड़ित लोगों की बच्चों की डेंगू और मलेरिया की जांच की जा रही है. इतना ही नहीं बुखार से पीड़ित लोगों की कोविड की भी जांच की जा रही है. स्वास्थ्य विभाग की टीम बीमार लोगों के सैंपल लिए जा रहे हैं. ये भी जांच की जा रही है कि ये लोग कहीं कोरोना की चपेट में तो नही आ रहे है.

रहस्यमयी बुखार से एक ही गांव में 8 बच्चों ने तोड़ा दम, देखिए वीडियो

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अभी भी इस बुखार की चपेट में गांव के दर्जनों बच्चे आए हुए हैं. इनमें से कुछ बच्चों का इलाज अलग-अलग प्राईवेट अस्पतालों में चल रहा है. हाल ही के दिनों से बुखार के मरीजों की संख्या एक दम से बढ़ने लगी है. ग्रामीणों का कहना है कि बुखार के कारण प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं, जिनकी रिकवरी नहीं होने पर मौतें हुई हैं. ऐसा अक्सर डेंगू बुखार में ही होता है.

वहीं गांव के सरपंच नरेश कहना है कि पिछले 10 दिनों में बुखार के कारण गांव में आठ बच्चों की मौत हो चुकी है और करीब 50 से 60 बच्चे अभी भी बुखार की चपेट है. जिनका उपचार चल रहा है. उन्होंने आरोप भी लगाया कि अगर समय रहते स्वास्थ्य विभाग गांव की सुध ले लेता तो बच्चों को मौत से बचाया जा सकता था.

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गांव में कैंप लगा कर जांच कर रही है स्वास्थ्य विभाग की टीम

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आपको बता दें कि गांव में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कुछ नहीं है. चार हजार की आबादी के इस गांव में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं. गांव का एकमात्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उटावड चार किलोमीटर दूर है. जिस कारण बीमार होने पर ग्रामीण सरकारी अस्पतालों की बजाए झोला छाप डाक्टरों पर इलाज कराना पसंद करते हैं.

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जांच के बाद ग्रामीणों को दवाई भी दे रही है टीम

ग्रामीणों का कहना है कि यहां पर स्वास्थ्य कर्मी सालों साल तक नहीं आते. जिससे लोगों में जागरूकता का भी अभाव है. वहीं ग्रामीणों ने पेयजल की पाइप लाइनों से रबड की पाइप डालकर घरों में लगाई हुई हैं. ये लाइनें दूषित पानी से होकर गुजरती है. घरों में सप्लाई के साथ दूषित जलापूर्ति होती है. वहीं गलियों में साफ सफाई की व्यवस्था भी ठीक नहीं. ऐसे मख्खी मच्छरों से बीमारियों का खतरा सबसे ज्यादा है.

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