Tokyo Olympic: पिता चलाते थे घोड़ा गाड़ी, बेटी कर रही राष्ट्रीय टीम की कप्तानी

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Published : Jun 24, 2021, 3:29 PM IST

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भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था. घर चलाने के लिए, उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे, इसके बावजूद रानी रामपाल ने हॉकी के दम पर अपने आप को उस मुकाम पर खड़ा किया, जहां दुनियाभर के खिलाड़ी पहुंचने का सपना देखते हैं.

चंडीगढ़: रानी रामपाल (Rani Rampal) वो नाम जिसे दुनियाभर के खिलाड़ी अदब से लेते हैं. गरीबी और हजारों मुसीबतों को झेलते हुए हुआ रानी रामपाल आज उस मुकाम तक पहुंची हैं, जिसे पाना हर खिलाड़ी का सपना होता है. रानी रामपाल ओलंपिक (Tokyo Olympic) में महिला हॉकी टीम का बतौर कैप्टन नेतृत्व करेंगी, जो कि पूरे हरियाणा के लिए गर्व की बात है, लेकिन आज उनकी इस सफलता से कई गुना बड़ा है उनका वो संघर्ष जो यहां तक पहुंचने में रानी रामपाल ने किया.

संघर्ष और मुश्किलों से भरा रहा रानी का सफर

रानी रामपाल हरियाणा के शाहबाद मारकंडा (Shahbad Markanda, Kurukshetra) की रहने वाली हैं. उनका जन्म 4 दिसंबर 1994 को बेहद गरीब परिवार में हुआ था. घर चलाने के लिए, उनके पिता घोड़ा गांड़ी चलाते थे और ईंटें बेचते थे, लेकिन पांच लोगों के परिवार के लिए ये बहुत कम था. पिता दिन के मुश्किल से 100 रुपये कमा पाते थे. कच्चा मकान था जो बारिश के वक्त घर के अंदर पानी टपकता था.

देखिए रानी रामपाल की संघर्ष कर शिखर तक पहुंचने की कहानी

रानी के पिता बताते हैं कि तेज बारिश के दिनों में उनके कच्चे घर में पानी भर जाता था और रानी अपने दोनों भाइयों के साथ मिल कर, बारिश के रुकने की प्रार्थना करती थीं. रानी के लिए बचपन में स्कूल जाना भी मुश्किल था. किसी तरह घरवालों ने स्कूल में दाखिला करवाया था.

समाज के ताने सुनकर भी नहीं रुकी रानी

रानी रामपाल के पिता रामपाल बताते हैं कि आस पड़ोस के लोग ताने देते थे. रानी रामपाल की माता को ना जाने कितनी तरह की बातें सुनाते थे, लेकिन मानों रानी के सिर पर हॉकी का जुनून सवार था. रानी ने लोगों की एक ना सुनी. जिसका नतीजा ये हुआ कि आज रानी रामपाल महिला हॉकी का चमकता सितारा बन गई हैं.

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घोड़ा गाड़ी चलाकर परिवार का गुजर-बसर करते ते रानी के पिता

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...जब रानी की जिद्द के आगे नहीं चली घरवालों की

वो जब 6-7 साल की थीं, तब स्कूल से आते-जाते खेल के मैदान को देखती थीं. लड़के वहां हॉकी खेलते थे और उन्हें वो खेल अच्छा लगता था. एक दिन घर आकर रानी अपने पिता से बोलीं कि वो भी हॉकी खेलना चाहती है. घरवालों ने पहले तो मना किया, लेकिन रानी ने तो ठान लिया था कि हॉकी खेलनी है तो खेलनी है. रानी की इस जिद के आगे उनके पिता की भी एक ना चली. आखिरकार माता पिता मान गए, हालांकि रिश्तेदारों और समाज वालों ने भी घरवालों के फैसले का विरोध किया, लेकिन फिर भी पैरेंट्स ने बेटी का साथ देने का फैसला किया.

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मैदान में तैयारी करती हुईं रानी रामपाल

द्रोणाचार्य अवार्डी कोच बलदेव सिंह ने सिखाई हॉकी

इसके बाद रानी ने शाहबाद हॉकी एकेडमी में दाखिला लिया. उस वक्त उनके कोच थे द्रोणाचार्य अवॉर्ड पाने वाले बलदेव सिंह (Baldev Singh, Hockey Coach). उन्होंने पहले तो एडमिशन देने से मना कर दिया, लेकिन जब रानी का खेल देखा तो खुश हो गए और दाखिला दे दिया.

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कोचिंग और किट के लिए नहीं थे पैसे

इसके बाद दिने बीतते गए और रानी प्रैक्टिस करती गई. परिवार गरीब था राह में मुश्किलें आना भी लाजमी था. कई बार उन्होंने हॉकी छोड़ने के बारे में सोचा, क्योंकि उनके परिवार के पास उनकी कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे. लेकिन कोच बलदेव सिंह ने और सीनियर खिलाड़ियों ने उनका साथ दिया. उन्हें ट्रेनिंग के लिए हॉकी की पुरानी किट मुहैया कराई.

पहली बार 2009 में भारतीय टीम में शामिल हुई रानी

इसके बाद रानी ने जी तोड़ मेहनत की. जब वो 15 साल की थीं, तभी भारतीय क्रिकेट टीम में खेलने का मौका मिल गया. जून, 2009 में उन्होंने रूस में आयोजित चैम्पियन्स चैलेंज टूर्नामेंट खेला. फाइनल मुकाबले में चार गोल किए और इंडिया को जीत दिलाई. उन्हें ‘द टॉप गोल स्कोरर’ और ‘द यंगेस्ट प्लेयर’ घोषित किया गया.

200 से ज्यादा इंटरनेशनल मैच खेल चुकी हैं रानी

नवंबर 2009 में एशिया कप में टीम इंडिया ने सिल्वर मेडल जीता था. इस टूर्नामेंट में भी रानी ने शानदार प्रदर्शन किया था. तब से लेकर अब तक उन्होंने 200 से ज्यादा इंटरनैशनल मैच खेल लिए हैं. कई सारे रिकॉर्ड्स तोड़े हैं, कई रिकॉर्ड्स बनाए हैं.

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अर्जुन अवॉर्ड के साथ रानी रामपाल और उनके पिता

कई पदक और सम्मान है रानी की झोली में

उन्होंने साल 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लिया, जहां वे एफआईएच के 'यंग वुमन प्लेयर ऑफ़ द इयर' अवॉर्ड के लिए भी नामांकित हुई. फिर ग्वांगझोउ में हुए 2010 के एशियाई खेलों में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के चलते, उन्हें 'एशियाई हॉकी महासंघ' की 'ऑल स्टार टीम' का हिस्सा बनाया गया. अर्जेंटीना में आयोजित महिला हॉकी विश्व कप में, उन्होंने सात गोल किए और भारत को विश्व महिला हॉकी रैंकिंग में सांतवे पायदान पर ला खड़ा किया. साल 2013 के जूनियर विश्व कप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और पहली बार, भारत कांस्य पदक जीता. यहां भी उन्हें 'प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट' का खिताब मिला.

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रानी की उपलब्धियों पर एक नजर

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टोक्यो ओलंपिक पर है अब रानी की नजर

रानी रामपाल की टोक्यो ओलंपिक के लिए दिन रात ग्राउंड में पसीना बहा रही हैं. उनका और उनकी टीम का अब बस एक ही लक्ष्य है, महिला हॉकी में देश को गोल्ड दिलाना और पूरी दुनिया में ये साबित करना कि हॉकी में हम ही धूरंधर हैं.

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