खुशहाल जीवन के लिए शादी से पहले कुछ मुद्दों पर खुलकर बात करें भावी दंपति

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Published : May 15, 2022, 8:39 AM IST

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पहले के दौर में शादी के लिए लड़के लड़की का चयन परिवार के लोग एक दूसरे की पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक स्तिथि देखकर उनकी कुंडली मिलाकर तथा उसके अनुसार उनके गुण दोष मिलाकर करते थे. लेकिन आज के आधुनिक दौर में जरूरी हो गया है शादी के लिए भावी दम्पत्तियों के चयन आधार उनकी कुंडली के गुण व दोषों के मिलने से ज्यादा उनकी सोच के मिलने को बनाया जाय. ऐसा करने से तलाक के बढ़ते मामलों में कुछ हद तक कमी अवश्य आ सकती है.

शादी लड़का हो या लड़की दोनों के जीवन का सबसे अहम फैसला होता है. शादी के बाद लड़के और लड़कियों के जीवन में काफी चीजें बदलती भी हैं और जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती है. जब दो लोग अपने नए जीवन की शुरुआत करते हैं तो प्यार के साथ साथ बहुत जरूरी होता है आपसी सामंजस्य, एक-दूसरे की भावनाओं को समझना, उनके व्यवहार को अपनाना तथा एक दूसरे की जिम्मेदारियों और जरूरतों को समझना. यदि वे ऐसा नही कर पाते हैं तो आपसी कलह और तनाव बढ़ने लगता है और शादी में समस्याएं आ सकती हैं. उस पर कपल वर्किंग हो तो घर तथा बाहर की जिम्मेदारियों का दबाव उनकी परेशानियों को काफी बढ़ा सकता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि साथी को चुनने से पहले लड़का हो या लड़की, उससे अपनी सोच तथा प्राथमिकताओं सहित और भी जरूरी मुद्दों स्पष्ट बात करें. जिससे भविष्य में होने वाली परेशानियों को कुछ हद तक कम किया जा सके.

जरूरी है भावी साथी की सोच को जानना
दिल्ली की रिलेशनशीप एक्सपर्ट तथा मैरिज काउन्सलर नियति वाघ बताती हैं आज के दौर में तलाक के मामले बढ़ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण सोच का ना मिलना, आपसी सामंजस्य में कमी, एक दूसरे के काम व उनकी जिम्मेदारियों को ना समझ पाना तथा नौकरी या परिवार को लेकर दूसरे साथी का नासमझ रवैया माना जा सकता है. वह बताती हैं कि हालांकि लव मैरिज में दोनों पार्टनर को एक दूसरे को समझने का मौका कुछ हद तक मिल जाता है लेकिन अरेंज मैरिज में जब शादी से पहले मिलने की बात आती है तो लोग भविष्य में जिम्मेदारियों को बांटने, एक दूसरे के सपनों या उनके लक्ष्यों को जानने तथा परिवार की सोच तथा अपेक्षाओं के बारें में ज्यादा बात नही करते हैं.

वह बताती हैं कि लवमैरिज हो या अरेंज, जब दो लोग एक साथ रहना शुरू करते हैं तभी एक दूसरे को तथा उनके जीवन जीने के तरीके को समझ पाते हैं, लेकिन यदि दोनों को एक- दुसरें के व्यवहार, व्यक्तित्व व सोच के बारें में पहले से थोड़ी जानकारी हो तो आपसी सामंजस्य बैठाने में मदद मिल सकती है. वह बताती हैं कि आज के दौर में बहुत जरूरी हो गया है की शादी के लिए साथी का चयन करने से पहले कुछ बातों पर दोनों लोग खुल कर बात करें. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  • आर्थिक स्थिति तथा नौकरी से जुड़े मुद्दे
    आज के दौर में ज्यादातर कपल्स वर्किंग होते हैं. ऐसे में शादी का निर्णय लेने से पहले एक दूसरे के करियर और फाइनेंस के बारें में जानकारी ले लेनी चाहिए. विशेषकर लड़कियों के लिए अपने करियर से जुड़े सपनों, कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारियों, अपने लक्ष्य को लेकर तथा उनके पार्टनर उनके काम में सपोर्ट करेंगे या नही, अगर हाँ तो कैसे, इस बारें में खुलकर बात कर लेनी चाहिए. इसके अलावा कुछ नौकरियाँ शिफ्ट वाली होती हैं जहां दिन व रात दोनों की शिफ्ट हो सकती है . ऐसे में हो सकता है भविष्य में पुरुष या स्त्री किसी को भी नाइट शिफ्ट में काम करना पड़े या फिर लड़के या लड़की की नौकरी में अगर टूरिंग ज्यादा हो और उन्हे काम के सिलसिले में लंबी अवधि के लिए शहर या देश से बार जाना पड़े तो कही दूसरे साथी को परेशानी तो नहीं होगी.इस बारें में भी विशेषकर लड़कियों को खुलकर बात कर लेनी चाहिए. जिससे भविष्य में उन्हें परेशान ना हो.
  • फैमिली प्लानिंग
    आज के दौर में शादी से पहले अपने साथी से संतान से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बात लेना भी बेहतर होता है. शादी के बाद दोनों कब बच्चे की प्लानिंग करना चाहेंगे? , वे बच्चे चाहते भी हैं या नही ? , यदि हैं तो कितने बच्चे चाहते हैं, या फिर यदि शादी के बाद किसी कारण से संतान जन्म में समस्याएं हो रही हो क्या वे किसी तरह का इलाज लेने या फिर बच्चे को गोद लेने के बारें में क्या विचार रखते हैं , आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर दोनों के लिए स्पष्टता बहुत जरूरी है. जिससे बच्चे का जन्म दोनों के लिए दबाव या तनाव कारण ना बने और उनकी संतान का जन्म उनके लिए एक सुखद अनुभव ही बना रहे.
  • घर का कामों व सामाजिक संस्कारों की जिम्मेदारी
    यह समस्या कामकाजी दम्पत्तियों में आम होती है. हमारे पुरुषप्रधान समाज में घर के काम की, परिवार तथा बच्चों की जिम्मेदारी महिलाओं की मानी जाती है , फिर चाहे वह गृहिणी हों या कामकाजी. यह अवस्था तथा परंपरा ज्यादातर कामकाजी महिलाओं को शारीरिक ही नही बल्कि मानसिक रूप से भी थका देती है. ऐसे में बेहतर रहता है कि वह शादी से पहले अपने भावी जीवनसाथी से जिम्मेदारियों के बंटवारे को लेकर खुलकर बात कर लें की क्या शादी के बाद वह इन जिम्मेदारियों में मदद कर पाएगा या नही.

शादी से पहले काउंसलिंग भी जरूरी
नियति बताती हैं कि उनके पास काउंसलिंग के लिए आने वाले लोगों में सबसे ज्यादा इन्ही मुद्दों को लेकर आपसी खींचातानी होती है. यही नही ये ऐसे मुद्दे हैं जिनके कारण आज के दौर में तलाक के मामलों में काफी बढ़त देखी जा रही है. ये मुद्दे ऐसे हैं जो मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग में एक समान हैं, यहाँ तक की काफी ज्यादा पढेलिखे लोगों में भी इन्हे लेकर समस्याएं होने बहुत आम हैं.

शादी के बाद ये मुद्दे अलगाव का कारण ना बने इसके लिए बहुत जरूरी है कि शादी से पहले ही इनके बारें में दूसरे व्यक्ति की राय जान ली जाय. जिससे सही साथी का चयन करने में मदद मिल सके. इसके अलावा शादी से पहले भावी दंपति की काउंसलिंग अवश्य करानी चाहिए . जरूरी नही है कि इसके लिए किसी काउन्सलर की मदद ली जाए, घर के बुजुर्ग तथा मातापिता भी यह कार्य कर सकते हैं. जहां वे लड़के और लड़की दोनों को शादी से जुड़ी जिम्मेदारियों , इस रिश्ते की खूबसूरती, दोनों के लिए सामंजस्य बैठने के लिए प्रयास की जरूरत को लेकर बात कर सकते हैं. जरूरी नही है कि इससे शुरूआत से ही उनके रिश्तों में सहजता और सामंजस्य आ जाएगा, ये एक लंबी अवधि वाली प्रक्रिया है. लेकिन काउंसलिंग से उन्हे अलग-अलग मुद्दों को समझने और उन पर प्रतिक्रिया देने में सहजता होगी तथा वे दूसरे के पक्ष को बेहतर तरीके से समझने का प्रयास कर पाएंगे .

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