ब्रज की तालबंदी और कश्मीर के रवाब से महकी दिल्ली की एक शाम

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Published : Nov 21, 2022, 3:14 PM IST

Updated : Nov 21, 2022, 4:00 PM IST

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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कला दर्शन विभाग (kala darshan division) के स्थापना दिवस पर केंद्र का ऑडिटोरियम “समवेत” संगीतमयी शाम से झंकृत हो उठा. ब्रजनगर, भरतपुर (राजस्थान) के अमित पलिवार और उनके साथियों ने दर्शकों के सामने तालबंदी की झुमा देने वाली प्रस्तुति दी, तो श्रीनगर से आए अब्दुल हमीद भट्ट और उनके समूह ने रवाब वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

नई दिल्ली: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का ऑडिटोरियम रविवार को “समवेत” संगीतमयी शाम से झंकृत हो उठा. अवसर था केंद्र के “कला दर्शन” विभाग (kala darshan division) के स्थापना दिवस का. इस अवसर पर ब्रजनगर, भरतपुर (राजस्थान) के अमित पलिवार और उनके साथियों ने दर्शकों के सामने तालबंदी की झुमा देने वाली प्रस्तुति दी, तो जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर से आए अब्दुल हमीद भट्ट और उनके समूह ने रवाब वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. सुब्रत गंगोपाध्याय, जो ह्यूस्टन (अमेरिका) से आए थे. वह “इंडियन हिस्ट्री अवेयरनेस रिसर्च” (IHAR) के संस्थापक भी हैं.
इस अवसर पर डॉ. सुब्रत गंगोपाध्याय ने कहा कि कल्चर का अर्थ होता है कुलाचार, जिसका संरक्षण इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र कर रहा है. इस कुलाचार के संरक्षण के कई रूप हैं, जिनमें फाइन आर्ट से लेकर संगीत तक की विधाएं शामिल हैं. उन्होंने कहा कि हम तार वाद्य (स्ट्रिंग इंस्ट्रुमेंट), जैसे कि सरस्वती वीणा, रुद्र वीणा आदि के इतिहास की बात करते हैं, जो हमारे शास्त्रों से जुड़ा है. कला के माध्यम से, संगीत के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति होती, स्वयं की प्राप्ति होती है. इसलिए कला का स्थान श्रेष्ठ है. विज्ञान बाहर का ज्ञान है और कला अंदर का ज्ञान है

कश्मीर के रवाब से महकी दिल्ली की एक शाम
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि “कला दर्शन” इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का एक बहुत महत्त्वपूर्ण विभाग है. उन्होंने कहा कि जब तक शास्त्र का प्रयोग नहीं होता है, उसमें निहित चीजें प्रकट नहीं होती, तब तक शास्त्र का प्रयोजन सिद्ध नहीं होता. शास्त्र के प्रयोग की व्यवस्था होनी चाहिए. कला दर्शन विभाग यही महत्त्वपूर्ण कार्य करता है. उन्होंने कहा कि हमारे यहां अनावश्यक रूप से शास्त्र और लोक में भेद का प्रश्न खड़ा कर दिया गया. अंग्रेजी का “फोक” शब्द हिंदी के “लोक” शब्द का अर्थ प्रकट नहीं करता. जो लोक में होता है, वह धीरे-धीरे और अधिक विकसित होकर शास्त्र के रूप में जन्म लेता है और जो शास्त्र है, उसका जब बहुत अधिक प्रयोग होता है, तो धीरे-धीरे वह लोक में आरुढ़ हो जाता है. लोक और शास्त्र अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं. उन्होंने इस संदर्भ में रवाब और सरोद का उदाहरण दिया कि रवाब एक लोक वाद्य है और उसका परिवर्धित रूप सरोद शास्त्रीय संगीत में बजाया जाता है.कार्यक्रम के अंत में डॉ. सच्चिदानंद जोशी और डॉ. सुब्रत गंगोपाध्याय ने सभी कलाकारों को सम्मानित किया.कला दर्शन विभाग की प्रमुख डॉ. ऋचा कम्बोज ने सभी अतिथियों, आगंतुकों और कलाकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया. कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी और निदेशक (प्रशासन) डॉ. प्रियंका मिश्रा भी इस अवसर पर उपस्थित थीं.

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Last Updated :Nov 21, 2022, 4:00 PM IST
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