मुंडका में मौत की इमारत: रिहायशी क्षेत्र में अवैध बनी थी व्यवसायिक इमारत, फायर का एनओसी भी नहीं

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Published : May 14, 2022, 2:21 PM IST

Death building in Mundka

दिल्ली के मुंडका इलाके में मेट्रो स्टेशन के पास स्थित चार मंजिला व्यवसायिक इमारत जो अब मौत की इमारत बन चुकी है, शुरुआती जांच में पाया गया कि यह ग्राम सभा (लाल डोरा) की जमीन पर बनाई गई है. ग्राम सभा की जमीन पर रिहायशी के अलावा किसी भी तरह के निर्माण कार्य की इजाजत नहीं होती, बावजूद यह इमारत कैसे बनी इस पर बवाल शुरू हो गया है.

नई दिल्ली: दिल्ली के मुंडका इलाके में मेट्रो स्टेशन के पास स्थित चार मंजिला व्यवसायिक इमारत जो अब मौत की इमारत बन चुकी है. शुरुआती जांच में पाया गया कि यह ग्राम सभा (लाल डोरा) की जमीन पर बनाई गई है. ग्राम सभा की जमीन पर रिहायशी के अलावा किसी भी तरह के निर्माण कार्य की इजाजत नहीं होती, बावजूद यह इमारत कैसे बनी इस पर बवाल शुरू हो गया है.

बवाल इसलिए भी क्योंकि किसी भी तरह का निर्माण करने के लिए दिल्ली नगर निगम के भवन विभाग से नक्शा पास करना होता है. चाहे वह रिहायशी इमारत हो या व्यावसायिक. अवैध निर्माण होने पर उसे ढ़हने का अधिकार भी निगम के पास है. वहीं नगर निगम जिसका बुलडोजर इस समय दिल्ली में जहां-तहां पहुंच अतिक्रमण हटाने में व्यस्त है. मुंडका हादसे में जो लोग अपनों को खो चुके हैं उनका सीधा आरोप है कि क्या नगर निगम तब आंख मूंदे बैठी थी जब यहां पर अवैध तरीके से इमारत बना और इसमें दफ्तर और फैक्ट्रियां चलने लगी.

Death building in Mundka
मुंडका में मौत की इमारत

दिल्ली में अभी तक जितने भी बड़े अग्निकांड हुए हैं उसमें बड़ी लापरवाही सामने आ चुकी है. बावजूद इन हादसों से कोई सबक नहीं लेते हुए जो जैसा है वैसा ही छोड़ दिया जाता है. नतीजा होता है कि मुंडका में हादसे में जिस तरह अभी 27 लोगों की जान चली गई ऐसे हादसे आगे न हो यह पुख्ता नहीं हो पाता.

दिल्ली के घनी आबादी वाले क्षेत्र चाहे पुरानी दिल्ली, सदर बाजार, करोलबाग या कम आबादी वाले बाहरी दिल्ली के इलाके, वहां पर ऐसे अवैध इमारतों की अच्छी खासी संख्या है. इनमें से ज्यादातर के पास वैध नियमों से व्यवसायिक गतिविधियों को चलाने की अनुमति तक नहीं होती. ज्यादातर इमारतें उन नियमों का पालन नहीं करते जिसके चलते हैं वहां पर व्यवसायिक गतिविधियां हो सके. आरोप यह भी स्थानीय लोग लगाते हैं कि भ्रष्टाचार का लाभ उठाकर अधिकारियों को रिश्वत देकर इस तरह की व्यवसायिक गतिविधियां चलाई जाती हैं. आसपास के लोग अगर शिकायत भी करते हैं तो उसकी सुनवाई नहीं होती. चुकी इस तरह की घटनाओं के बाद अब तक किसी नगर निगम अधिकारी या फायर विभाग के अधिकारी को सजा नहीं हुई तो मौत का खेल आगे भी जारी रहता है.

Death building in Mundka
मुंडका में मौत की इमारत

डिप्टी फायर ऑफिसर सुनील चौधरी के अनुसार जिस इमारत में आग लगी बिल्डिंग के पास फायर से जारी एनओसी (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) नहीं था. खास बात यह है कि इमारत में एक समय में 100 से अधिक लोग मौजूद रहते थे लेकिन इमारत के मालिक ने वहां आग से बचाव के कोई खास इंतजाम नहीं किए. इस इमारत में आने और जाने के लिए एक ही सीढ़ी का इस्तेमाल किया जाता था. किसी हादसे के समय बचकर निकलने के लिए इमारत में फायर एग्जिट का भी इंतजाम नहीं किया गया था. इसकी पुष्टि फायर ऑफिसर ने की है. फिलहाल वह कहते हैं कि अभी भी उनकी पहली प्राथमिकता है पहले राहत व बचाव कार्य करना.

मुंडका अग्निकांड में भी वही लापरवाही

मुंडका अग्निकांड में भी वही लापरवाही सामने आ रही है जो दिल्ली के अन्य बड़े अग्निकांड़ों में देखी गई थी. कुछ प्रमुख कारण जो अब तक इस हादसे के सामने आए हैं वह इस प्रकार हैं.

  • इमारत के पास फायर विभाग से कोई एनओसी नहीं था.
  • इमारत से बाहर निकलने के लिए दूसरी सीढ़ी व रस्सी तक का इंतजाम नहीं था.
  • इमारत से बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं था जिससे कि लोग जान बचा सके.
  • इमारत में आग बुझाने के यंत्र भी उपलब्ध नहीं थे.
  • इमारत के भीतर सीसीटीवी वह वाईफाई के राउटर आदि बनाने का काम चल रहा था जिसके चलते अति ज्वलनशील पदार्थ भी रखे हुए थे इस तरह के पदार्थ रखने के लिए जिस तरह की सावधानी रखी जानी चाहिए थी उस तरह की सावधानी नहीं रखी गई थी.

व्यवसायिक इमारतों के लिए क्या है नियम

किसी भी रिहायशी इलाके में फैक्टरियां नहीं चलाई जा सकती. यदि रिहायशी इलाके में कोई फैक्टरी चलाई जाती है तो उसे बंद करने या सील करने की जिम्मेदारी नगर निगम की होती है. इस इमारत में चल रही फैक्टरियों को लेकर दिल्ली नगर निगम पर बड़ा सवाल उठ रहा है. सवाल यह है कि इस इलाके में पिछले 10 सालों से यह फैक्टरी चल रही थी, लेकिन निगम के अधिकारियों ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की. घटना के बाद निगम अधिकारी भी मौके पर पहुंचे. अगर कोई भी शख्स व कंपनी इसका पालन नहीं करता तो इसके खिलाफ निगम के भवन विभाग से लेकर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल कार्यालय में कर सकते हैं.

रिहायशी इलाके में फैक्टरी चलाने के ये हैं मानदंड

  • दिल्ली नगर निगम के मुताबिक, रिहायशी इलाके में तभी फैक्टरी चलाई जा सकती है अगर उद्योग प्रदूषण फैलाने वाला न हो.
  • इसके साथ ही रिहायशी संपत्ति का 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा व्यावसायिक प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए.
  • फैक्टरी चलाने के लिए अधिकतम कर्मचारियों की संख्या 9 और अधिकतम 11 किलोवाट का बिजली मीटर होना चाहिए.
  • रिहायशी संपत्ति की दिल्ली सरकार द्वारा पक्की रजिस्ट्री होनी चाहिए.
  • सबसे अहम शर्त यह है कि रिहायशी इलाके में किराए पर फैक्टरी नहीं चलाई जा सकती है.

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