Papankusha Ekadashi 2022: व्रत करने से यमलोक में नहीं सहनी पड़ती यातनाएं, जानें कथा

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Published : Oct 6, 2022, 4:03 AM IST

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है. पापांकुशा एकादशी का मतलब है पापों पर अंकुश लगाने वाली एकादशी. पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. 6 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी है. पापांकुशा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं इसके शुभ मुहूर्त और पूजा विधि...

नई दिल्ली/गाजियाबादः गाजियाबाद स्थित शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र (Shiv Shankar Jyotish Evam Vastu Anusandhan Kendra) के आचार्य शिव कुमार शर्मा (Acharya Shiv Kumar Sharma) के मुताबिक आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं. पापांकुशा एकादशी का मतलब है पापों पर अंकुश लगाने वाली एकादशी. पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. 6 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी है. पापांकुशा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.

० यातनाओं से मिलती है मुक्ति: अश्विन की पापांकुशा एकादशी व्रत का भी विशेष महत्व है. मान्यता है कि पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से यमलोक में यातनाएं नहीं सहनी पड़ती. कहते हैं कि जीवन में किए गए सभी पापों से एक बार में ही मुक्ति पाने के लिए ये व्रत रखा जाता है.

आचार्य शिव कुमार शर्मा

० पापांकुशा एकादशी 2022 शुभ मुहूर्त:

अश्विन शुक्ल पापांकुशा एकदाशी तिथि शुरू- 5 अक्टूबर 2022, दोपहर 12 बजे.

अश्विन शुक्ल पापांकुशा एकादशी तिथि समाप्त - 6 अक्टूबर 2022, सुबह 9 बजकर 40 मिनट

० पापांकुशा एकादशी व्रत कथा: पौराणिक कथा के अनुसार एक बार विध्‍यांचल पर्वत पर एक बहुत ही क्रूर शिकारी क्रोधना रहा करता था. उसने अपने पूरे जीवन में सिर्फ दुष्‍टता से भरे कार्य किए थे. उसके जीवन के अंतिम दिनों में यमराज ने अपने एक दूत को उसे लेने के लिए भेजा. क्रोधना मौत से बहुत डरता था. वह अंगारा नाम के ऋषि के पास जाता है और उनसे मदद की गुहार लगाता है. इस पर ऋषि उसे पापांकुशा एकादशी के बारे में बताते हुए अश्विन माह की शुक्‍ल पक्ष एकादशी का व्रत रखने के लिए कहते हैं. क्रोध ना कर सच्‍ची निष्‍ठा, लगन और भक्ति भाव से पापांकुशा एकादशी का व्रत रखता है और श्री हरि विष्‍णु की आराधना करता है.

० ब्राह्मण को दें दान: एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से ही शुरू हो जाते हैं, इसलिए दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. एकदाशी तिथि को प्रातः उठकर स्नानादि करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें. कलश स्थापना करके उसके पास में आसन पर भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें. अब धूप-दीप और फल, फूल आदि से भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें. एकदाशी व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि को किया जाता है. द्वादशी तिथि को प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजन करें. अब सात्विक भोजन बनाकर किसी ब्राह्मण को करवाएं और दान दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें.


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