नई दिल्ली: नवरात्रि के सातवें दिन मां के कालरात्रि स्वरूप की पूजा का विधान है. काल का अर्थ मृत्यु होता है और रात्रि का अर्थ अंधकार. अतः कालरात्रि का अर्थ अंधकार और अज्ञानता की मृत्यु होता है. मां कालरात्रि दुर्गा का सबसे भयंकर रूप है. देवी कालात्रि को व्यापक रूप से मां- काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है.
मां कालरात्रि रूप गहरा है. मां के गले में विद्युत की माला और बाल बिखरे हैं. इनके चार हाथ हैं और उनका एक हाथ वर मुद्रा में हैं, जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं. दूसरा हाथ अभय मुद्रा में है, जिससे वह भक्तों की रक्षा करती हैं. तीसरे हाथ में उन्होंने वज्र पकड़ा है और चौथे हाथ में नुकीला कांटा है. मां गधे की सवारी करती हैं. मां की पूजा करने से व्यक्ति अपने क्रोध पर नियंत्रण ला सकता है. नवरात्रि का सातवां दिन तांत्रिक साधना करने वाले लोगों के लिए अति महत्वपूर्ण है. कहा जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो उनके आगमन से पलायन करते हैं.
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मां कालरात्रि की पूजा विधि: सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें. मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं. मां को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां को लाल रंग पसंद है. मां को रोली कुमकुम लगाएं. मां को मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें. शहद का भोग अवश्य लगाएं. मां कालरात्रि का अधिक से अधिक ध्यान करें. मां की आरती भी करें.
मां कालरात्रि का सिद्ध मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।
मंत्र-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि।।
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मां कालरात्रि की कथा: प्राचीन समय में शुंभ निशुंभ दैत्यों ने अपने बल से इन्द्र का राजपाट छीन लिया था और उनके अत्याचार देवताओं पर बहुत बढ़ गए थे. तब वह मदद मांगने हिमालय पर्वत पर जाकर मां भगवती की स्तुति करते हैं. मां पार्वती को जब इनके बारे में पता चलता है, तब उनके शरीर से अंबिका निकली तो पार्वती ने अंबिका को दैत्यों के संहार के लिए भेजा.
युद्ध में शुंभ और निशुंभ ने दो राक्षशों चंड और कुंड को भेजा. अंबिका देवी ने चंड और कुंड से लड़ने के लिए काली देवी का निर्माण किया और काली माता ने चंड और कुंड का वध किया, इसीलिए वह चामुंडा के नाम से जानी जाने लगी. इसके बाद शुंभ और निशुंभ ने रक्तबीज नामक अति पराक्रमी राक्षश को भेजा. उसको ब्रह्मा जी से वरदान था, की जब उसकी एक भी रक्त की बूंद जमीन पर गिरेगी, वह दूसरा रक्तबीज बन जाएगा.
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इससे उसके जैसा पराक्रमी पैदा हो जाएगा. युद्ध में जब रक्तबीज का रक्त गिरते ही वहां पर बहुत सारे दानव पैदा हो गए, तब देवताओं का भय बढ़ गया. उनका भय देखकर अंबिका मां ने मां काली से कहा- हे! चामुंडे! अपने रूप को बड़ा करो और रक्तबीज से उत्त्पन हुए सारे महाअसुरों का भक्षण करो.
उसके बाद काली मां ने अपना रूप बड़ा करके अपने त्रिशूल से रक्तबीज पर प्रहार किया, तब रक्तबीज के शरीर से जो भी रक्त निकला उसको मां ने पी लिया और उसके बाद मां ने रक्तबीज को वज्र, बाण, खड़ग से मार डाला. मां कालरात्रि दुष्टों का नाश करने वाली हैं और क्रूरता को खत्म करने वाली हैं.
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी पंडित जय प्रकाश शास्त्री से बातचीत पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि etvbharat.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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