#FirstPunch : यमुना की गोद में प्यासी क्यों दिल्ली ?

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Published : May 15, 2022, 6:07 AM IST

Updated : May 15, 2022, 8:50 AM IST

#FirstPunch : यमुना की गोद में प्यासी क्यों दिल्ली ?

दुनिया में नदियों के किनारे ही सभ्यताएं पनपी हैं. ये दीगर बात है कि सभ्य होते शहरों ने अपनी दहलीज पर बहती नदियों की कद्र कितनी की है, नदियों का अविरल बहाव रहे, इसका कितना ख्याल किया है? नदी को लेकर बाकी कुदरती माहौल का ख्याल तो छोड़िए, दिल्ली ने दहलीज पर खड़ी यमुना का पानी तक नहीं संजोया है. यमुना पर आती-जाती सरकारों के फैसलों का बहाव तो दशकों से चलता रहा है. मगर यमुना तो महज घाटों पर ठिठकी हुई है. या कहें गांवों से सरक कर शहरों में जा बसी विकास की नई कहानियों के आगे बदहवास सी सहमी पड़ी है. रीजनल एडिटर विशाल सूर्यकांत बता रहे हैं दिल्ली में यमुना होने के मायने क्या हैं ?

विशाल सूर्यकांत-

नई दिल्ली : बलखाती नदी का किनारा, भीगी ठंडी हवा की सिरहन, परिन्दों का कलरव, दरख्तों की कतारें और अनवरत बहाव की सुकून देने वाली रह-रह कर आने वाली सरसराहटें. अविरल जलधारा की कलकल करती ध्वनि. ज़रा वो सुकून-ए-अहसास फिर याद कीजिए, जब आप किसी नदी के किनारे बैठे हों. किसका सपना नहीं होगा कि कुरदत का दिलकश नजारा हो, किसी नदी किनारे अपना बसेरा हो...

किसी शायर ने क्या खूब लिखा है -

परेशानियों में सबको सुकून की तलाश है

फिर याद आया यमुना का किनारा पास है.

मगर ये पंक्तियां देश की राजधानी में बहुत हद तक बदल जाया करती हैं. परेशानियों में सुकून नहीं, यहां यमुना का प्रदूषण ही परेशानियों का सबब बना हुआ है. हालात यह हैं कि पौराणिक महत्व की नदी यमुना गंदे नालों में सिमटी जा रही है. यमुनोत्री से सैंकड़ों किलोमीटर दूर बहकर निर्मल बहाव लाखों लोगों की प्यास भी बुझा सकता था. मगर दिल्ली की दहलीज पर आते ही यमुना प्रदूषण की निशानी बनकर कराहने लगती है. नरेला, बुराड़ी, तिमारपुर, चांदनी चौक, जंगपुरा, लक्ष्मीनगर, पटपड़गंज, कृष्णा नगर, गांधी नगर और ओखला तक यमुना किनारे प्रदूषण का ऐसा बसेरा है कि यमुना की ओर देखना तक किसी को गवारा नहीं.

दुनिया में नदियों के किनारे ही सभ्यताएं पनपी हैं. ये दीगर बात यह है कि सभ्य होते शहरों ने अपनी दहलीज पर बहती नदियों की कद्र कितनी की है, नदियों का अविरल बहाव रहे, इसका कितना ख्याल किया है? नदी को लेकर बाकी कुदरती माहौल का ख्याल तो छोड़िए, दिल्ली ने दहलीज पर खड़ी यमुना का पानी तक नहीं संजोया है. यमुना पर आती-जाती सरकारों के फैसलों का बहाव तो दशकों से चलता रहा है. मगर यमुना तो महज घाटों पर ठिठकी हुई है. या कहें गांवों से सरक कर शहरों में जा बसी विकास की नई कहानियों के आगे बदहवास सी सहमी पड़ी है. किसी ने क्या खूब कहा है -

"वैसे कोई वजह नहीं नाराजगी की

बस यूं ही जिद में नाराज हुए बैठे हैं,,

गांव में सब कुछ ही अपना था,

तेरे लिए शहर में किराएदार हुए बैठे हैं!!"

मौजू कल चाहे जो भी रहा हो, लेकिन शायर की वो फिक्र आज यमुना के दर्द को अयां करने का जरिया बनी है. भला किसे नहीं पता कि बढ़ती आबादी और सियासी विकास की बिसात और जनता की जरूरत के नाम पर दिल्ली में यमुना के साथ जो खिलवाड़ हुआ है. नाश का ऐसा नशा शायद ही किसी और जगह पर कुरदती रूप से बह रही किसी नदी को तबाह किया हो. 1400 किलोमीटर के सफर में महज दो फीसदी के सफर में यमुना मानो मौत की चंगुल में फंसकर कराहने लगती है. यमुना नदी की दुर्दशा पर पहली बार 1993 पर ध्यान दिया गया. तब यमुना एक्शन प्लान बनाया गया. 25 सालों के इस सफर में 1500 करोड़ रुपए बहा दिए गए. मगर सरकारें यमुना का बहाव निर्मल और निर्बाध नहीं कर पाईं. यमुना सफाई के नाम पर बने सरकारी प्रोजेक्ट्स, हर साल बजट एलोकेशन में अपनी जगह बनाते रहे. बाकायदा एक चुनावी सिस्टम तैयार होता गया कि यमुना की सफाई के लिए इस साल के बजट में जिक्र होना ही चाहिए. ऐसा नहीं है कि बजट नहीं मिला, मगर सवाल यह है कि यमुना की तस्वीर तो नहीं बदली और बजट न जाने किन लोगों की जेबों में बहता रहा होगा. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में 2005 में कहा गया कि यमुना को लंदन की टेम्स नदी की तरह संवारेगे, लेकिन 2005 से आज 2022 आ गया. यमुना टेम्स तो नहीं बन पाई अलबत्ता कई घाटों के किनारे कई रसूखदारों के नए टेरेस जरूर खड़े हो गए.

दिल्ली के वजीराबाद से ओखला तक का यमुना का सफर थमा हुआ है, रुका हुआ, थका हुआ है. हर दिन दिल्ली के 18 बड़े नालों के जरिए 350 लाख लीटर से ज्यादा गंदा पानी सीधे यमुना में बहाया जाता है. जिसमें फास्फेट और एसिड से पानी जहरीले झाग में बदल जाता है. इन्हीं झाग के बीच मना लिए जाते हैं मकर संक्रांति व छठ पूजा जैसे त्योहार..

यमुना क्लीनिंग सेल में डीडीए, दिल्ली जल बोर्ड, डीयूएसआईबी, डीएसआईआईडीसी, डीपीसीसी और आई एंड एफसी विभागों का पूरा दखल है. अगर 2025 तक यमुना को साफ करना है तो कायदे से बहुत तेजी से बदलाव होना चाहिए. मगर एक्शन में वो तेजी नहीं दिख रही जो होनी चाहिए. काम की रफ्तार भी यमुना की मंद होती धार की मानिंद चलती जा रही है.

फिलहाल तो दहलीज पर यमुना है और दिल्ली प्यासी खड़ी है. दिल्ली जल बोर्ड कह चुका है कि 13 मई के बाद से दिल्ली के दर्जनभर इलाकों में पानी की किल्लत होनी तय है. अगर यमुना साफ होती तो दिल्ली में दशकों से चली आ रही पानी की समस्याएं दूर हो जातीं. मगर प्रदूषण की मार ने इस नदी को ऐसी चोट पहुंचाई है कि इसकी निर्मलता दशकों पुराना मुद्दा बन गई है. उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश व दिल्ली के प्रशासनिक बंटवारों में यमुना का कुदरती रूप इतने हिस्सों में बंट गया है कि यमुना का समरुप प्रवाह कभी होता नहीं. पानी ज्यादा आए तो यमुना सब कुछ बहा ले जाती है, पानी न आए तो राज्यों में पानी को लेकर राजनीतिक रस्साकशी शुरू हो जाती है. नदी के पानी पर राजनीति इस देश में इतनी हावी हो चली है कि नदी होने के दूसरे जरूरी फायदे, नुकसानों का जिक्र गौण हो जाया करता है. मगर याद रहे यमुना बचेगी तो गंगा का अस्तित्व कायम रहेगा. क्योंकि यमुना, पतित पावनी गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है. दिल्ली के हुक्मरानों से लेकर आम जनता तक को यह सनद रहे कि अगर नदी का प्रवाह, हमारी लापरवाहियां और राजनीतियां तय करने लगेगी तो प्रदूषण और बढ़ेगा. दिल्ली की दहलीज पर सदियों से देश की प्रमुख नदी का बसेरा है. इसे नाले में तब्दील करेंगे तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी...

सोचो जरा क्या फायदा इतनी पढ़ाई का

सोचो जरा क्या फायदा है चुनावी लड़ाई का

दिल्ली में सबसे ज्यादा दूषित पानी है

कोई तरकीब निकालों यमुना की सफाई का.

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Last Updated :May 15, 2022, 8:50 AM IST
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