नई दिल्ली: मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की 28 वर्षीय सरिता माली इन दिनों काफी खुश है. इसका कारण यह है कि आगे की पढ़ाई के लिए सरिता का अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में चयन हुआ है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंग्टन. सरिता ने अपनी सोच समझ से यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया को वरीयता दी है, क्योंकि इस यूनिवर्सिटी ने सरिता की मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप में से एक 'चांसलर फ़ेलोशिप' दी है.
अब ऐसे तो प्रतिवर्ष सैकड़ों भारतीय छात्र उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाते हैं, ऐसे में सरिता का अमेरिका जाना और अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप में से एक 'चांसलर फ़ेलोशिप' पाने के बारे में इसलिए मायने रखता है क्योंकि वह जिस परिवार, परिवेश से ताल्लुक रखती है वहां से यहां तक का सफर तय करना सबके लिए आसान नहीं होता.
मुंबई की झोपड़पट्टी में जन्मी, वहां के सरकारी स्कूल में पढ़ने और दिल्ली के जेएनयू से हिंदी में पीएचडी करने के बाद अब कैलिफ़ोर्निया, चांसलर फ़ेलोशिप, अमेरिका और हिंदी साहित्य में कुछ कर सकने की बात से सरिता स्वयं भावुक हो जाती हैं. बकौल सरिता, क्योंकि ये ऐसा सफ़र है जहां मंजिल की चाह के मुकाबले उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती हैं. हो सकता है आपको यह कहानी अविश्वसनीय लगे, लेकिन यह सरिता माली की कहानी है. जो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से ताल्लुक रखती हैं. लेकिन उसका जन्म और परवरिश मुंबई में हुई.
नई दिल्ली: मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की 28 वर्षीय सरिता माली इन दिनों काफी खुश है. इसका कारण यह है कि आगे की पढ़ाई के लिए सरिता का अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में चयन हुआ है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंग्टन. सरिता ने अपनी सोच समझ से यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया को वरीयता दी है, क्योंकि इस यूनिवर्सिटी ने सरिता की मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप में से एक 'चांसलर फ़ेलोशिप' दी है.
अब ऐसे तो प्रतिवर्ष सैकड़ों भारतीय छात्र उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाते हैं, ऐसे में सरिता का अमेरिका जाना और अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फ़ेलोशिप में से एक 'चांसलर फ़ेलोशिप' पाने के बारे में इसलिए मायने रखता है क्योंकि वह जिस परिवार, परिवेश से ताल्लुक रखती है वहां से यहां तक का सफर तय करना सबके लिए आसान नहीं होता.
मुंबई की झोपड़पट्टी में जन्मी, वहां के सरकारी स्कूल में पढ़ने और दिल्ली के जेएनयू से हिंदी में पीएचडी करने के बाद अब कैलिफ़ोर्निया, चांसलर फ़ेलोशिप, अमेरिका और हिंदी साहित्य में कुछ कर सकने की बात से सरिता स्वयं भावुक हो जाती हैं. बकौल सरिता, क्योंकि ये ऐसा सफ़र है जहां मंजिल की चाह के मुकाबले उसके साथ की चाह अधिक सुकून देती हैं. हो सकता है आपको यह कहानी अविश्वसनीय लगे, लेकिन यह सरिता माली की कहानी है. जो मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से ताल्लुक रखती हैं. लेकिन उसका जन्म और परवरिश मुंबई में हुई.