नई दिल्ली : दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में लगभग डेढ़ दशक से भी अधिक समय से कार्यरत रहे कॉन्ट्रैक्ट के 43 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया. इसके बाद से ये कर्मचारी लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. कभी जंतर-मंतर तो कभी रामलीला मैदान, लेकिन इनकी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं ही रही है. कर्मचारियों का कहना है कि उनके 15 साल की सेवा को भूला कर एक झटके में सभी को नौकरी से बाहर निकाल दिया गया है. रोजी-रोटी समाप्त होने के बाद धरना पर बैठे कर्मचारियों से मिलने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडवीया भी आये, लेकिन वो भी कुछ नहीं कर पाये. लोगों ने कहा कि 15 साल की सेवा देने के बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है. उम्र के इस दौर में अब उन्हें कोई 5000 रुपये की भी नौकरी नहीं दे सकता तो वे लोग क्या करेंगे ? अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करेंगे ?
कर्मचारियों ने मंत्री से आग्रह किया कि उन्हें आधी सैलरी पर ही रखा जाए, लेकिन उनकी सर्विस को जारी रखा जाय ताकि उनके सामने रोजी रोटी की समस्या ना रहे. इन्हीं कर्मचारियों में से एक एलडीसी कर्मचारी अशोक सोनी ने बताया कि अस्पताल की तरफ से उन लोगों को उस समय सेवा में लगाया गया था, जब एसएससी ने रिक्तियों को भरना बंद कर दिया था. उस समय अस्पताल की तरफ से एलडीसी पैरामेडिकल स्टाफ, नर्सिंग स्टाफ और कुक जैसे पदों पर कॉन्ट्रैक्ट पर लोग रखे गए थे. बाद में वे लोग सीधे अस्पताल के पैरोल पर आ गए थे, लेकिन इसी बीच 2016 में अस्पताल प्रशासन ने उन्हें आउट सोर्स में ट्रांसफर करने की कोशिश की ताकि हम लोग पक्की नौकरी की मांग न कर सके. उन्होंने बताया कि उन्हें पक्की नौकरी का लालच नहीं है, बस अस्पताल उन्हें पहले की तरह नौकरी पर रख ले, ताकि इस उम्र में घर परिवार चलाने की चिंता ना सता पाये.
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अशोक सोनी ने कहा कि उन्हें कहा जाता है कि वे लोग परीक्षा पास कर नौकरी में नहीं आये हैं. अयोग्य हैं इसलिये उन्हें नौकरी में बरकरार नहीं रखा जा सकता है. सवाल यह है कि जब अयोग्य थे तो इन अयोग्य लोगों से 15 वर्षों तक क्यों सेवा ली जाती रही ? यानी सभी अचानक से अयोग्य हो गये. योग्य हैं तो उनके अनुभवों के आधार पर योग्य मानते हुए उन्हें वापस नौकरी पर रखा जाय.
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