नई दिल्ली/गाजियाबाद : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायानलय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें नोएडा में सुपरटेक बिल्डर्स की एमेरल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट में भवन मानदंडों के उल्लंघन के लिए दो 40 मंज़िला टावर को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इसका निर्माण नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक के अधिकारियों के बीच मिलीभगत का परिणाम था.
रियल स्टेट कंज्यूमर राइट्स एक्टिविस्ट आलोक कुमार का कहना है सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो फैसला दिया गया है उसकी काफी पहले से उम्मीद थी. सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छा फैसला सुनाया है. सबसे बड़ा सवाल ये है सुपरटेक बिल्डर के पास मोजूदा समय में फंड नहीं हैं. ऐसे में खरीदारों का पैसा वापस कैसे होगा.
आलोक कुमार रेरा कॉन्सिलशन फोरम (RERA CONCILLATION FORUM) के सदस्य भी हैं. फोरम द्वारा दिए गए निर्णय का सुपरटेक द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है. दो साल पहले आरसी जारी हो चुकी है और खरीदार दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन रिकवरी नहीं हो पा रही है. ऐसे में एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि बिल्डर खरीदारों का पैसा कैसे लौटाएगा. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक के दो टावर 3 महीने के अंदर ध्वस्त करने का आदेश दिया है. दोनों ही अपार्टमेंट सेक्टर-93 में हैं और दोनों ही निर्माणाधीन हैं. सुप्रीम कोर्ट के दोनों ही टावर 40-40 मंजिला हैं. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि सभी बायर्स को ब्याज के साथ निर्धारित समय के अंदर उनके पैसे वापस किए जाएं. यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने दिया है. 40-40 मंजिला इन सुपरटेक के टावर में एक-एक हजार फ्लैट्स हैं.
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सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह फ्लैट्स बिल्डर और नोएडा अथॉरिटी की नापाक मिलीभगत की वजह से बने हैं, जिनकी मंजूरी योजना का RWA तक को नहीं पता था. कोर्ट ने कहा कि सुपरटेक T-16 और T-17 टावर को बनाने से पहले फ्लैट मालिक और RWA की मंजूरी लेना जरूरी था.
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11 अप्रैल 2014 को नोएडा प्राधिकरण को 4 महीने की अवधि के भीतर प्लॉट-4 सेक्टर-93a नोएडा में स्थित टावर 16 और 17 को ध्वस्त करने का निर्देश इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दिया गया था. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिट दी गई थी. इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला दिया है. सुपरटेक को यह भी आदेश दिया गया है कि बायर्स को निर्धारित समय के अंदर ब्याज के साथ उनके पैसे लौटाए जाएं. साथ ही कोर्ट ने बिल्डर को रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को 2 करोड़ रुपये की लागत का भुगतान करने के भी निर्देश दिये हैं.
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