नई दिल्ली : दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने लश्कर-ए-तोएबा के पांच संदिग्धों को आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोपों से बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तानी नंबरों से बात होने वाले सिम कार्ड की बरामदगी ये बताने के लिए पर्याप्त नहीं है कि आरोपी आतंकी साजिश की योजना बना रहा था.
कोर्ट ने जिन आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया, उनमें मोहम्मद शाहिद, मोहम्मद राशिद, असबुद्दीन, अब्दुल सुभान और अरशद खान शामिल हैं. इन पांचों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी और UAPA की धारा 18, 18बी और 20 के तहत FIR दर्ज की गई थी. इन आरोपियों में से सुभान और असबुद्दीन को 2001 में CBI ने गिरफ्तार किया था. इन पर आरोप था कि वे गुजरात के संथलपुर में आरडीएक्स, एके 56 और दूसरे हथियारों का जखीरा लेकर जा रहे थे. दोनों को कोर्ट ने दोषी ठहराया था और सजा पूरी होने के बाद 2010 में रिहा कर दिया गया था.
कोर्ट ने कहा कि केवल एक-दूसरे से बातचीत करने या पाकिस्तानी नंबर से बातचीत करने के लिए इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन और सिम कार्ड की बरामदगी किसी भी साजिश के अस्तित्व को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. आरोपियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि मामले की जांच अधिकारी मनीषी चंद्रा ने भी इस बात को स्वीकार किया कि पाकिस्तानी नंबर के स्वामित्व के बारे में विवरण एकत्र नहीं किया जा सका है. आरोपियों को 2013 में गिरफ्तार किया गया था.
नई दिल्ली : दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने लश्कर-ए-तोएबा के पांच संदिग्धों को आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोपों से बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तानी नंबरों से बात होने वाले सिम कार्ड की बरामदगी ये बताने के लिए पर्याप्त नहीं है कि आरोपी आतंकी साजिश की योजना बना रहा था.
कोर्ट ने जिन आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया, उनमें मोहम्मद शाहिद, मोहम्मद राशिद, असबुद्दीन, अब्दुल सुभान और अरशद खान शामिल हैं. इन पांचों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी और UAPA की धारा 18, 18बी और 20 के तहत FIR दर्ज की गई थी. इन आरोपियों में से सुभान और असबुद्दीन को 2001 में CBI ने गिरफ्तार किया था. इन पर आरोप था कि वे गुजरात के संथलपुर में आरडीएक्स, एके 56 और दूसरे हथियारों का जखीरा लेकर जा रहे थे. दोनों को कोर्ट ने दोषी ठहराया था और सजा पूरी होने के बाद 2010 में रिहा कर दिया गया था.
कोर्ट ने कहा कि केवल एक-दूसरे से बातचीत करने या पाकिस्तानी नंबर से बातचीत करने के लिए इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन और सिम कार्ड की बरामदगी किसी भी साजिश के अस्तित्व को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. आरोपियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि मामले की जांच अधिकारी मनीषी चंद्रा ने भी इस बात को स्वीकार किया कि पाकिस्तानी नंबर के स्वामित्व के बारे में विवरण एकत्र नहीं किया जा सका है. आरोपियों को 2013 में गिरफ्तार किया गया था.