प्रगति मैदान, सालारजंग संग्रहालय को नया रूप देने वाले महेंद्र राज का निधन

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Published : May 9, 2022, 9:16 PM IST

महेंद्र राज का निधन

97 वर्षीय महेंद्र राज का अंतिम संस्कार रविवार शाम लोधी रोड श्मशान घाट में किया गया. उनके दोस्तों ने कहा कि उम्र से संबंधित बीमारियों के कारण पिछले कुछ वर्षों से स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था. राज ने छह दशकों से अधिक के करियर में 250 से अधिक परियोजनाओं पर काम किया है. उन्होंने वास्तुशिल्प डिजाइन में नवीन इंजीनियरिंग समाधानों के उपयोग पर काम किया था.

नई दिल्ली : दिल्ली का प्रगति मैदान, हॉल ऑफ नेशंस, हैदराबाद का सालारजंग संग्रहालय, अहमदाबाद के म्यूनिसिपल स्टेडियम और स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनाने वाले स्ट्रक्चरल इंजीनियर महेंद्र राज का रविवार सुबह निधन हो गया. वे आधुनिक भारत की इन प्रतिष्ठित इमारतों के निर्माण के लिए जाने जाते हैं. उनका 97 साल की उम्र में बीते रविवार सुबह दिल्ली के आवास पर निधन हो गया.

97 वर्षीय महेंद्र राज का अंतिम संस्कार रविवार शाम लोधी रोड श्मशान घाट में किया गया. उनके दोस्तों ने कहा कि उम्र से संबंधित बीमारियों के कारण पिछले कुछ वर्षों से स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था. राज ने छह दशकों से अधिक के करियर में 250 से अधिक परियोजनाओं पर काम किया है. उन्होंने वास्तुशिल्प डिजाइन में नवीन इंजीनियरिंग समाधानों के उपयोग पर काम किया था. अपने पेशेवर करियर की शुरुआत में, उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्माण के लिए सहायक डिजाइन इंजीनियर के रूप में काम किया. इन्होंने देश भर के सभी प्रमुख वास्तुकारों के साथ कुछ खास ऐसी इमारतें और भवन बनाए जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.

दिल्ली का प्रगति मैदान
दिल्ली का प्रगति मैदान

1946 में लाहौर से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद, राज पंजाब वर्क्स डिपार्टमेंट बिल्डिंग्स एंड रोड्स में शामिल हो गए. बाद में वे चंडीगढ़ में ले कॉर्बूसियर की इमारतों पर काम करने वाले कार्यकारी इंजीनियर बन गए. महेंद्र राज ने काव्य सौंदर्य को ठोस रूप दिया. उन्होंने चेन्नई में फूल बाजार (1985-97), हॉल ऑफ नेशंस (1971-72) के साथ जमीन पर उन्होंने जो संरचनात्मक काम किया, अहमदाबाद स्टेडियम का बेहतरीन काम किया (1962-65). आर्किटेक्ट संजय कानविन्दे बताते हैं कि जब वह चंडीगढ़ उच्च न्यायालय (1951) में कॉर्बूसियर के साथ एक जूनियर इंजीनियर थे, उन्होंने अपने वरिष्ठ प्रस्तावित संशोधनों के साथ अपनी कुशलता का उदाहरण पेश किया. उन्होंने कॉर्बूसियर के विकल्प प्रस्तुत किए, जिसे अंततः फ्रांसीसी-स्विस वास्तुकार ने स्वीकार कर लिया. कॉर्बूसियर के साथ उनके काम ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वे न्यूयॉर्क चले गए और 1959 तक अम्मन व्हिटनी कंसल्टिंग इंजीनियर्स में काम किया. उन्होंने 1960 में मुंबई में महेंद्र राज कंसल्टेंट्स की शुरुआत की. तब तक, उनकी मुलाकात दिवंगत वास्तुकार चार्ल्स कोरिया से हो चुकी थी, जिनके साथ उन्होंने 1961 में प्रगति मैदान में हिंदुस्तान यूनिलीवर मंडप का निर्माण किया. कागज की एक टूटी हुई चादर की तरह, यह दीवारों से घिरे रैंप और प्लेटफार्मों का एक चक्रव्यूह था, कुछ अंदर की ओर, कुछ बाहर की ओर.

सालारजंग म्यूजियम
सालारजंग म्यूजियम
उनके मित्र बताते हैं कि 70 के दशक से 90 के दशक तक देश में स्थापत्य महत्व की लगभग हर इमारत पर महेंद्र राज की मुहर है. वह जानता था कि अपनी संरचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से एक वास्तुकार की दृष्टि को कैसे स्पष्ट किया जाए. वे एक संतुलित इंसान थे और यह उनके जीवन और इमारतों में दिखाई देता है. उनके सभी कामों में संरचनात्मक मजबूती है और वह किसी भी वास्तुकार की इच्छा के अनुसार किसी भी इमारत को आकार दे सकते थे. वास्तुकार और शहरी डिजाइनर के टी रवींद्रन कहते हैं कि उनका जाना भारत के लिए और व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए बहुत बड़ी क्षति है. वह एक प्रिय मित्र था, बहुत गर्मजोशी से और वह हमारी हर बातचीत में एक व्यक्तिगत स्पर्श लाता था. राज ने इंजीनियरों के पेशे के नियमन के लिए कानून बनाने में भी मदद की, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने 2002 में इंजीनियरिंग काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना की. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ कंसल्टिंग इंजीनियर्स के एक सक्रिय सदस्य रहे. उनके पास कई पुरस्कार और मान्यताएं हैं.
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