कोरोना काल पर एयूडी के छात्रों ने किया शोध, लोगों ने जानी बालकनी की अहमियत

कोरोना काल पर एयूडी के छात्रों ने किया शोध, लोगों ने जानी बालकनी की अहमियत
कोरोना काल में देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में क्या परिवर्तन आया, इसको लेकर अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली ( एयूडी ) के एमए अर्बन स्टडीज के सेकंड ईयर के छात्रों का तरफ से स्टूडियो प्रोजेक्ट के तहत शोध किया गया. आइए जानते हैं इस शोध के बारे में...
नई दिल्ली: कोरोना वैश्विक महामारी का असर एक बार फिर पूरी दिल्ली में दिखाई दे रहा है. जिसको देखते हुये अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली ( एयूडी ) के अर्बन स्टडीज के सेकंड ईयर के छात्रों का तरफ से स्टूडियो प्रोजेक्ट के तहत किए गए शोध में पाया गया कि आरडब्ल्यूए पहले से कहीं सक्रिय रहा साथ ही मास्क के बढ़ते डिमांड से कई कंपनियों को आर्थिक लाभ हुआ तो वहीं ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते ट्रेंड से रेडी विक्रेता और ठेलेवालों का धंधा भी चौपट हुआ है.
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कोरोना काल में लोगों का बालकनी से बढ़ा लगाव
कोरोना काल में देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में क्या परिवर्तन आया इसको लेकर अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली ( एयूडी ) के एमए अर्बन स्टडीज के सेकंड ईयर के छात्रों का तरफ से स्टूडियो प्रोजेक्ट के तहत शोध किया गया. इसके बारे में प्रोजेक्ट के संयोजक और अर्बन स्टडीज विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर रोहित नेगी ने बताया कि इस शोध यह बात सामने आई है कि घर में रहने की वजह से बहुत सारे लोगों के लिए घर की परिभाषा ही बदल गई. जो लोग ज्यादातर समय बाहर बिताते थे उनकी दुनिया भी घरों में ही सिमट गई. आलम यह रहा कि घर का कायाकल्प हो गया और बालकनी और टेरेस मानो समाज से जुड़े रहने का एक संसाधन बन गए और शायद यही वजह रही कि लोगों ने अपने टेरेस और बालकनी को इस दौरान काफी सजाया और संवारा.
संसाधन लोगों ने घर में ही जुटाने शुरू कर दिए
वहीं प्रो. नेगी ने बताया कि थिएटर, मॉल, सिनेमा घर सब कुछ बंद होने की वजह से यह सभी संसाधन लोगों ने घर में ही जुटाने शुरू कर दिए. किसी ने बालकनी में बागवानी की तो, किसी ने टेरेस पर ही बार बना लिया. घर का वह हिस्सा जो महज़ स्टोर के लिए इस्तेमाल होता था. वहां लोग घंटों समय बिताने लगे मानो बाहरी दुनिया से जुड़े रहने का इकलौता साधन हो.
आरडब्ल्यूए कोरोना काल में हुआ सक्रिय
आगे प्रो. नेगी ने बताया कि घरों से आगे चलकर मोहल्लों की बात करें तो कोरोना काल के दौरान आरडब्ल्यूए भी काफी सक्रिय हुआ. बढ़-चढ़कर सभी सुरक्षा इंतजाम किए. हालांकि इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही परिणाम देखने को मिले. उन्होंने कहा जहां आरडब्ल्यूए की सक्रियता की वजह से कोरोना संक्रमण के फैलाव पर नियंत्रण किया जा सका वही अधिक सख्ती होने की वजह से रेडी,पटरी वाले, सब्जी वाले यहां तक कि घरों में काम करने वाली मेड की आजीविका पर संकट आ गया था.
मास्क बनाकर कंपनियों को हुआ आर्थिक लाभ
प्रो. नेगी ने कहा कि अगर आर्थिक तौर पर कोरोना के असर की बात करें शोध में यह बात सामने आई है कि कोरोना के दौरान सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले मास्क से कई कंपनियों ने मोटी कमाई की है. उन्होंने कहा कि जहां पहले लोगों ने सस्ते मास्क से शुरुआत की थी वहीं आगे चलकर यह एक फैशन ट्रेंड बन गया और लोग महंगे मास्क खरीदने लग गए. महंगे मास्क की डिमांड बढ़ी तो कई कंपनियों ने महंगे मास्क बनाने शुरू किए और मोटी कमाई की.
ऑनलाइन शॉपिंग से रेहड़ी पटरी वालों की छीनी जीविका
साथ ही उन्होंने कहा कि डिजिटलाइजेशन बढ़ा, कोविड-19 के चलते लोगों ने सभी सामान ऑनलाइन ही ऑर्डर करने शुरू कर दिए. ऑनलाइन खरीदारी का सबसे बुरा असर पड़ा रेहड़ी पटरी वालों पर. गली मोहल्लों में या सड़कों के किनारे रेडी लगाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले विक्रेताओं की आजीविका पूरी तरह से ठप हो गई. नतीजतन कईयों को कामकाज बंद हो जाने की वजह से अपने प्रदेशों को वापस लौटना पड़ा.
पीएम के आह्वान के बाद से लोगों ने जाना बालकनी का महत्व
अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली की कुलपति प्रोफेसर अनु सिंह लाथेर ने छात्रों के इस प्रोजेक्ट की सराहना की. साथ ही उन्होंने कहा कि इस शोध के जरिए इस बात का पता लग सका कि कैसे लोगों ने अपनी बालकनी को सबसे अधिक महत्व देकर उसकी सजावट पर विशेष ध्यान दिया. वहीं उन्होंने इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बालकनी में एक साथ खड़े होकर कोरोना वाररिर्स की हौसला अफजाई के लिए ताली बजाने, थाली बजाने की बात से जोड़ा और कहा कि शायद यही सबसे सही इस्तेमाल था बालकनी का जिसके बाद ही लोगों को यह बात समझ जाए की बालकनी भी एक ऐसी जगह है जहां से बाहरी दुनिया से जुड़ा जा सकता है.
