थम रहा कोरोना का कोहराम, चलो फिर स्कूल चलें हम

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Published : Sep 22, 2021, 5:11 PM IST

वैक्‍सीनेशन सबसे बड़ी प्राथमिकता

कोरोना का असर धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. बावजूद इसके शैक्षिक गतिविधियों में तेजी नहीं आयी है. लगभग डेढ़ साल से बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, लेकिन अब एक लीड सर्वे में दिल्‍ली के 76% पेरेंट्स अपने बच्‍चों को वापस स्‍कूल भेजने के लिए तैयार दिखे हैं. प्राइमरी और सेकंडरी स्‍टूडेंट्स के 59% पैरेंट्स का मानना है कि उनके बच्‍चों की पढ़ाई में नुकसान हुआ है. 22% पेरेंट्स कहते हैं कि बच्‍चों की संपूर्ण उपस्थिति के लिए स्‍कूल स्‍टाफ का वैक्‍सीनेशन सबसे बड़ी प्राथमिकता है.

नई दिल्ली : लगभग 18 महीने बाद राज्‍य सरकारें चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन के नियमों में छूट दे रही हैं और स्‍कूल दोबारा खुल रहे हैं. इस बीच प्रमुख एडटेक (एजुकेशन टेक्‍नोलॉजी) कंपनी लीड ने पेरेंट्स के साथ एक सर्वे किया है, ताकि बच्‍चों को वापस स्‍कूल भेजने पर उनके विचार समझा जा सकें. इस सर्वे के परिणाम बताते हैं कि जवाब देने वालों में से 59% को लगता है कि महामारी के कारण उनके बच्‍चों की पढ़ाई का नुकसान हुआ है और दिल्‍ली में 76% पेरेंट्स अपने बच्‍चों को वापस स्‍कूल भेजना चाहते हैं. उनका मानना है कि स्‍कूलों के दोबारा खुलने से ही स्‍कूल का पूरा अनुभव मिलना संभव है. यह सर्वे मेट्रो और नॉन-मेट्रो शहरों में रहने वाले उन 10,500 पेरेंट्स के बीच हुआ था, जिनके बच्‍चे कक्षा 1 से लेकर 10 में पढ़ते हैं.

लीड का सर्वे बताता है कि अपने बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य और सुरक्षा को ध्‍यान में रखते हुए, 22% पेरेंट्स के लिये स्‍कूल स्‍टाफ का वैक्‍सीनेशन सबसे बड़ी प्राथमिकता है. इसके अलावा, 55% मेट्रो पेरेंट्स ने सामाजिक दूरी को सबसे महत्‍वपूर्ण माना, जिसके बाद स्‍वास्‍थ्‍य रक्षा सुविधाओं की बारी थी (54%). इधर नॉन-मेट्रो पेरेंट्स ने कहा कि खेलों और सामाजिक दूरी का महत्‍व बराबर है (52%).

वैक्‍सीनेशन सबसे बड़ी प्राथमिकता
पेरेंट्स ने महामारी के दौरान बच्‍चों और खुद के सामने आई चुनौतियों पर बात की और याद किया कि शुरुआती दिनों में वे कैसे ‘वर्क फ्रॉम होम’ और ‘स्‍कूल फ्रॉम होम’ के बीच ताल-मेल बिठाते थे. अध्‍ययन में पाया गया कि 47% मेट्रो पेरेंट्स ने अपने बच्‍चों के स्‍कूल में हर दिन 3 से 4 घंटे बिताये, जबकि ऐसा करने वाले नॉन-मेट्रो पेरेंट्स 44% थे. सर्वे में बताया कि अधिकांश पेरेंट्स (63%) को लगता है कि फिजिकल क्‍लासरूम में होने से बच्‍चों की सामाजिक पारस्‍परिक क्रिया बेहतर होती है.

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लीड के को-फाउंडर और ceo सुमीत मेहता ने सर्वे के नतीजों को लेकर बताया कि पिछले डेढ़ साल टीचर्स, प्रिंसिपल्‍स, स्‍कूलों और स्‍टूडेंट्स के लिये आसान नहीं रहा है. सबसे कम आय वाले परिवारों के बच्‍चों को डाटा और डिवाइसेस तक पहुंच नहीं होने के कारण पढ़ाई में सबसे ज्‍यादा नुकसान हुआ है. हमारा सर्वे स्‍पष्‍ट रूप से दिखाता है कि दिल्‍ली में 76% पेरेंट्स अपने बच्‍चों को वापस स्‍कूल भेजना चाहते हैं तो, आइये हम पेरेंट्स की बात सुनें और जो 24% लोग तैयार नहीं हैं, उनके लिये ऑनलाइन पढ़ाई की व्‍यवस्‍था करें. स्‍कूलों को अनिवार्य उपयोगिता माना जाना चाहिये और पेरेंट्स अपने बच्‍चों को सकारात्‍मक और खुले दिमाग से वापस स्‍कूल भेजें. आइये, हम सभी जरूरी सावधानियां बरतते हुए और सुरक्षा के उपायों को अपनाकर स्‍कूल में बच्‍चों के स्‍वागत की तैयारी करें.

मेट्रो और नॉन-मेट्रो, दोनों तरह के 70% पेरेंट्स ने कहा कि वे अपने बच्‍चों की पढ़ाई से जुड़े थे, लेकिन इस पढ़ाई से जुड़ने वाली ‘माताओं’ की सहभागिता मेट्रो शहरों में ज्‍यादा (21%) थी, जबकि नॉन-मेट्रो में 18%, यानी कम थी. इससे पता चलता है कि उस दौरान खासतौर से कामकाजी महिलाओं की जिम्‍मेदारियां बढ़ गई थीं.

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