बिना दूसरे पक्ष को सुने ही क्यों चलाया जा रहा बुलडोजर ?

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Published : Jun 16, 2022, 8:22 PM IST

Updated : Jun 16, 2022, 10:06 PM IST

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हमारे नेता पद ग्रहण करते समय संविधान और कानून के अक्षरशतः पालन करने की शपथ लेते हैं. वे भय या पक्षपात, राग या विद्वेष की भावना से रहित होकर काम करने के वचन को दोहराते हैं. लेकिन आज की तारीख में ऐसे शपथ अप्रासंगिक मालूम होते हैं. उन्होंने 'बांटो और राज करो' की नीति अपना ली है. वे जिन्हें टारगेट करना चाहते हैं, उनके खिलाफ 'बुलडोजर' चला देते हैं. भाजपा शासित कुछ राज्यों में 'पाठ पढ़ाने' की मंशा से 'डेमोलिशन' ड्राइव को चलाया जा रहा है. ऐसा करते समय वे अपने ही नागरिकों को उनके प्राकृतिक न्याय से महरूम कर देते हैं. जैसा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने ठीक ही उद्धृत किया, 'विध्वंस की ये अनुचित कार्रवाई अल्पसंख्यकों के मन में भय बिठाने की कोशिश है.'

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुई हिंसा के एक आरोपी, मोहम्मद जावेद, का घर स्थानीय निगम ने गिरा दिया. स्थानीय प्रशासन ने इस कार्रवाई का बचाव किया है. उन्होंने दावा किया कि जावेद का घर 'अवैध ढांचा' था. प्रशासन यह भी कह रहा है कि उसने इस कार्रवाई से पहले सभी प्रक्रियाओं का पालन किया है. हकीकत ये है कि यह मकान जावेद की पत्नी के नाम पर था. उन्होंने हाउस टैक्स और वाटर टैक्स भी समय पर जमा करा दिए थे. दरअसल, प्रशासन ने घर गिराने की एक मात्र मंशा से पहले की अलग-अलग तारीखों में जारी किए गए नोटिस दिखाए हैं. यूपी के दूसरे शहरों, जैसे कानपुर और सहारनपुर में भी बुलडोजर चलाए गए.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में बहुत ही साफ तौर पर कहा कि गैरकानूनी ढांचों को गिराने से पहले अग्रिम सूचनाएं दी जानी चाहिए और आरोपी को अपना पक्ष रखने के लिए समय देना चाहिए. 'ऑडी अल्टरम पार्टेम' यानी, दूसरे पक्ष को सुनें - यह एक लोकप्रिय कानूनी शब्द है. अगर सरकार खुद ही प्रदर्शनकारियों से बदला लेने की भावना से कानून का दुरुपयोग करती है, खुद ही वकील और खुद ही मुख्तार बन जाए, तो अव्यवस्था के अलावा कुछ और नहीं होगा. इन प्रवृत्तियों पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों समेत 12 प्रमुख न्यायविदों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक चिट्ठी लिखकर घरों पर बुलडोजर चलवाने की कार्रवाई को संविधान का मजाक उड़ाना बताया है.

उन्होंने उच्चतम न्यायालय से इस मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाई है. ऐसे समय में सिर्फ न्यायपालिका ही आम लोगों के संरक्षक के रूप में खड़ी होती है, खासकर तब जबकि हिंसा में स्टेट खुद शामिल हो जाए. और इन परिस्थितियों में आम लोगों के लिए कोर्ट ही एक मात्र संरक्षक भी है.

खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा की घटना के बाद मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने चेतावनी दी थी, कि जिन घरों से पत्थर चलाए गए हैं, उनके घर मिट्टी में मिला दिए जाएंगे. यह बात सही है कि जब हिंसा फैलती है, तो जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए. उनकी पहचान की जानी चाहिए. लेकिन दोष सिर्फ अदालत में साबित किया जा सकता है. सजा भी न्यायपालिका ही दे. हाल ही में यूपी के भाजपा विधायक शलभमणि त्रिपाठी ने एक वीडियो शेयर किया है. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह से खाकी पहने हुए कुछ लोग कुछ युवाओं को पीट रहे हैं. उसमें कैप्शन डाला गया है- ए रिटर्न गिफ्ट टू द रॉयटर्स. यूपी के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी कहा कि जो भी शांति भंग करने की कोशिश करेगा, उनके खिलाफ बुलडोजर की कार्रवाई की जाएगी.

अब यहां पर एक मामले का उल्लेख जरूरी है. मामला है गुजरात विधानसभा के उपाध्यक्ष जीतभाई अहिर से जुड़ा. उन पर आरोप लगा है कि उन्होंने रिजर्व फॉरेस्ट में बिल्डिंग बनवाई है. शिकायत मिलने के बाद कोर्ट ने उन्हें नोटिस जारी कर दिया. यह कोई अकेला मामला नहीं है. इसी तरह से ऐसे कई मामले हैं, जहां पर गैर कानूनी ढंग से कब्जा जमाने का आरोप है. लेकिन उनके खिलाफ बुलडोजर जैसी कोई कार्रवाई नहीं की गई. इसका मतलब सीधा है कि सरकार विरोधी आवाजों को दबाने के लिए बुलडोजर का उपयोग किया जा रहा है. यूपी, एमपी, दिल्ली, गुजरात, उत्तराखंड और असम में बुलडोजर की कार्रवाई तेजी से चल रही है. कर्नाटक के नेता भी 'यूपी मॉडल' को लागू करने की इच्छा जता चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता कहते हैं कि अगर नेता और पुलिस कानून को इस तरह से अपने हाथ में ले लेंगे, तो आम लोग कहां जाएंगे. यही सवाल आज हर व्यक्ति के मन में है. शायद भाजपा हाईकमांड को इस पर जवाब देना चाहिए !

Last Updated :Jun 16, 2022, 10:06 PM IST
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