नई दिल्ली : चार साल पहले 29 साल के पारस उर्फ परवेज को एक मुस्लिम महिला से प्यार हो गया. महिला के कथित तौर पर सेक्स वर्कर होने के बावजूद उसने अपना धर्म बदलकर इस्लाम अपनाया और अप्रैल 2019 में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार उससे शादी कर ली. महिला के माता-पिता की धमकी के कारण ये जोड़ा राजस्थान चला गया. अप्रैल 2019 में हाईकोर्ट में अपील कर सुरक्षा मांगी. मई में कोर्ट ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की.
हालांकि, प्रेम कहानी में खटास आ गई है (Love story gone wrong). महिला ने जुलाई 2019 में पति को तलाक दे दिया. अप्रैल 2023 में एक प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने उसे वेश्यावृत्ति में धकेलने का प्रयास किया, उसके साथ दुष्कर्म किया और आपत्तिजनक तस्वीरों के साथ उसे ब्लैकमेल भी किया. पारस राहत के लिए दर-दर भटकते रहा, आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने उसे गिरफ्तारी से बचाने का आदेश जारी किया (SC gives protection from arrest ) और अग्रिम जमानत की मांग वाली उनकी याचिका पर नोटिस भी जारी किया.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने 15 सितंबर को एक आदेश में कहा, 'उत्तरदाताओं को नोटिस जारी करें. इस बीच, याचिकाकर्ता को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा लेकिन वह जांच में सहयोग करेगा.'
शीर्ष अदालत के समक्ष पारस का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील नमित सक्सेना ने तर्क दिया कि 26 अप्रैल, 2023 की एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि घटना 22 अप्रैल, 2019 और 29 मार्च, 2023 के बीच हुई, लेकिन उसी अवधि के दौरान उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की. उसे अपने परिवार से सुरक्षा मिली क्योंकि यह शादी उनकी इच्छा के विरुद्ध थी.
सक्सेना ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने शिकायतकर्ता की सक्रिय यौनकर्मी होने की पहचान को नजरअंदाज करते हुए उससे शादी की, हालांकि उसने शादी के बाद भी अपने तरीके नहीं बदले और उसी जीवनशैली को जारी रखा, जिससे दंपति के बीच मनमुटाव हो गया. उसने उनके मुवक्किल से कोई न कोई बहाना बनाकर पैसे ऐंठना शुरू कर दिया. जून 2023 में ट्रायल कोर्ट ने अग्रिम जमानत की मांग करने वाली पारस की याचिका खारिज कर दी. इसी तरह, राजस्थान उच्च न्यायालय ने जुलाई में उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी. पारस ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया.
पारस ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि शिकायतकर्ता ने इसलिए उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई ताकि उसे उस अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सके जो उसने नहीं किया है. पारस ने अदालत के सामने कहा कि उसने बहुत अस्पष्ट और सामान्य आरोप लगाए हैं.
इस एफआईआर को दर्ज करने में 4 साल की काफी देरी हुई है और इसकी सामग्री से जोड़े के बीच विवाह की बात स्वीकार करने और याचिकाकर्ता द्वारा केवल शादी करने के लिए हिंदू धर्म से इस्लाम में रूपांतरण का पता चलता है... एफआईआर केवल याचिकाकर्ता को परेशान करने और उससे पैसे ऐंटने के लिए दर्ज की गई है.
याचिका में कहा गया है, 'उच्च न्यायालय इस बात को समझने में विफल रहा कि शिकायतकर्ता ने एफआईआर में पूरी तरह से गलत कहा है कि याचिकाकर्ता ने उसे वेश्यावृत्ति में घसीटा था... उच्च न्यायालय इस बात को समझने में विफल रहा कि याचिकाकर्ता को एफआईआर में उल्लिखित धाराओं के तहत फंसाने की क्या भूमिका थी. प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता पर कोई दोष नहीं लगाया गया है जो शिकायतकर्ता के मामले को साबित कर सके.'
याचिका में इस बात पर जोर दिया गया कि शिकायतकर्ता या अभियोजन पक्ष द्वारा किसी भी व्यक्ति या किसी गवाह को रिकॉर्ड पर नहीं लाया जा सका जो साबित कर सके कि याचिकाकर्ता ने अपराध किया है जैसा कि एफआईआर में आरोप लगाया गया है.