कोरोना की दूसरी लहर मोदी सरकार की नीति और खराब प्लानिंग का नतीजा : लांसेट की रिपोर्ट

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Published : May 8, 2021, 11:03 PM IST

लांसेट रिपोर्ट

भारत में कोरोना की दूसरी लहर के लिए मशहूर मेडिकल जर्नल लांसेट में छपे एक लेख में विशेषज्ञों ने भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. कुछ ने सरकार के फैसले तो कुछ ने सरकार की नीति और नियोजन पर सवाल उठाया है. रिपोर्ट में क्या है खास पढ़िये पूरी ख़बर

हैदराबाद: भारत इस वक्त कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का कहर झेल रहा है. रोजाना रिकॉर्ड तोड़ मामलों के साथ रिकॉर्ड तोड़ मौत के मामलों ने सबको चिंता में डाल दिया है. इस बीच मशहूर मेडिकल जर्नल लांसेट ने एक रिपोर्ट में कोरोना से निपटने के प्रयासों को लेकर भारत सरकार और उसकी तैयारियों पर सवाल खड़े किए हैं.

कोरोना की दूसरी लहर से लड़ रहा भारत

रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे भारत में रिकॉर्डतोड़ मामले आ रहे हैं और इस वक्त दुनिया में अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा कोरोना मरीज भारत में है. भारत में 4 अप्रैल को 1 लाख नए केस सामने आए जो 21 अप्रैल को 3 लाख के पार पहुंच गए. महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों का हवाला देकर बताया गया है कि लॉकडाउन लगा दिया गया है और कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने और ऑक्सीजन प्लांट लगाने की कवायद चल रही है.

कई शहरों में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा धराशायी हो चुका है जिसके बाद राज्यों में लॉकडाउन और कर्फ्यू लगाया गया. कोरोना के बढ़ते आंकड़ों के बीच ऑक्सीजन प्लांट लगाने से लेकर दूसरी स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है. रिपोर्ट में पीएम मोदी की मन की बात का हवाला देते हुए बताया गया है कि पीएम मोदी ने 25 अप्रैल को कहा था कि ''देश में दिन रात अस्पताल, वेंटिलेटर, दवाओं जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं पर दिन रात काम हो रहा है''.

दूसरी लहर में भारत में ऑक्सीजन की कमी
दूसरी लहर में भारत में ऑक्सीजन की कमी

दूसरी लहर की अनदेखी की गई

रिपोर्ट में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं कि साल 2021 में एक राय नीति निर्माताओं से लेकर मीडिया और जनता के बीच बन गई कि भारत ने महामारी पर काबू पा लिया है. यहां तक कि वैज्ञानिकों ने भी इस बात का प्रचार किया. यह धारणा की कोई दूसरी लहर नहीं होगी, इसने पाबंदियों को हटाकर आर्थिक विकास के लिए बाजार खोलने और पाबंदियों को हटाने का बल दिया.

चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़

इस साल जनवरी-फरवरी में कोरोना के मामले बहुत कम थे लेकिन मार्च में सार्वजनिक समारोहों में भीड़ उमड़ने लगी. पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा के बाद देश के प्रधानमंत्री के समेत कई सियासी दलों के नेताओं ने सैंकड़ों जनसभाएं और रैलियां की.

रिपोर्ट में बंगाल की एक चुनावी रैली में पीएम मोदी के एक बयान का जिक्र किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि मैंने इतनी भीड़ किसी रैली में नहीं देखी. चुनाव अभियान के दौरान उनकी पार्टी के नेता उनकी जनसभाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग रैली में पहुंचे.

चुनावी रैलियों पर भी लांसेट रिपोर्ट में सवाल उठाए
चुनावी रैलियों पर भी लांसेट रिपोर्ट में सवाल उठाए

चुनाव आयोग और कुंभ के आयोजन पर सवाल

रिपोर्ट में भारत के निर्वाचन आयोग पर भी सवाल उठाते हुए कहा गया है कि चुनावों के आयोजन के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है. महामारी के दौरान बड़ी-बड़ी रैलियां और रोड शो हुए लेकिन इस ओर आयोग ने कोई ध्यान नहीं दिया. सिर्फ चुनाव के आखिरी हफ्ते में ही रोड शो और रैलियों पर कार्रवाई की बात कही हालांकि नेताओं को 500 लोगों के साथ पब्लिक मीटिंग की अनुमति दी गई.

चुनाव आयोग पर भी उठाए हैं सवाल
चुनाव आयोग पर भी उठाए हैं सवाल

रिपोर्ट में कुंभ के आयोजन पर भी सवाल उठाए गए हैं. कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद केंद्र और राज्य सरकार ने कुंभ को जारी रखा. लाखों लोग गंगा में पवित्र डुबकी लगाने हरिद्वार पहुंचे. कुंभ में भी कोरोना के 2000 मामले सामने आए.

श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक पाबंदियां हटने के बाद समारोहों, रैलियों, भीड़, बड़े पैमाने पर यात्रा और मास्क जैसी कोविड से जुड़ी सावधानियां ना अपनाने के कारण वायरस को फैलने का मौका मिला.

कुंभ के आयोजन पर भी उठाए सवाल
कुंभ के आयोजन पर भी उठाए सवाल

सरकारों की कमी

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस में स्कूल ऑफ हेल्थ सिस्टम स्टडीज़ के पूर्व डीन टी. सुंदर रमन मानते हैं कि ये सराकर की कमी है. क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों ने पहली लहर का कहर थमने के बाद अस्पतालों में किए गए ऑक्सीजन के इंतजामों की व्यवस्था को सीमित समय के बनाया लेकिन इस सिस्टम को ऐसा बनाया जाना था कि वक्त आने पर जल्द से जल्द तैयार किया जा सके. सरकार ने ऐसी योजना नहीं बनाई जो कोरोना के कम मामले और अधिक मामले दोनों वक्त काम आ सके.

वैक्सीनेशन पर सवाल

भारत में हो रहे कोविड-19 टीकाकरण को सरकार ने दुनिया में सबसे बड़ा अभियान बताया. भारत में दोनों वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां टीकों का निर्माण कर दूसरे देशों को निर्यात भी कर रही है लेकिन भारत को अपने ही टीकाकरण कार्यक्रम के लिए टीकों की कमी झेलनी पड़ रही है. कुछ लोगों को पहला टीका मिल चुका है दो वो दूसरी डोज नहीं ले पा रहे हैं क्योंकि देशभर में बनाए गए टीकाकरणों में टीकों की कमी सामने आ रही है.

भारत में कोरोना वैक्सीन की कमी पर सवाल
भारत में कोरोना वैक्सीन की कमी पर सवाल

गलत प्लानिंग का नतीजा

एक निजी विश्वविद्यालय में कार्यरत वायरस विज्ञानी शाहिद जमील के मुताबिक ये पूरी तरह से गलत प्लानिंग का नतीजा है. भारत में वैक्सीन कंपनियों को पर्याप्त ऑर्डर नहीं दिए गए, अगर ऐसा होता तो वो वक्त पर ज्यादा से ज्यादा खुराक तैयार कर लेते. जिन देशों ने टीकाकरण को गंभीरता से लिया है उन्होंने वैक्सीन निर्माताओं को ऑर्डर दे दिए थे.

वैक्सीन की कमी के बावजूद भारत दूसरे देशों को वैक्सीन निर्यात कर रहा है. इसमें दान और मदद में दी गई वैक्सीन भी शामिल है. शाहिद जमील कहते हैं कि भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी, निर्यात की नीति और वैक्सीन दान में देना अच्छी बात है लेकिन हमने अपनी मांग को कम करके आंका है.

कई देशों ने लगाई रोक

भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए कई देशों ने सावधानियां बरती. ब्रिटिश सरकार ने भारत से आने वाले लोगों के ब्रिटेन में एंट्री पर बैन लगा दिया और फ्रांस की सरकार ने भारत से आने वाले लोगों के लिए 10 दिन क्वारंटीन रहने का नियम बना दिया.

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