राजस्थान : पंचतत्व में विलीन हुए शहीद नायक राजेंद्र सिंह

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Published : Oct 1, 2019, 12:08 AM IST

Updated : Oct 2, 2019, 4:54 PM IST

कश्मीर में आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले राजस्थान के सरहदी जिले के सपूत राजेंद्र सिंह का पार्थिव देह जैसलमेर पहुंचा. वहीं सभी लोगों ने नम आंखों के साथ माटी के लाल को विदा किया. वहीं शहीद का अंतिम संस्कार मोहनगढ़ कस्बे स्थित श्मशान घाट पर किया गया.

जैसलमेर: जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए नायक राजेंद्र सिंह का पार्थिव देह जैसलमेर पहुंचा. इसकी जानकारी मिलने के बाद से मोहनगढ़ गांव सहित जैसलमेर में उनके पैतृक गांव में शोक की लहर छाई हुई है. शहीद राजेंद्र सिंह भाटी को उनके दो वर्षीय पुत्र भूपेंद्र ने दी मुखाग्नि दी.

इससे पहले शहीद का पार्थिव शरीर सुबह उनके पैतृक गांव मोहनगढ़ पहुंचा. जैसलमेर वायुसेना से पार्थिव शरीर के गांव के लिए रवाना होने पर शहर में शहीद के सम्मान में हजारों लोगों ने सड़क के दोनों किनारों खड़े होकर पुष्पवर्षा कर श्रद्धांजलि दी. लोगों ने राजेंद्र सिंह अमर रहे, जब तक सूरज चांद रहेगा राजेंद्र सिंह तेरा नाम रहेगा जैसे गगनभेदी नारे लगाए.

शहीद को केंद्रीय राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, राज्य के अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद, विधायक रूपाराम धनदे ,जिला कलेक्टर नमित मेहता ,पुलिस अधीक्षक डॉ किरण कंग ,जिला प्रमुख अंजना मेघवाल तथा अन्य कई जनप्रतिनिधियों, सेना के अधिकारियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने श्रद्धांजलि दी.

पंचतत्व में विलीन राजेंद्र सिंह

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ के सपूत नायक राजेन्द्र सिंह शहीद हो गए थे. शहीद राजेन्द्र सिंह का जन्म 24 दिसम्बर 1992 को हुआ था. घर में बड़ा पुत्र होने के कारण माता-पिता ने बड़े लाड-प्यार से पाला था. बारहवीं तक पढने के बाद 1 जनवरी 2013 को राजेन्द्रसिंह का आर्मी में चयन हुआ. उनकी माता का निधन 2006 में हो गया था, वहीं सेना में नौकरी मिलने के लगभग साढ़े सात माह बाद पिता का भी छाया सिर उठ गया था. पूरे परिवार का लालन पालन का जिम्मा राजेन्द्र सिंह के कंधों पर आ गया था. 8 दिसम्बर 2016 को राजेन्द्र सिंह का विवाह जालोड़ा तहसील फलोदी निवासी जमना कंवर के साथ हुआ. शनिवार को शहीद की शहादत के बारे में सुनकर ग्रामीणों में शोक की लहर दौड़ गई.

शहीद राजेन्द्र सिंह लगभग दो महीने पूर्व मोहनगढ़ आया था. वह नवम्बर महीने में वापस छुट्टी पर आने का कह कर गए थे. लेकिन इस बार घर वापस आए तो तिरंगे में लिपटे हुए थे. वहीं शहीद नायक राजेन्द्र सिंह की पत्नी का रो रोकर बुरा हाल है, वहीं पूरे परिवार को बिलखता देख शहीद का बेटा भी रोने लगा.

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मंत्री ने दिया सहयोग का भरोसा
वहीं शहीद की अंतिम यात्रा में शामिल होने पहुंचे केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा है कि इस दुख की घड़ी में गौरव का क्षण भी शामिल है कि आज इस धरती का सपूत अपना नाम अमर कर गया है. उन्होंने परिवार जनों को ढांढस बंधाते हुए कहा कि सरकार की ओर से शहीद के परिवार को हर संभव सहयोग दिया जायेगा और शहीद के परिवार को कभी भी यह महसूस नहीं होने दिया जायेगा कि वह अकेला है.

कलेक्टर ने सौंपा पांच लाख का चैक
शहीद राजेन्द्र सिंह के परिवार को सहयोग में जिला कलक्टर द्वारा शहीद के परिवार को पांच लाख रूपये का चैक करगिल सहायता कोश के माध्यम से सौंपा गया और आगे भी शहीद के परिवार को मिलने वाली सभी सुविधाओं के जल्द ही लाभ दिलाए जाने की बात कही. जिला कलक्टर नमित मेहता ने कहा कि देश के लिए गौरव का विषय है कि यहां की धरती ने इस तरह के लाल को पैदा किया है. वहीं राजेन्द्र की शहादत जिले के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने, ऐसी उन्होंने अपेक्षा की है.

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कुछ दिन पहले ही शहीद ने बदला था अपना व्हाट्सएप स्टेटस
जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे के शूरवीर नायक राजेन्द्र सिंह के मन के भीतर देश प्रेम का जज्बा किस तरह का था इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कुछ दिन पहले ही शहीद ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस को बदलते हुए उस पर लिखा था कि सैनिक का धर्म विजय या वीरगति होना है.

Intro:Body:"जननी जणै तो दोय जण, के दाता के सूर, नीतर रहजे बांझणी मती गमाजे नूर"
पंचतत्व में विलीन हुआ शहीद नायक राजेंद्र सिंह का शव
मोहनगढ़ कस्बे स्थित श्मशान घाट पर हुआ अंतिम संस्कार
सैन्य सम्मान के साथ शहीद को दी गई अंतिम विदाई
प्रशासनिक अधिकारी ,सेना से जुड़े अधिकारी व जनप्रतिनिधियों के साथ बड़ी संख्या में जनसमूह रहा मौजूद
नम आंखों के साथ माटी के लाल को किया विदा

रेत के समंदर में नहर के पास 9 हजार की आबादी वाले मोहनगढ़ गांव की मिट्टी में रविवार को गम के साथ गौरव दिखाई दिया। जिस माटी में राजेन्द्र खेला, कूदा, अपने पैरों खड़ा हुआ, यहां के खेतों के अन्न-जल से बड़ा हुआ, जीवन के मधुर सपने देखे... आज उसी की पार्थिव देह का इंतजार करते हुए गांव के हर बड़े बुजुर्ग की आंख नम है.... एक बिना छत के पक्के मकान के बाहर फिजां में छाई खामोशी में ग्रामीणों की भीड़ शून्य को निहारती दिखाई दी। जब कोई सन्नाटे को चीरती चीख निकलती तो हर किसी का दिल रोने लगता और सजल आंखें ईश्वर से यही सवाल करती कि ये क्या हो गया. सेना में नायक राजेन्द्रसिंह जब ड्यूटी पर जा रहा था तो यह भरोसा दिलाकर गया था कि वापिस आकर सबसे पहले मकान की छत को सही करवाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शहीद की शहादत से गमगीन मोहनगढ़ कस्बे में पूरे दिन बाजार बंद रहा। परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया। जिस पोते को गोद में खिलाया और उसी के दुनिया से असमय विदा होने के बारे में सुनकर 85 वर्षीय दादी ज्वारा कंवर बीमार हो गई।

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ के सपूत नायक राजेन्द्र सिंह शहीद हो गए थे। शहीद राजेन्द्र सिंह का जन्म 24 दिसम्बर 1992 को हुआ था। घर में बड़ा पुत्र होने के कारण माता पिता ने बड़े लाड-प्यार से पाला था। बारहवीं तक पढऩे के बाद 1 जनवरी 2013 को राजेन्द्रसिंह का आर्मी में चयन हुआ। उनकी माता का निधन 2006 में हो गया था, वहीं सेना में नौकरी मिलने के लगभग साढ़े सात माह बाद पिता का भी छाया सिर उठ गया। पूरे परिवार का लालन पालन का जिम्मा राजेन्द्र सिंह के कंधों पर आ गया। 8 दिसम्बर 2016 को राजेन्द्र सिंह का विवाह जालोड़ा तहसील फलोदी निवासी जमना कंवर के साथ हुआ। शनिवार को शहीद की शहादत के बारे में सुनकर ग्रामीणों के घरों में चूल्हे भी नहीं जले,रात्रि में भी ग्रामीण सो नहीं पाए।

मकान की छत रही अधूरी
शहीद राजेन्द्र सिंह लगभग दो माह पूर्व मोहनगढ़ आया था। वह नवम्बर माह में वापिस छुट्टी पर आने का कह कर गए थेए लेकिन वापिस लौटे तो तिरंगे में लिपटकर। शहीद के मकान के कुछ कमरों की छत नहीं है। घर में आंगन व दीवारों पर प्लास्टर करवाना भी बाकी थी। नवम्बर में छुट्टी पर आने पर मकान में बने कमरों की छत डलवाने तथा दीवारों के प्लास्टर, आंगन आदि करवाने की योजना बनाई थी, लेकिन ये ख्वाहिश भी अधूरी रह गई। पूरे परिवार को चलाने वाला केवल शहीद राजेन्द्रसिंह ही था। शहीद राजेन्द्र के परिवार में 85 वर्षीय दादी, पत्नी जमना कंवर, दो वर्षीय पुत्र भूपेन्द्र सिंह, दो छोटे भाई गोविंद सिंह व समुन्द्रसिंह शामिल है। शहीद के पिता सांवल सिंह 1987 में सेना में भर्ती हुए थे,जो हवलदार के पद से 2005 में सेवानिवृत हुए। शहीद की माता का 1 जून 2006 और पिता का 16 अगस्त 2013 को निधन हो गया। तब पूरे परिवार की जिम्मेदारी राजेन्द्र सिंह पर आ गई। पूरे परिवार का भरण पोषण राजेन्द्र सिंह ही कर रहा था।

पीछे रह गया रोता बिलखता परिवार
शहीद नायक राजेन्द्र सिंह की पत्नी का रो रोकर बुरा हाल है, वहीं पूरे परिवार को बिलखता देख शहीद का बेटा भी रोने लगा। बताया जा रहा है कि पिछली बार जब राजेन्द्रसिंह छुट्टी काटकर वापिस जा रहे थे तो बेटे ने रूकने की जिद की थी इस पर राजेन्द्रसिंह अपने बेटे से वादा किया था कि वे जल्द ही छुट्टी लेकर वापिस आयेंगे, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था कि आज इस बेटे के पिता तिरंगे में लिपटकर घर लौटे, हालांकि छोटा मासूम इस घटना को समझ नहीं पा रहा है लेकिन अपने पापा को चुप देख कर इस बच्चे का भी रोना छूट रहा था। इतना ही नहीं यह भी बताया जा रहा है कि शहीद राजेन्द्रसिंह की पत्नी पांच माह की गर्भवती भी है ऐसे में इस दुख के पहाड के बीच नन्ही सी जान को दुनिया में लाने व उसे पाल पोस कर बडा करने की जिम्मेदारी अब शहीद की वीरांगना के उपर आ गई है।

मंत्री ने दिया सहयोग का भरोसा
वहीं शहीद की अंतिम यात्रा में शामिल होने पहुंचे केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा है कि इस दुख की घडी में गौरव का क्षण भी शामिल है कि आज इस धरती का सपूत अपना नाम अमर कर गया है। उन्होंने परिवारजनों को ढांढस बंधाते हुए कहा कि सरकार की ओर से शहीद के परिवार को हर संभव सहयोग दिया जायेगा और शहीद के परिवार को कभी भी यह महसूस नहीं होने दिया जायेगा कि वे अकेला है।

कलक्टर ने सौंपा पांच लाख का चैक
शहीद राजेन्द्रसिंह के परिवार को सहयोग की कडी में आज जिला कलक्टर द्वारा शहीद के परिवार को पांच लाख रूपये का चैक करगिल सहायता कोश के माध्यम से सौंपा गया और आगे भी शहीद के परिवार को मिलने वाली सभी सुविधाओं के जल्द ही लाभ दिलाये जाने की बात कही। जिला कलक्टर नमित मेहता ने कहा कि देश के लिये गौरव का विषय है कि यहां की धरती ने इस तरह के लाल को पैदा किया है वहीं राजेन्द्र की शहादत जिले के युवाओं के लिये प्रेरणा का स्त्रोत बने ऐसी उन्होंने अपेक्षा की है।

कुछ दिन पहले ही शहीद ने बदला था अपना व्हाट्सएप स्टेटस
जैसलमेर के मोहनगढ कस्बे के शूरवीर नायक राजेन्द्रसिंह के मन के भीतर देश प्रेम का जज्बा किस तरह का था इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कुछ दिन पहले ही शहीद ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस को बदलते हुए उस पर लिखा था कि सैनिक का धर्म विजय या वीरगति यानि लगता है मानो राजेन्द्रसिंह को पहले ही अंदाजा हो गया था कि रणभूमि में एक रणबांकुरे का क्या धर्म होता है। जी हां राजस्थान की धरती जो इतिहास में वीरों की भूमि रही है वहां आज इस वीर ने सिद्ध कर दिया है कि यहां आज भी विजय और वीरगति का वरण करने वाले रणबांकुरे बसते हैं।
बाईट-1-भोजराजसिंह , सैनिक कल्याण अधिकारी
बाईट-2-कैलाष चौधरी, केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री
बाईट-3-नमित मेहता, जिला कलक्टर जैसलमेर
बाईट-4-शहीद का चचेरा भाई
बाईट-5-सालेह मोहम्मद, केबिनेट मंत्री,राजस्थान सरकार
बाईट-6-किरण कंग, पुलिस अधीक्षक जैसलमेरConclusion:
Last Updated :Oct 2, 2019, 4:54 PM IST
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