बिहार चुनाव : नीतीश के लिए दुखदायी है पासवान की मौत

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Published : Oct 9, 2020, 8:45 PM IST

नीतीश के लिए दुखदायी है पासवान की मौत

बिहार विधानसभा चुनाव के समय केंद्रीय मंत्री और दलित नेता राम विलास पासवान के निधन से राज्य की राजनीति में बदलाव आ सकता है. चुनाव पर इसका असर पड़ना तय है. खासकर एलजेपी पर. पार्टी को सहानुभूति प्राप्त होगी और इसका सीधा असर जेडीयू की जीत पर पड़ेगा. एक विश्लेषण बिहार ब्यूरो प्रमुख अमित भेलारी का.

पटना : केंद्रीय मंत्री और दलित समाज के धाकड़ नेता रामविलास पासवान की मौत का असर बिहार चुनाव पर पड़ना तय है. यह गेम चेंजर भी हो सकता है. इसने बिहार में दलितों का सहानुभूति वोट जुटाने के लिए लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी ) को एक बड़ा अवसर दे दिया है. बिहार में लगभग 16 फीसद दलित मतदाता हैं.

रामविलास की मौत को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए दुखदायी माना जा रहा है. नीतीश ने जाने-अनजाने उस बीमार नेता पर हमला करके बड़ी गलती कर दी, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. नीतीश को लोजपा से डरना चाहिए, क्योंकि इतिहास को देखें तो जब भी चुनाव से पहले किसी प्रतिष्ठित नेता का निधन हुआ है, सहानुभूति की लहर ने हमेशा उसकी पार्टी को लाभ पहुंचाया है.

रामविलास बिहार के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे, जिन्होंने सबको अलविदा कहने से पहले नीतीश को छोड़ दिया. 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, तो उनके बेटे राजीव गांधी ने प्रचंड बहुमत से चुनाव जीता था. सहानुभूति फैक्टर के डर से अब आगे से अन्य राजनीतिक दलों की रणनीति बदल जाएगी. क्योंकि बिहार के लोग मुद्दों या तर्क के बजाय भावनाओं को अधिक महत्व देते हैं. राम विलास पासवान एक साधारण नेता नहीं थे. समाज के कुछ खास वर्गों पर उनका नियंत्रण था और वे लोग आक्रामक तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे.

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यहां तक कि रामविलास अपनी बिगड़ती स्वास्थ्य की स्थिति को लेकर भी बहुत जागरूक थे और यही कारण था कि उन्होंने अपने बेटे चिराग पासवान को सब कुछ सौंप दिया था. रामविलास शायद जानते थे कि वह लंबे समय तक जीवित नहीं रहेंगे और इसलिए उन्होंने अपने बेटे के समर्थन में राजनीतिक कदम आगे बढ़ाया. ये कुछ ऐसे गुण हैं, जिन्होंने उन्हें दूसरों से अलग बनाया. इसी वजह से उन्हें भारतीय राजनीति में मौसम वैज्ञानिक के रूप में भी जाना जाता था.

उनकी मौत अब राजग के नेताओं को हमलावर के बजाए संयमित बनाएगी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि नीतीश तनाव में होंगे और पश्चाताप कर रहे होंगे कि उन्होंने पासवान की मौत से कुछ सप्ताह पहले क्या कहा था.

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एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि मुझे याद है कि जब पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से पासवान के स्वास्थ्य के बारे में पूछा था तो सीएम ने एक अजीब टिप्पणी की थी. उन्होंने दावा किया था कि उन्हें पासवान के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी नहीं है. नीतीश का बयान ऐसे समय आया था, जब नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे लोगों ने उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ की थी. दूसरी गलती नीतीश ने रामविलास को राज्यसभा भेजने की याद दिलाकर की. इस विशेष टिप्पणी को दलित नेता के अपमान के रूप में देखा जाता है, क्योंकि उन्हें उच्च सदन भेजे जाने का फैसला एनडीए का था. उन्हें राज्यसभा भेजने की घोषणा 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह की उपस्थिति में की गई थी.

लोजपा ने 143 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है और ये सभी उम्मीदवार जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ होंगे, लेकिन भाजपा के खिलाफ नहीं. इससे जाहिर है कि नीतीश परेशान हैं. यह भी देखा जा रहा है कि लोजपा समर्थक इस बार आक्रामक अंदाज में मतदान के लिए जाएंगे जो जदयू उम्मीदवारों के लिए भयावह अनुभव होगा.

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नीतीश के खिलाफ पहले से ही सत्ता विरोधी रुख है और जब रामविलास का फैक्टर जुड़ेगा तो यह मौजूदा सरकार की साख को और नुकसान पहुंचाएगा. सहानुभूति की लहर बिहार में पार्टी और उम्मीदवारों की हमेशा मदद करती है. नीतीश भी इसे अच्छी तरह से जानते हैं.

हाल ही में नीतीश ने वाल्मीकि नगर विधानसभा क्षेत्र से दिवंगत सांसद बैद्यनाथ महतो के पुत्र सुनील कुमार को टिकट देने की घोषणा की है. महतो की मौत के बाद सीट खाली हो गई थी. इसी तरह से नीतीश ने दिवंगत राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के पुत्र सत्यप्रकाश सिंह को जदयू में शामिल कराने का निर्णय लिया है. वह संभवतः वैशाली जिले की महनार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. हालांकि, रामविलास की मौत से अब दलित वोटों के विभाजन पर अंकुश लगाने के मामले में एलजेपी का पलड़ा भारी रहेगा. खासकर चुनाव के समय जब कई छोटे दल एक खास जाति और समाज के वोट को देखते हुए एक मोर्चा बना लेते हैं. जीतनराम मांझी समेत बिहार के अन्य दलित नेताओं का करिश्मा अब रामविलास के सामने नहीं टिकने वाला है.

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इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या के मामले में एक नारा बहुत प्रसिद्ध था- मां बेटे का ये बलिदान, याद करेगा हिंदुस्तान. ऐसा ही कुछ बिहार के चुनाव में भी हो सकता है क्योंकि चिराग लाभ पाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं और वर्तमान परिदृश्य में चिराग की आगे की यात्रा को देखते हुए इसकी बहुत आवश्यकता है. वह अकेले चुनाव लड़ रहे हैं और बीजेपी चिराग पर भारी पड़ गई है. बीजेपी ने गुस्से का इजहार करते हुए चेतावनी जारी की है कि चुनावी मकसद के लिए पीएम की तस्वीर का इस्तेमाल नहीं करें नहीं तो चुनाव आयोग से कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.

चिराग भावनाओं और सहानुभूति को कैसे संभालते हैं इसी पर लोजपा का प्रदर्शन ज्यादा निर्भर है. क्योंकि यह सहानुभूति न केवल लोजपा के गढ़ हाजीपुर बल्कि बिहार के बाकी हिस्सों में भी पैदा होगी. चिराग के लिए अपने संरक्षक पिता की अनुपस्थिति में अपनी क्षमता साबित करने के लिए यह एक लिटमस टेस्ट है.

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यह स्पष्ट है कि जदयू नेता इस तथ्य को जानते हुए कि यह मतदाताओं को लोजपा के पक्ष में और आक्रामक बनाएगा अब चिराग के खिलाफ व्यक्तिगत हमलों में शामिल नहीं होंगे. पासवान की मौत ने नीतीश कुमार का खेल पहले ही बिगाड़ दिया है जो बिहार में सीएम के रूप में चौथा कार्यकाल पाना चाहते हैं. इसी तरह से इसकी भी पूरी संभावना है कि चिराग को पिता की गैरमौजूदगी की भरपाई के लिए आने वाले दिनों में नरेंद्र मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया जाए. इससे यह संदेश भी जाएगा कि मोदी सरकार दलितों की परवाह करती है. हालांकि, पासवान की मौत का वास्तविक प्रभाव 10 नवंबर को दिखाई देगा जब बिहार में विधानसभा चुनाव 2020 के परिणाम घोषित किए जाएंगे.

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