सूरजपुर के बसोर समुदाय ने रोजी-रोटी के लिए बदली जाति, अब खतरे में अस्तित्व

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Published : Feb 28, 2022, 6:22 PM IST

Updated : Feb 28, 2022, 9:19 PM IST

Basor caste of Surajpur

Basor caste of Surajpur not getting employment: सूरजपुर के बसोर जाति के लोग अपने पूर्वजों की गलती की सजा भुगत रहे हैं. ना तो उन्हें रोजगार मिल रहा है और ना ही सरकार की किसी योजना का लाभ इन्हें नसीब हो रहा है.

सूरजपुर: जिले में बांस से सामान बनाने का काम कई दशकों से किया जा रहा है. बसोर समाज के लोग परंपरागत रूप से बांस की चीजें बनाने और इसे बेचने का काम करते हैं. बांस से बनी चीजों को मार्केट नहीं मिलने के कारण इन्हें आर्थिक दिक्कत तो हो ही रही है. इसके साथ ही इस समाज के पढ़े-लिखे लोगों को कहीं रोजगार भी नहीं मिल पा रहा है. इनके नाम के आगे लिखे 'बसोर' के कारण इन्हें ना ही कहीं रोजगार मिल रहा है और ना ही शासन की दूसरी योजनाओं का लाभ मिल रहा है.

सूरजपुर की बसोर जाति का नहीं बन रहा जाति प्रमाणपत्र

सुरजपुर जिले का बृजनगर, खुंटापारा, कल्याणपुर और सोनवाही गांव आज भी पूरे संभाग में बांस से बने सामान की आपूर्ति के लिए मशहूर हैं. बसौर जाति पीढ़ी दर पीढ़ी बांस के सामान और बर्तन बनाकर जीवन यापन कर रही है. बांस का काम करने वाले इस समुदाय की जाति तूरी थी. लेकिन बांस का काम करने की वजह से इनकी जाति का नाम बसोर पड़ गया. अब यही जाति इनके लिए मुसीबत साबित हो रही है. सरकारी रिकॉर्ड में बसोर नाम की कोई भी जाति दर्ज नहीं है. जिसकी वजह से इन लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है. साथ ही इस समुदाय के शिक्षित लोगों का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है. जिससे रोजगार और दूसरी सरकारी योजनाओं से भी वंचित है.

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सूरजपुर की बसोर जाति को नहीं मिल रहा रोजगार (Problem of Basor caste of Surajpur)

बांस का काम करने वाले गेंदा राम बताते हैं कि 'पूर्वज तूरी जाति लिखते थे. लेकिन 40 साल पहले व्यवसाय का लाभ लेने के लिए बसोर लिखवाया गया. जिससे सरकारी आंकड़े में तूरी और वर्तमान में बसोर लिखने के कारण जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है. जाति प्रमाण पत्र नहीं होने के कारण समाज के शिक्षित युवाओं को भी रोजगार नहीं मिल रहा है. फॉर्म भरने के दौरान जाति के कॉलम में वे अपनी जाति नहीं भर पाते हैं. जिससे रोजगार नहीं मिल रहा है'.

सूरजपुर में बांस महंगा

रामभरोसे बताते हैं कि 'पिछली चार पीढ़ियों से वे बांस का ही काम कर रहे हैं. लेकिन इस समय बांस नहीं मिल रहा है. अगर मिल भी जाए तो महंगे दाम में मिलता है. जबकि बांस की चीजों के दाम ठीक से नहीं मिल पाते हैं. समाज के पढ़े-लिखे लोगों को भी जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से नौकरी नहीं मिल पा रही है'.

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समाज के लोगों को पहले वन विभाग के डिपो से सस्ते में बांस मिल जाता था. अब गांव गांव घूम-घूमकर ऊंची कीमत पर बांस खरीदना पड़ता है. महंगे बांस ने आर्थिक सेहत को बिगाड़ दिया है. बांस से बने उत्पाद को पहले बाजार-बाजार घूम कर बेचने से कुछ कमाई हो जाती थी. लेकिन आधुनिक समय में बांस से बने सामानों का विकल्प दूसरे धातुओं ने ले लिया है. जिससे इनकी आर्थिक स्थिति और खराब होती जा रही है.

सूरजपुर में बैम्बू क्राफ्ट का प्रशिक्षण

ETV भारत ने सूरजपुर के बसोर समुदाय के लोगों की परेशानी जिला प्रशासन के सामने रखी. जिस पर सूरजपुर कलेक्टर गौरव कुमार सिंह ने बैम्बू क्राफ्ट का प्रशिक्षण दिए जाने की बात कही. साथ ही जाति प्रमाणपत्र में हो रही परेशानी के लिए राजस्व अधिकारियों से बात कर बसोर समाज के लोगों की परेशानी दूर करने का आश्वासन दिया है.

बांस से बनने वाली चीजें

बांस से आमतौर पर सूपा, मोरा, दौरी, झांपी, बेना और पेटी बनाया जाता है. बांस निर्मित सूपा गेंहू, धान को साफ करने के काम आता है. मोरा की मदद से धान को खेत से खलिहान तक लाया जाता है. दौरी का उपयोग खासतौर पर शादी विवाह में मिठाई या अन्य सामग्री रखने के लिए किया जाता है. झांपी में बर्तन और आभूषण रखकर ऊपर से बंद किया जा सकता है. बेनी गर्मी से राहत के लिए पंखे का काम करता है. बांस की पेटी में कपड़ा या अन्य सामान रखा जाता है.

Last Updated :Feb 28, 2022, 9:19 PM IST
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