economist opinion on general budget 2023: क्या किसानों के लिए बेहतर है यह बजट ? जानिए अर्थशास्त्री बजट को किस तरह से देखते हैं

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Published : Feb 1, 2023, 10:20 PM IST

economist opinion on general budget 2023

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का 75 वां और अपना 5 वां बजट पेश किया है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट 2023 में शिक्षा, रोजगार, आर्थिक स्थिरता, समावेशी विकास, हरित विकास, युवा शक्ति और वित्तीय शक्ति से संबंधित विभिन्न घोषणाएं की है. ऐसे में यह बजट देशवासियों के लिए कितना खास होगा. क्या इस बजट से देश के अलावा लोगों की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. इन तमाम विषयो को लेकर ईटीवी भारत ने छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डॉ तपेश गुप्ता से खास बातचीत की.

बजट को लेकर अर्थशास्त्री की राय

रायपुर: आम बजट 2023 को अमृत बजट माना जा रहा है. ऐसे में यह बजट देशवासियों के लिए कितना खास होगा. क्या इस बजट से देश के अलावा लोगों की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. इन तमाम विषयो को लेकर ईटीवी भारत ने छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डॉ तपेश गुप्ता से खास बातचीत की. आइये जानते हैं वे इस बजट को किस तरह से देखते हैं.


सवाल: आप इस बजट को किस तरह से देखते हैं?

जवाब: देखिए अमृत महोत्सव मनाए जाने के बाद और बजट का अमृत महोत्सव होने के कारण सरकार ने अपनी ओर से कोशिश की है कि अधिक से अधिक वर्गों को लाभ प्राप्त हो. वैसे भी आगामी एक-दो वर्ष निर्वाचन कार्य, चुनाव कार्य का है तो उन बातों को ध्यान में रखते हुए जन लुभावन बजट प्रस्तुत किया गया है. कृषि, स्वास्थ्य, तकनीकी क्षेत्र में विकास के लिए विशेष जोर दिया गया है, लेकिन जैसे कि लोगों को बहुत ज्यादा अपेक्षा थी कि आयकर में बहुत ज्यादा छूट प्राप्त होगी. ऐसा छूट प्राप्त नहीं हुआ.

आयकर में 5 लाख से सीमा बढ़ाकर 7 लाख किया गया है. जिससे मध्यमवर्ग तो नहीं कहूंगा. निम्न वर्ग के व्यक्ति जो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे, जो चपरासियों से इनकम टैक्स का पैसा लेकर सरकार घुमा करती थी. उसे बढ़ाकर 7 लाख कर दिया है. अगर राज्य और केंद्र सरकार महंगाई भत्ता को समय पर देती है, तो वह सीमा भी खत्म हो जाएगी. यानी कि जो राहत दी गई है, वो बहुत शक्तिशाली राहत नहीं है.

कुछ चीजों में कर में छूट दी गई है. बहुत सी चीजों में प्रोत्साहन योजना दी गई है, लेकिन मेरा मानना है यदि अगर बजट में तीन चीजों पर फोकस किया जाता. जैसे प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में, देश की पूंजी बनाने में और निर्माण कार्यों को प्रोत्साहन देने में तो यह ज्यादा सार्थक होता. आम आदमी के बचत में जो कर ले लेती है सरकार, ब्याज के पैसे में भी कर लेती है. इसे मैं पाप मानता हूं. क्योंकि व्यक्ति बचत करता है अपनी पूंजी को निवेश के लिए, भावी योजनाओं के लिए और उसकी राशि बढ़ ही नहीं पाती है. बावजूद आप उनसे कर ले लेते हैं.

आदमी जो बैंक में पैसा अपनी बेटी की शादी के लिए इकट्ठा कर रहा है, मकान बनाने के लिए इकट्ठा कर रहा है, आप वही पुराने ढर्रे में चल रहे हो कि भारतीय आदमी कर्ज में जन्म लिया और कर्ज में ही मर जाए. वह अपने पुश्तैनी कर्ज को छोड़कर बेटों के लिए कर्ज में जाएगा क्या ? यह जो नीति अपनाई जा रही है यह ठीक नहीं है. कुछ वृद्ध लोगों को खुश करने के लिए जरूर उनकी बचत राशि में वृद्धि की गई है, लेकिन जब आदमी के पास बचत नहीं है, तो उसकी सीमाएं बढ़ाने का फायदा क्या है. उससे भी बाद में आप इनकम टैक्स ले लेंगे.

आपने पेंशन ग्रेजुएटी की राशि 3 लाख रुपये किये हैं, जो लिव इन क्रेसमेन्ट का. वह राशि बढ़ाया है, उसका फायदा उच्च वर्ग को है. वास्तव में मध्यमवर्ग आज भी पीस रहा है. यह मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किस प्रलोभन के अंतर्गत यह योजना बना कर दी गई है. तकनीकी विकास होना चाहिए. क्या किसान टेक्नोलॉजी के लिए काफी ज्यादा इनपॉवर्ड है, शक्तिशाली है. बजट पढ़ते वक्त सबसे ज्यादा मुझे आपत्तिजनक चीज लगी एमएसएमई ऐसे भाषा का प्रयोग क्यों कर रहे आप? उपनाम का प्रयोग क्यों कर रहे ? शार्ट टाइटल यूज क्यों कर रहे हैं? आप पूरा नाम क्यों नहीं बोलते ?

अगर आपके पास योजना है, नीति है. आप जनता के सामने कह रहे हैं. कोई ऑफिस के आदमी के पास नहीं कह रहे हैं. आम जनता के लिए कह रहे हैं. तो आप बातों को स्पष्ट शब्दों में रखिए. आप पढ़े लिखे हैं हम मान गए, पर आम जनता पढ़ी लिखी है क्या? एमएस का मतलब क्या समझेगी. एमएस एमआई कर रहे हैं आप.. और ऐसी कई योजनाओं का शार्ट में नाम बता रहे हैं. जिसको मैं खुद समय पर फॉलो नहीं कर पाया. मैं हर साल बजट सुनता हूं मेरे को वो चीजें क्लियर नहीं हो रही है तो आम जनता को क्या क्लियर होगी.


सवाल: पिछले 4 साल के बजट और इस बार के बजट में क्या अंतर है, इसे आपकी तरह से देखते हैं?
जवाब: सबसे बड़ी बात तो यह है कि 4 वर्षों से जो बजट आया. वह राष्ट्र निर्माण के लिए कड़े निर्णय के लिए और फिर बीच में 2 साल का समय आपका कोरोना महामारी का है. यहां पर कोई शक नहीं है. इन्होंने बहुत अच्छा कार्य करके, बहुत अच्छा बजट देकर वैक्सीनेशन करके, चिकित्सा करके लोगों की जान बचाई है. देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया है, लेकिन इस बार वास्तव में प्रत्यक्ष रूप से जो राहत मिलना चाहिए था बजट पर. वह आम जनता को राहत नहीं मिली है. आप थोड़े से चीजों में रेट कम किए हैं. क्या उसका लाभ जनता तक पहुंच जाएगा ?

अधिकतम खुदरा मूल्य पर अभी तक निर्णय नहीं हुआ. एक क्रोसिन जैसे कि हम पढ़ते हैं रिसर्च पेपर में 10 से 15 पैसे का बनता है. वह आज इतने महंगे में 10 गुना रेट पर क्यों बिक रहा है. वैसे ही आप कोई भी खाद्य तेल ले लीजिए. दोगुना से तिगुना रेट का रहता है. मॉल वाले एक के साथ एक फ्री का ऑफर कैसे चलाते हैं? मतलब साफ है 50% मूल्य कम है. और यदि यह अपनी ओर से ऑफर देकर चलाते हैं तो यह समाज सेवी संस्था नहीं है. यह लाभ में कैसे चलते हैं. इस चीज को सरकार सोच क्यों नहीं पा रही है? अगर इनके पास आर्थिक चिंतक बैठे हैं तो उपभोक्ता के नागरिकों के हो रहे शोषण पर भी पाबंदी लगना चाहिए.


सवाल: रोजगार, शिक्षा और युवाओं को लेकर इस बजट में क्या खास है?
जवाब: रोजगार के लिए उन्होंने किया. स्कूलों के विस्तार के बारे में भी लगभग 40,000 रोजगार की बात कही है. कृषि में भी स्टार्टअप देने की बात कही है. नए नए उद्योगों को प्रोत्साहन के लिए नई टेक्नोलॉजी के लिए कहां है तो इससे रोजगार तो बढ़ेगा. रोजगार के अवसर आएंगे. उद्योग बढ़ेगा, कृषि बढ़ेगा तो रोजगार को अवसर मिलेगा, लेकिन हमारे यहां जो प्रशिक्षण की नीति दी आपने. ये पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए हमारे पास ऐसे योग्य हाथ है क्या? जिनके माध्यम से हम उन्हें आगे बढ़ा सके.

युवाओं को जिस तरह से शिक्षा दीक्षा मिलनी चाहिए थी. वह नहीं मिल पाई है, वह बेरोजगार है. अब उनको रोजगार देने के लिए आप चाहते हैं कि हर कोई अपने व्यवसाय को शुरू करें, तो यह संभव नहीं है. आर्थिक क्षमता उतनी नहीं है. मैं फिर वही कहूंगा, मेरे पिताजी यदि मुझे पैसा देंगे, तो मैं व्यापार करूंगा. मेरे पिताजी मास्टर हैं, मेरे पिताजी छोटे दुकानदार हैं, मेरे पिताजी चपरासी हैं. वह कहां से पैसा देंगे मुझे? आपने बचत करने नहीं दिया. क्योंकि आपने बचत के पैसे में भी कर मांग रहे. उसमें उसका लाभ हो नहीं रहा है, तो आगे बचत कहां किया.

उसने तो कर्ज लेकर घर बनाया है. बचत करके नहीं बनाया है. तो बाप कर्ज में घर किया है. बेटे को कर्ज लेकर व्यापार कराएगा, तो मरेगा तो कर ही तो छोड़कर जाएगा. कैसे तरीके से आपने पीढ़ियों को बर्बाद करने का ठेका ले लिया है. आप अपने लिए एक बार चुनाव जीतने के बाद आप बड़े से बड़े बंगले में रहते हैं. बड़े से बड़े गाड़ियों में घूमते हैं और यहां लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं. यह चीजें बिल्कुल नहीं होनी चाहिए. अगर आप ईमानदार कोशिश कर रहे हैं. राष्ट्र की सौगंध खाकर राष्ट्र के नाम पर अमृत महोत्सव में कर रहे तो यह काम जनहित के लिए कम से कम ब्याज में छूट देना चाहिए था.

देश तभी आगे बढ़ता है, जब उसके पास पूंजी निवेश हो. यहां आम नागरिक के पास पूंजी निवेश ही नहीं है. हर आदमी के ऊपर कर्ज है. आप अपने पड़ोस के आसपास के परिवार के 10 लोगों को देख लीजिए, पांच के पास कर्ज होगा. चाहे वह कृषि का हो, चाहे उद्योग का हो, चाहे तीज त्यौहार के नाम पर हो, बेटे के लिए हो. कहीं पर भी हो. 10 में से हर पांच व्यक्ति कर्ज में डूबा हुआ है. और आज बचत को प्रोत्साहन नहीं देना चाहते यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है.


सवाल: 9 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं. क्या चुनावी बजट है. यदि चुनावी बजट है तो किस वर्ग के लिए बेहतर मानते हैं?
जवाब: यह निम्न वर्ग के लिए और उच्च वर्ग के लिए बहुत फायदेमंद है. विशेष तौर पर कृषकों के लिए फायदेमंद है. और उन्हीं को लुभा करके उनके वोट बैंक और उनकी संख्याओं को ध्यान में रखकर दिया गया है. मध्यमवर्ग तब भी पीड़ित था अब भी पीड़ित है और कोई भी मध्यमवर्ग व्यक्ति उच्च वर्ग को नहीं छू पायेगा. निम्न वर्ग का व्यक्ति मध्यम वर्ग के करीब आने के लिए डरेगा. क्योंकि वह निम्न वर्ग में रहते हुए इतने लाभ ले चुका है कि जितना वह मध्यम वर्ग में आने के बाद प्राप्त ले पाएगा. यानी मनुष्य की जो विकास की मनुवृति है. उसको कमजोर किया गया है.

अगर आप निम्न वर्ग को बहुत लाभ देते रहेंगे तो उसके ऊपर उठना चाहेगा नहीं. वह उसी में जीना चाहेगा. आप बचत करके आगे बढ़ जाए करके सोचेंगे तो उसको मालूम है कि बचत किया तो उसमें इनकम टैक्स कट जाएगा और इनकम टैक्स एक बार कटा तो उस रेस से बाहर हो जाएगा. तो बचत क्यों करेगा ? यह जो चीजें हैं. हम जो पूंजी देश के अंदर पैदा कर सकते थे. वह हम देश के अंदर पैदा ना करके आज हम बाहर से हाथ फैला कर ले रहे हैं. यह ठीक नहीं है.

बैंकिंग चलाना है अगर सरकार को, तो चला ले. प्रशासन की कोई आवश्यकता नहीं है. मानव जीवन की कोई आवश्यकता नहीं है. ब्याज दर में छूट की सीमाएं बढ़ाई जानी चाहिए थी. इस पर सरकार को बहुत अच्छे से विचार करना चाहिए. जब तक देश में पूंजी नहीं तब तक पूंजी निवेश नहीं, जब तक पूंजी निवेश नहीं तब तक अर्थव्यवस्था मजबूत प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ सकती.

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