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रायपुर की सड़कों पर घूम रहा अनजान खतरा, जानिए क्यों है जानलेवा ?

Danger Of Street Dogs छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रहवासियों के सामने एक नया खतरा आ चुका है.इस खतरे से हर कोई वाकिफ है लेकिन जब तक उसका इससे सामना नहीं होता तब तक इसके असर का अनुमान लगाना मुश्किल है.आईए आपको बताते हैं आखिर कौन सा है ये अनजान खतरा. Street Dogs In Raipur

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 23, 2023, 8:45 PM IST

street dogs in Raipur
रायपुर की सड़कों पर घूम रहा अनजान खतरा
रायपुर की सड़कों पर घूम रहा अनजान खतरा

रायपुर: यदि आप छत्तीसगढ़ की राजधानी में रहते हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद जरुरी है.क्योंकि आप और आपका परिवार कभी ना कभी घर से बाहर किसी काम से जरुर निकलता होगा.कभी मार्केट का काम तो कभी सुबह और शाम को फिट रहने के लिए आप टहलते भी होंगे.लेकिन इस दिनचर्या में कोई ऐसा है जो अनजाना खतरा बनकर आपके बीच में ही रहता है.लेकिन घटना घटने से पहले किसी का ध्यान इन पर नहीं जाता.ये अनजाना खतरा है स्ट्रीट डॉग्स. जी हां ठीक पढ़ा आपने स्ट्रीट डॉग्स. रायपुर शहर की बात करें तो रोजाना कहीं ना कहीं डॉग बाइट की शिकायत सामने आती है.

किस समय ज्यादा होती हैं घटनाएं ? : ईटीवी भारत की टीम ने जब इस बारे में रिसर्च की तो पता चला कि डॉग बाइट की शिकायतें कॉलोनियों के अंदर ज्यादा होती है.ज्यादातर वो कॉलोनियां जो खुली हैं.वहां अक्सर पहली बार आने जाने वाले या फिर छोटे बच्चों को स्ट्रीट डॉग्स अपना शिकार बनाते हैं.कई बार टू व्हीलर सवारों पर भी स्ट्रीट डॉग्स झपट्टा मारते हैं.जिससे एक्सीडेंट होने का खतरा बढ़ जाता है.



ईटीवी भारत ने स्थानीय लोगों से जानी राय : ईटीवी भारत की टीम ने कुछ स्थानीय लोगों से डॉग बाइट के बारे में बात की. लोगों की माने तो बच्चे घर से बाहर खेलने जाते हैं. तब डॉग्स का डर बना रहता है. कई बार बड़े भी रात 9:00 बजे के बाद घर से बाहर निकलते हैं तो स्ट्रीट डॉग्स उन्हें देखते ही भौंकने लगते हैं.फिर दौड़ाते हैं. वहीं डॉग्स लवर्स के मुताबिक आवारा डॉग्स एग्रेसिव होने की वजह से किसी पर हमला करें ये जरूरी नहीं है. शहर में दिन-ब-दिन स्ट्रीट डॉग्स की तादाद बढ़ती जा रही है.जिसके कारण यदि कोई डॉग्स से उलझता है तो वो इकट्ठा होकर हमला कर देते हैं.


क्या कर रहा है प्रशासन ? : स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती जनसंख्या और खाने की कमी के कारण ये आक्रमक हो जाते हैं. भूख से बेचैन होने के बाद डॉग्स के अंदर चिड़चिड़ाहट आ जाती है.जिसकी वजह से जो भी इनसे उलझता है उसको ये काटने को दौड़ते हैं. डॉग बाइट की घटनाओं की रोकथाम के लिए नगर निगम प्रशासन हर बार नसबंदी प्रोग्राम चलाता है.लेकिन निगम के अफसरों की माने तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि नसबंदी से इससे बचा जा सकता है.

''आवारा कुत्तों की नसबंदी हो जाने के बाद इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कुत्ता दोबारा हमला नहीं करेगा. निगम हर महीने 450 कुत्तों का नसबंदी का काम करता है. नगर निगम आवारा कुत्तों को रखने के लिए सोनडोंगरी इलाके में शेल्टर होम का निर्माण करा रहा है. जिसमें लगभग 300 आवारा कुत्तों को रखा जा सकेगा." - विनोद पाण्डेय, प्रभारी अपर आयुक्त,ननि रायपुर


स्ट्रीट डॉग्स से बचना मुश्किल : आवारा कुत्तों के बारे में वरिष्ठ पशु चिकित्सक संजय जैन ने बताया कि कुत्तों से बचना काफी मुश्किल होता है. स्ट्रीट डॉग्स को भरपेट भोजन नहीं मिलना, क्रीमी की दवा नहीं मिलना और कुत्तों के शरीर में खुजली का होने की वजह से वो चिड़चिड़े होते हैं. इस कारण से भी डॉग्स लोगों पर हमला करते हैं. ऐसे डॉग्स के लिए प्रशासन के रेबीज और क्रीमी की दवा उपलब्ध कराए तो डॉग बाइट में कमी लाई जा सकती है.

रायपुर में कैसी है तैयारी : निगम के आंकड़ों की माने तो हर दिन करीब 17 डॉग्स को पकड़ा जाता है.हर महीने 425 और हर साल 5300 डॉग्स की नसबंदी की जाती है. डॉग कैचर की मदद से ये काम किया जाता है.कोई भी नागरिक 1100 नंबर पर कॉल करके डॉग्स से संबंधित शिकायत दर्ज करा सकता है. श्वान नसबंदी पशु क्रूरता अधिनियम एवं एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम-2001 के प्रावधानों अंतर्गत ही श्वानों की धरपकड़ हो रही है. बैरन बाजार के पशु चिकित्सालय में डॉग्स की नसबंदी के बाद एन्टी रेबीज वैक्सीनेशन भी किया जा रहा है.

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रायपुर: यदि आप छत्तीसगढ़ की राजधानी में रहते हैं तो ये खबर आपके लिए बेहद जरुरी है.क्योंकि आप और आपका परिवार कभी ना कभी घर से बाहर किसी काम से जरुर निकलता होगा.कभी मार्केट का काम तो कभी सुबह और शाम को फिट रहने के लिए आप टहलते भी होंगे.लेकिन इस दिनचर्या में कोई ऐसा है जो अनजाना खतरा बनकर आपके बीच में ही रहता है.लेकिन घटना घटने से पहले किसी का ध्यान इन पर नहीं जाता.ये अनजाना खतरा है स्ट्रीट डॉग्स. जी हां ठीक पढ़ा आपने स्ट्रीट डॉग्स. रायपुर शहर की बात करें तो रोजाना कहीं ना कहीं डॉग बाइट की शिकायत सामने आती है.

किस समय ज्यादा होती हैं घटनाएं ? : ईटीवी भारत की टीम ने जब इस बारे में रिसर्च की तो पता चला कि डॉग बाइट की शिकायतें कॉलोनियों के अंदर ज्यादा होती है.ज्यादातर वो कॉलोनियां जो खुली हैं.वहां अक्सर पहली बार आने जाने वाले या फिर छोटे बच्चों को स्ट्रीट डॉग्स अपना शिकार बनाते हैं.कई बार टू व्हीलर सवारों पर भी स्ट्रीट डॉग्स झपट्टा मारते हैं.जिससे एक्सीडेंट होने का खतरा बढ़ जाता है.



ईटीवी भारत ने स्थानीय लोगों से जानी राय : ईटीवी भारत की टीम ने कुछ स्थानीय लोगों से डॉग बाइट के बारे में बात की. लोगों की माने तो बच्चे घर से बाहर खेलने जाते हैं. तब डॉग्स का डर बना रहता है. कई बार बड़े भी रात 9:00 बजे के बाद घर से बाहर निकलते हैं तो स्ट्रीट डॉग्स उन्हें देखते ही भौंकने लगते हैं.फिर दौड़ाते हैं. वहीं डॉग्स लवर्स के मुताबिक आवारा डॉग्स एग्रेसिव होने की वजह से किसी पर हमला करें ये जरूरी नहीं है. शहर में दिन-ब-दिन स्ट्रीट डॉग्स की तादाद बढ़ती जा रही है.जिसके कारण यदि कोई डॉग्स से उलझता है तो वो इकट्ठा होकर हमला कर देते हैं.


क्या कर रहा है प्रशासन ? : स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती जनसंख्या और खाने की कमी के कारण ये आक्रमक हो जाते हैं. भूख से बेचैन होने के बाद डॉग्स के अंदर चिड़चिड़ाहट आ जाती है.जिसकी वजह से जो भी इनसे उलझता है उसको ये काटने को दौड़ते हैं. डॉग बाइट की घटनाओं की रोकथाम के लिए नगर निगम प्रशासन हर बार नसबंदी प्रोग्राम चलाता है.लेकिन निगम के अफसरों की माने तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि नसबंदी से इससे बचा जा सकता है.

''आवारा कुत्तों की नसबंदी हो जाने के बाद इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कुत्ता दोबारा हमला नहीं करेगा. निगम हर महीने 450 कुत्तों का नसबंदी का काम करता है. नगर निगम आवारा कुत्तों को रखने के लिए सोनडोंगरी इलाके में शेल्टर होम का निर्माण करा रहा है. जिसमें लगभग 300 आवारा कुत्तों को रखा जा सकेगा." - विनोद पाण्डेय, प्रभारी अपर आयुक्त,ननि रायपुर


स्ट्रीट डॉग्स से बचना मुश्किल : आवारा कुत्तों के बारे में वरिष्ठ पशु चिकित्सक संजय जैन ने बताया कि कुत्तों से बचना काफी मुश्किल होता है. स्ट्रीट डॉग्स को भरपेट भोजन नहीं मिलना, क्रीमी की दवा नहीं मिलना और कुत्तों के शरीर में खुजली का होने की वजह से वो चिड़चिड़े होते हैं. इस कारण से भी डॉग्स लोगों पर हमला करते हैं. ऐसे डॉग्स के लिए प्रशासन के रेबीज और क्रीमी की दवा उपलब्ध कराए तो डॉग बाइट में कमी लाई जा सकती है.

रायपुर में कैसी है तैयारी : निगम के आंकड़ों की माने तो हर दिन करीब 17 डॉग्स को पकड़ा जाता है.हर महीने 425 और हर साल 5300 डॉग्स की नसबंदी की जाती है. डॉग कैचर की मदद से ये काम किया जाता है.कोई भी नागरिक 1100 नंबर पर कॉल करके डॉग्स से संबंधित शिकायत दर्ज करा सकता है. श्वान नसबंदी पशु क्रूरता अधिनियम एवं एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम-2001 के प्रावधानों अंतर्गत ही श्वानों की धरपकड़ हो रही है. बैरन बाजार के पशु चिकित्सालय में डॉग्स की नसबंदी के बाद एन्टी रेबीज वैक्सीनेशन भी किया जा रहा है.

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