छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कितना प्रभावी है जातिगत समीकरण !

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Published : May 18, 2022, 10:46 PM IST

Updated : May 19, 2022, 11:00 PM IST

caste equation in chhattisgarh assembly election

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में हमेशा से जातीय समीकरण का बोलबाला रहा है. छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से ओबीसी और आदिवासी वोटों के आधार पर चुनाव में जीत हार का पैमाना तय होता है. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में स्थिति कैसी होगी. इसे समझने के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट

रायपुर : नवंबर 2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव संभावित है. इस चुनाव की तैयारी में अभी से प्रदेश की राजनीतिक पार्टियां जुट गई हैं. उत्तर भारत के कई राज्यों की तरह ही छत्तीसगढ़ के भी चुनावों में, ज्यादातर सीटों पर उम्मीदवारों का चयन, जातीय समीकरण के आधार पर ही होता है. सच यह भी है कि प्रदेश में कुछ ऐसी सीटें भी हैं. जहां जातिगत समीकरण काम न आकर चेहरा काम आता है. इसी वजह से राजनीतिक दल, इन सीटों से क्षेत्र के प्रभावी चेहरों को चुनावी मैदान में उतारती हैं.


छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवम्बर 2000 को हुआ. राज्य बनने के बाद से, छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा के चुनाव परिणाम के आंकड़ों को देखें, तो प्रदेश में जाति विशेष का झुकाव, किसी एक पार्टी के लिए स्थिर नजर नहीं आता. छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है, करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की और करीब 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है. अन्य पिछड़ा वर्ग में करीब 95 से अधिक जातियां शामिल हैं.

छत्तीसगढ़ का जातीय समीकरण
छत्तीसगढ़ का जातीय समीकरण



छत्तीसगढ़ की राजनीति में जातीय समीकरण : छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से 39 सीटें आरक्षित है. इन सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आरक्षित सीटों के बाद बची 51 सीटें सामान्य हैं. लेकिन इन सीटों में से भी करीब एक दर्जन विधानसभा की सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है. प्रदेश के मैदानी इलाकों के ज्यादातर विधानसभा की सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी भारी संख्या है. छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 47 प्रतिशत है. मैदानी इलाकों से करीब एक चौथाई विधायक इसी वर्ग से विधानसभा में चुनकर आते हैं.

छत्तीसगढ़ में हावी रहता है जातीय समीकरण
छत्तीसगढ़ में हावी रहता है जातीय समीकरण

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जातिगत समीकरणों का प्रभाव : छत्तीसगढ़ में राज्य बनने के बाद हुए 4 विधानसभा चुनाव में से पहले तीन चुनाव में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति वर्ग की सीटों में बीजेपी को ज्यादा जीत मिली. 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटों में से करीब 75 प्रतिशत सीटें बीजेपी ने ही जीती. 2008 के विधानसभा चुनाव में भी 67 प्रतिशत और 2013 के चुनाव में 36 प्रतिशत सीटें बीजेपी ने ही हासिल की थी. इन तीनों चुनाव में लगभग 60% अनुसूचित जनजाति की सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की. 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति सीटों से कांग्रेस लगभग पूरी तरह साफ हो गई और उसे दस में से महज एक सीट ही मिल पाई. 9 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया. प्रदेश की अनारक्षित 51 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने बीजेपी से ज्यादा सीटें हासिल की. 2008 में हुए विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद अनारक्षित सीटों पर ओबीसी वर्ग का दबदबा बढ़ गया और इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला. 2003 में अन्य पिछड़ा वर्ग से महज 19 विधायक चुने गए थे 2008 में यह संख्या बढ़कर 24 हो गई.इनमें से 13 विधायक बीजेपी से चुनकर विधानसभा पहुंचे. 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं में सेंधमारी की और विधायकों की संख्या बराबर कर ली.



कई सीटों पर चेहरे ही होते हैं प्रभावी : प्रदेश में करीब 47% ओबीसी वर्ग के लोग हैं. इस वर्ग में 95 से अधिक जातियां हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या 12 प्रतिशत साहू जाति की है, जिन्हें क्षेत्रवार बीजेपी और कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है. राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार राम अवतार तिवारी के मुताबिक "रायपुर संभाग में साहू वोटर का ज्यादा झुकाव बीजेपी की ओर है तो वहीं बिलासपुर संभाग के कुछ हिस्सों में इन्हें कांग्रेस समर्थक माना जाता है. प्रदेश की दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां, इस वर्ग को राजनीति में भरपूर स्थान देती हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग में 9% यादव जाति की और 5% कुर्मी, निषाद और मरार जाति की संख्या है. प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियां, जातिगत समीकरण को देखते हुए इन जातियों को भी अपनी पार्टी के संगठन या सत्ता में स्थान देती हैं". राजनीतिक प्रेक्षक राम अवतार तिवारी का मानना है कि प्रदेश की कई सीटों पर जातिगत समीकरण काम ना कर, चेहरा काम आता है. इन सीटों पर प्रभावी चेहरों को ही जनता पसंद करती है.

चेहरों की अहमियत
चेहरों की अहमियत



सारे समीकरण हुए फेल : 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 68 सीटों पर भारी जीत हासिल की और प्रदेश की सत्ता पर कब्जा किया. 2003 के बाद से लगातार सत्ता में काबिज रही भारतीय जनता पार्टी 15 सीटों पर ही सिमटकर रह गई. चौकाने वाले इस चुनावी नतीजों ने विश्लेषकों के सभी गुणा भाग पर पानी फेर दिया . 2018 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और जनता कांग्रेस जोगी ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. जिसमें बहुजन समाज पार्टी को 2 सीटें और जनता कांग्रेस जोगी को 5 सीटें मिली थी. दंतेवाड़ा, चित्रकूट और मरवाही में हुए उपचुनाव के बाद खैरागढ़ में हुए चुनाव में भी कांग्रेस ने ही जीत हासिल की और पार्टी के विधायकों की संख्या 71 पहुंच गई. उपचुनावों के नतीजों के बाद वर्तमान छत्तीजगढ़ की विधानसभा में बीजेपी की सीट 14 , जनता कांग्रेस की 3 और बहुजन समाज पार्टी की 2 सीटें ही रह गईं.

2018 में सभी समीकरण हुए फेल
2018 में सभी समीकरण हुए फेल

छत्तीसगढ़ में बीजेपी का प्रयोग हुआ था सफल : 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली भारी हार के कुछ ही महीने के बाद, भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में नया प्रयोग किया. बीजेपी ने प्रदेश में, पुराने चेहरों की जगह नए और युवा चेहरों को अपना उम्मीदवार बनाया. बीजेपी का यह प्रयोग सफल भी रहा. प्रदेश की 11 लोकसभा की सीटों में से 9 सीटें जीतने में बीजेपी कामयाब रही . 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर राजनीति के जानकार राम अवतार तिवारी कहते हैं कि "भले ही राजनीतिक पार्टियां, चुनाव की रणनीति जातिगत समीकरण के आधार पर बनाती हों, लेकिन छत्तीसगढ़ में यह समीकरण उत्तरप्रदेश औऱ बिहार की तरह प्रभावी नहीं रहता".

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आदिवासी ही नहीं, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग का भी है अहम रोल : छत्तीसगढ़ की पहचान आदिवासी बहुल प्रदेश के रूप में है. मगर प्रदेश की जातीय संरचना में, कई अलग-अलग वर्गों का भी अच्छा खासा प्रभाव है. छत्तीसगढ़ में करीब 12 प्रतिशत की आबादी अनुसूचित जाति की है, तो वही एक बड़ी आबादी करीब 47 फ़ीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग की है. ये तीनों ही वर्ग, प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ की कोई भी राजनीतिक पार्टियां, इन तीनों वर्गों की अनदेखी नहीं कर सकतीं. वर्तमान में, प्रदेश की दो प्रमुख राजनीतिक दल, कांग्रेस और बीजेपी के संगठन की कमान आदिवासी वर्ग के नेताओं के पास है, तो वहीं सरकार की कमान अन्य पिछड़ा वर्ग के भूपेश बघेल के पास है. बीजेपी ने इसी ओबीसी वर्ग के नेता धरमलाल कौशिक को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बनाया है. प्रदेश में प्रभावी अनुसूचित जाति वर्ग के नेताओं को भी प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने, कई महत्वपूर्ण और जिम्मेदार स्थानों पर जगह दी है.

Last Updated :May 19, 2022, 11:00 PM IST
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