story of lala lajpatrai : अंग्रेजों से लोहा लेने वाला नायक

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Published : Jan 16, 2023, 12:48 PM IST

Birth anniversary of Lala Lajpat Rai

भारत की आजादी की लड़ाई में कई वीर और योद्धाओं ने अपना जीवन बलिदान दिया. ऐसे ही एक वीर थे लाला लाजपत राय.आजादी की लड़ाई में लालाजी के योगदान को कौन भूला सकता है. अपने विचारों को लेकर अक्सर पार्टी में मतभेद का सामना करने वाले लालाजी का जन्म 28 जनवरी को हुआ था.लालाजी वो नेता थे जिन्होंने कई मौकों पर सत्य विचारों की बुझ रही चिंगारी को बड़ी आग में तब्दील किया.history of 28 january

रायपुर/ हैदराबाद : लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता लाला राधाकृष्ण एक अध्यापक रहे. इसका प्रभाव लाजपत राय पर भी पड़ा. शुरूआती दिनों से ही वे एक मेधावी छात्र रहे और अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वकालत की ओर रुख कर लिया. वे एक बेहतरीन वकील बने .कुछ समय तक वकालत भी की, लेकिन जल्दी ही उनका मन इस काम से हट गया. अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था के प्रति उनके मन में रोष पैदा हो गया. उन्होंने उस व्यवस्था को छोड़कर बैंकिंग सेक्टर का रूख किया.

बैंकर से नेता तक का सफर : लालाजी ने अपनी आजीविका चलाने के लिए बैंकिंग में काम करना शुरु किया. उस समय बैंकों को लेकर भारत में कुछ खास क्रेज नहीं था.इसलिए उन्होंने इसे चुनौती माना.लाला लाजपत राय ने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की. दूसरी तरफ वे लगातार कांग्रेस के माध्यम से अंग्रेजों की खिलाफत करते रहे. अपनी निर्भिकता और गरम स्वभाव के कारण इन्हें पंजाब केसरी के उपाधि से नवाजा गया. बाल गंगाधर तिलक के बाद वे उन शुरूआती नेताओं में से थे, जिन्होंने पूर्ण स्वराज की मांग की. पंजाब में वे सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उभरे.

आर्य समाज की अग्नि को बनाया ज्वालामुखी :लाला जी का झुकाव भारत में तेजी से फैल रहे आर्य समाज आंदोलन की तरफ भी था. इसका परिणाम हुआ कि उन्होंने जल्दी ही महर्षि दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर इस आंदोलन का आगे बढ़ाने का काम ​हाथ में ले लिया. आर्य समाज भारतीय हिंदू समाज में फैली कूरीतियों और धार्मिक अंधविश्वासों पर प्रहार करता था. वेदों की ओर लौटने का आह्वान करता था. लाला जी ने उस वक्त लोकप्रिय जनमानस के विरूद्ध खड़े होने का साहस किया. ये उस दौर की बात है जब आर्य समाजियों को धर्मविरोधी समझा जाता ​था, लेकिन लाला जी ने इसकी कतई परवाह नहीं की. जल्दी ही उनके प्रयासों से आर्य समाज पंजाब में लोकप्रिय हो गया.

कांग्रेस में लाला लाजपत राय : 1888 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ .यह पहला अवसर था जब लाला लाजपत राय को इस संगठन से जुड़ने का अवसर मिला. अपने शुरूआती दिनों में ही उन्होंने एक उत्साही कार्यकर्ता के तौर पर कांग्रेस में पहचान बनानी शुरू कर दी. वे कांग्रेस के पंजाब प्रांत के सर्वमान्य प्रतिनिधि मान लिए गए. 1906 में उनको कांग्रेस ने गोपालकृष्ण के साथ गए शिष्टमंडल का सदस्य बनाया. संगठन में उनके बढ़ते कद का यह परिचायक बनी. कांग्रेस में उनके विचारों के कारण उठापटक प्रारंभ हुई. वे बाल गंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल के अलावा तीसरे नेता थे, जो कांग्रेस को अंग्रेजों की पिछलग्गू संस्था की भूमिका से ऊपर उठाना चाहते थे.

लाला लाजपत राय और कांग्रेस से मतभेद : 1907 के दौरान कांग्रेस और लालाजी के विचारों में मतभेद दिखने लगा. लाला जी को उस गरम दल का हिस्सा माना जाने लगा था, जो अंग्रेज सरकार से लड़कर पूर्ण स्वराज लेना चाहती थी. इस पूर्ण स्वराज को अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम और प्रथम विश्व युद्ध से बल मिला. लाला जी भारत में एनीबेसेंट के साथ होमरूल के मुख्य वक्ता बन कर सामने आए. जलिया वाला बाग कांड ने उनमें अंग्रेज सरकार के खिलाफ और ज्यादा असंतोष भर दिया. इसी बीच कांग्रेस में महात्मा गांधी का समावेश हो चुका था. अंतरराष्ट्रीय पटल पर गांधी स्थापित हो चुके थे. 1920 में गांधी के चलाए गए असहयोग आंदोलन में उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन तबीयत बिगड़ जाने पर उन्हें रिहा कर दिया गया. इसी बीच उनके संबंध लगातार कांग्रेस से बिगड़ते रहे. 1924 में वे कांग्रेस छोड़कर स्वराज पार्टी में शामिल हुए और केन्द्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गये.

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साइमन कमीशन का विरोध और मृत्यु : भारत में आए साइमन कमीशन का विरोध का फैसला गांधीजी ने लिया. साइमन कमीशन जहां भी गया, वहां साइमन गो बैक के नारे बुलंद हुए. 30 अक्टूबर 1928 को जब कमीशन लाहौर पहुंचा, तो लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक दल शांतिपूर्वक साइमन गो बैक के नारे लगाता हुआ अपना विरोध दर्ज करवा रहा था. तभी अंग्रेज पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया. एक युवा अंग्रेज अफसर ने लालाजी के सिर पर जोरदार प्रहार किया. लाला जी का कथन था— मेरे शरीर पर पड़ी एक एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में कील का काम करेगी. सिर पर लगी हुई चोट ने लाला लाजपत राय का प्राणान्त कर दिया. उनकी मृत्यु से पूरा देश भड़क उठा. इसी क्रोध के परिणामस्वरूप भगतसिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या की और फांसी के फंदे से झूल गए.

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