जशपुर में धूमधाम से मनाया गया दशहरा फेस्टिवल, भगवान बालाजी की निकली शोभायात्रा

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Published : Oct 6, 2022, 12:25 PM IST

Updated : Oct 6, 2022, 12:46 PM IST

भगवान बालाजी की निकली शोभायात्रा

Dussehra festival celebrated in Jashpur: जशपुर में धूमधाम से दशहरा फेस्टिवल मनाया गया. इस मौके पर भगवान बालाजी के नेतृत्व में शोभायात्रा निकाली गई. इसमें राजशाही परिवार से लोग शामिल भी हुए. जशपुर शहर के रणजीता स्टेडियम में निर्मित लंका पहुंचीं और रावण वध के बाद लंका दहक उठी. इसके बाद लोगों ने महाआरती के बाद हुए नीलकंठ के दर्शन किए.

जशपुर: छत्तीसगढ़ के जशपुर में बुधवार को विजय दशमी धूमधाम से मनाया गया. इस अवसर पर शोभा यात्रा निकाली गई. शोभा यात्रा रणजीता स्टेडियम पहुंचने के बाद, रावण दहन होने से कुछ मिनट पहले ही अचानक तेज बारिश शुरू हो गई. झमाझम बारिश के बीच रावण के विशाल पुतला का दहन किया गया. बारिश के कारण मैदान में आतिशबाजी का आनंद उठाने के लिए पहुंचें हजारों लोगों को निराश होना पड़ा. (Dussehra festival celebrated in Jashpur)

जशपुर में धूमधाम से मनाया गया दशहरा फेस्टिवल

जशपुर शहर और इसके आसपास के ग्रामीण अंचल से भारी संख्या में लोग सुबह से ही शहर आने लगे थे. लंका दहन के लिए भगवान बालाजी के नेतृत्व में शोभा यात्रा (Lord Balaji Procession Took Out in Jashpur) निकाली. शहर के रणजीता स्टेडियम में निर्मित लंका पहुंचीं और रावण वध के बाद लंका दहक उठी. लंका दहन के साथ ही 9 दिन से चली आ रही ऐतेहासिक दशहरा उत्सव संपन्न हो गया.

इससे पहले राजपुरोहितों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भगवान बालाजी को विशेष रथ में आरूढ़ कराया. रणभेरी की गगनचुंबी नाद, जयश्री राम और बालाजी भगवान के जयकारे के साथ शोभायात्रा रणजीता स्टेडियम पहुंची. शोभायात्रा में बालाजी मंदिर से शुरू होकर जय स्तम्भ चौक, सिटी कोतवाली होते हुए रणजीता स्टेडियम पहुंची. इस दौरान डोम वंशजों के ढोल नगाड़े की थाप की गूंज शहर भर में गूंजती रही. रणजीता स्टेडियम में भगवान बालाजी की विधिवत पूजा अर्चना की गई.

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बैगाओं ने की ग्राम देवताओं की पूजा: आदिवासी अंचल होने के कारण जशपुर के रियासत कालीन दशहरा उत्सव में बैगाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अंचल के दो सौ से अधिक बैगा, इस दशहरा उत्सव के दौरान ग्राम देवता की पूजा अर्चना के लिए जुटे थे. रणजीता स्टेडियम मैदान में भगवान बालाजी की विधिवत पूजा के बाद भगवान हनुमान का रूप धारण किए हुए व्यक्ति ने लंका दहन की अनुमति भगवान बालाजी से मांगी. अनुमति मिलने के बाद हनुमान जी पुनः लंका की ओर कुच किए और कुछ ही देर बाद वापस आकर रावण का एक सिर, भगवान बालाजी के चरणों मे अर्पित करते हुए भगवान श्रीराम के लंका विजय की सूचना दी. इसके साथ ही लंका और रावण के पुतले का दहन कर दिया गया.

मां अपराजिता की पूजा कर मांगा विजय का आशिर्वाद: जशपुर के रियासतकालिन दशहरा उत्सव में अपराजिता पूजा का विशेष महत्व है. रावण वध के बाद राजपुरोहितों के दलों ने रणजीता स्टेडियम में निर्मित विशेष मंडप में इस पूजा को विधि विधान से संपन्न कराया. इस पूजा के पीछे मान्यता है कि रावण वध के समय भगवान श्रीराम ने अपराजिता पूजा की थी.

मान्यता के अनुसार अपराजिता पूजा की जाती है, जिसमें विशेष रूप से शस्त्रों की पूजा होती है. पूजा में शस्त्र बालाजी मंदिर से शोभा यात्रा में ही लाया जाता है. यह पूजा रियासत काल के उन पहलुओं का भी स्पर्श कराता है जो तात्कालिन रियासत की रक्षा के लिए अस्त्र और शस्त्र से परिपूर्ण शक्ति की उपासना से संबंधित है.

महाआरती के बाद हुए नीलकंठ के दर्शन: लंका दहन और अपराजिता पूजा के बाद दशहरा उत्सव के अंतिम चरण में भगवान बालाजी की महाआरती के बाद नीलकंठ का दर्शन शहरवासियों को कराया. रथ के ऊपर से उन्होनें नीलकंठ को उड़ाया. दशहरा के दिन नीलकंठ के दर्शन को शुभ माना जाता है. इस पक्षी को भगवान शिव के रूप में दर्शन करने की परम्परा रही है. माना जाता है कि भगवान हनुमान ने लंकापति रावण को नीलकंठ रूप में भगवान शिव का दर्शन कराया था. इसके बाद ही उसे असुर योनी से मुक्ति मिल पाई था.

Last Updated :Oct 6, 2022, 12:46 PM IST
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