हरतालिका तीज पर काफी दिनों बाद कुम्हारों के चेहरे पर दिखी रौनक

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Published : Sep 10, 2021, 2:05 PM IST

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अखंड सौभाग्य का पावन पर्व हरतालिका तीज पर बाजारों में आई रौनक से कुम्हारों के चेहरे पर मुस्कान देखने को मिली. क्योंकि कोरोना काल में हर कोई वर्ग परेशान था.

दंतेवाड़ा: अखंड सौभाग्य का पावन पर्व हरतालिका तीज गुरुवार को पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया गया. सुहागिन महिलाओं ने सुखी दांपत्य जीवन और पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखा. इस बीच बाजारों में आई रौनक से कुम्हारों के चेहरे पर भी मुस्कान देखने को मिली.

कोरोना काल की वजह से कुम्हार मिट्टी से बने कलर्स मटके तक मार्केट में नहीं भेज पाए थे. जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हुई थी. लेकिन मार्केट खुलने के बाद पुनः तीज त्योहारों में अपना सामान भेज पा रहे हैं. जिससे कुछ घर की आर्थिक स्थिति सुधरी है जो मार्केट में देखने को मिला. ETV भारत की टीम ने कुछ कुम्हार परिवारों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि कोरोना के वजह से धंधा पानी एकदम खत्म हो गया था. अब मार्केट खुलने के कारण कुछ आर्थिक स्थिति सुधरी है.


क्यों रखती है महिलाएं निर्जल व्रत

मान्यता है कि इसी दिन महादेव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें विवाह के लिए हा कहा था. इसीलिए महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं. माता पार्वती और महादेव का पूजन करने से विवाहित स्त्री का वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है. हरितालिका तीज सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए व्रत रखती हैं.

इस व्रत में महिलाएं माता गौरी से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं. दरअसल, यह व्रत निर्जल रखा जाता है. यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. वहीं कुंवारी कन्याएं भी हरितालिका तीज व्रत रखती हैं. उनके द्वारा यह व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए रखा जाता है.

तीज व्रत के दिन महिलाएं सुबह से स्नान कर श्रृंगार कर पूजा पाठ करती हैं. सुबह मिट्टी से शिव पार्वती की मूर्ति बनाई जाती है. उनका विधि विधान से पूजा अर्चना किया जाता है. पार्वती माता को श्रृंगार अर्पित कर फल-फूल मिठाई चढ़ाई जाती है. रात्रि समय महिलाएं सुंदर वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करके पूजा की जाती है. इसमें रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है. रात भर महिलाएं भजन-कीर्तन कर जागरण करती हैं. इसके बाद सुबह में स्नान कर पूजा करती हैं. फिर शिव-पार्वती की बनी मूर्ति व पूजा के सामानों का विसर्जन कर दिया जाता है.

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