Bastar Dussehra 2022 : बस्तर दशहरा में रस्मों की परंपरा, 75 दिनों तक चलता है कार्यक्रम

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Published : Sep 12, 2022, 2:04 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

बस्तर दशहरा में रस्मों की परंपरा

Bastar Dussehra 2022 बस्तर का दशहरा सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध है.इस दशहरे को 75 दिनों तक मनाया जाता है. बस्तर दशहरे का आगाज हो चुका है. अब तक दो रस्में निभाई गई है.इसी तरह आगे 11 रस्म निभाई जाएगी. कुल मिलाकर पाठजात्रा से लेकर डोली विदाई तक 13 रस्मों को निभाया जाता है.

जगदलपुर : विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरे का आगाज हो चुका है. 75 दिनों तक चलने वाले इस दशहरे पर्व में 12 से अधिक रोचक और अनोखी रस्में निभाई जाती है. 600 साल पुराने इस दशहरे पर्व की खास बात ये है कि असुरों की नगरी रहे बस्तर में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता . बल्कि 8 चक्के वाले विशालकाय रथ में बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी के छत्र को सवार करके शहर में भ्रमण करवाया जाता है. यही कारण है कि इस दशहरे पर्व को करीब से निहारने के लिए हर साल देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों की संख्या में पर्यटक बस्तर पहुंचते (Tradition Rituals of Bastar Dussehra) हैं.

पहली रस्म पाठजात्रा पूजा विधान: इस दशहरे पर्व की पहली और मुख्य रस्म पाठजात्रा होती है. हरियाली अमावस्या के दिन इस रस्म की अदायगी की जाती है. इसी रस्म के साथ ही बस्तर में दशहरा पर्व की शुरुआत होती है. परंपरा अनुसार इस रस्म में बिरिंगपाल गांव से दशहरा पर्व के रथ निर्माण के लिए पहली लकड़ी लाया जाता है. जिसे ठुरलू खोटला कहा जाता है और रथ कारीगर इसी लकड़ी से ही रथ निर्माण के लिए औजार बनाते हैं. हरियाली के दिन विधि विधान से पूजा के बाद बकरे और जीवित मांगुर मछली की बलि दी जाती है. यह रस्म बस्तर में 28 जुलाई 2022 को विधि विधान के साथ निभाई गई (fame of bastar dussehra) है.

बस्तर दशहरा में रस्मों की परंपरा
बस्तर दशहरा में रस्मों की परंपरा
दूसरी रस्म डेरी गढ़ई पूजा विधान : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेरी गढ़ई होती है. मान्यताओं के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है. करीब 600 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा अनुसार जंगलों से सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया जाता है. विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर इस रस्म की अदायगी अंडे और जीवित मछली की बलि देकर की जाती है. जिसके बाद से जंगलों से रथ बनाने के लिए ग्रामीणों द्वारा लकड़ी लाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है.यह रस्म 8 अगस्त 2022 को विधि विधान के साथ निभाई गई है.
तीसरी रस्म काछनगादी पूजा विधान : बस्तर के दशहरे पर्व को आरंभ करने के लिए देवी की अनुमति ली जाती है. बस्तर में अनुमति लेने की यह परंपरा अपने आप में अनूठी है, काछनगादी नामक इस रस्म में एक नाबालिक कुंवारी कन्या कांटों के झूले पर लेटकर इस दशहरे पर्व को आरंभ करने की अनुमति देती है. मान्यताओं के अनुसार कांटों के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर इस पर्व को आरंभ करने की अनुमति देती है. बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो, इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछनदेवी की पूजा होती है. काछनदेवी के रूप में अनुसूचित जाति (मिरगान) के एक विशेष परिवार की कुंवारी कन्या को कांटों से बने झूले में लिटाया जाता है. इसी दौरान उसके अंदर देवी आकर बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. यह रस्म 25 सितंबर की शाम 5:00 बजे जगदलपुर शहर के भंगाराम चौक में विधि विधान के साथ निभाई जाएगी.
बस्तर दशहरा में रस्मों की परंपरा
बस्तर दशहरा में रस्मों की परंपरा
चौथी रस्म जोगी बिठाई पूजा विधान : इस ऐतिहासिक बस्तर दशहरे पर्व की चौथी रस्म जोगी बिठाई निभाई जाती है. यह रस्म जगदलपुर शहर के सिरहासार भवन में पूर्ण विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है. परंपरा अनुसार इस रस्म में एक विशेष जाति का युवक प्रतिवर्ष 9 दिनों तक निर्जल उपवास रखकर सिरहासार भवन स्थित एक निश्चित स्थान पर तपस्या हेतु बैठता है. इस तपस्या का मुख्य उद्देश्य बस्तर दशहरा पर्व को शांतिपूर्वक निर्बाध रुप से संपन्न कराना होता है.जोगी बिठाई रस्म में जोगी से तात्पर्य योगी से है.

जोगी बिठाई रस्म से जुड़ी है किवदंती : दरअसल इस रस्म में एक किवदंती जुड़ी हुई है. मान्यताओं के अनुसार वर्षों पूर्व दशहरे के दौरान हल्बा जाति का एक युवक जगदलपुर स्थित महल के नजदीक तप की मुद्रा में निर्जल उपवास पर बैठ गया था. दशहरे के दौरान 9 दिनों तक बिना कुछ खाए पिये मौन अवस्था में युवक के बैठे होने की जानकारी जब तत्कालीन महाराजा को मिली. तब वह स्वयं युवक से मिलने योगी के पास पहुंचे और उससे तप पर बैठने का कारण पूछा. तब योगी ने बताया कि उसने दशहरा पर्व को निर्विघ्न, शांतिपूर्वक रुप से संपन्न कराने के लिए यह तप किया है. जिसके बाद राजा ने योगी के लिए महल से कुछ दूरी पर सिरहासार भवन का निर्माण करवाकर इस परंपरा को आगे बढ़ाएं रखने में सहायता की.तब से प्रतिवर्ष अनवरत इस रस्म में जोगी बनकर हल्बा जाति का युवक 9 दिनों की तपस्या में बैठता है. यह महत्वपूर्ण रस्म 26 सितंबर 2022 की सुबह 11:00 बजे विधि विधान के साथ सिरहसार भवन में संपन्न किया जाएगा.

पांचवी रस्म रथ परिक्रमा पूजा विधान : इस दशहरे पर्व की महत्वपूर्ण रस्म फूल रथ परिक्रमा निभाई जाती है. इस रस्म में बस्तर के आदिवासियों द्वारा पारंपरिक तरीके से लकड़ियों से बनाए गए 30 फीट ऊंची रथ पर बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी के छत्र को सवार करके शहर के सिरहसार भवन से गोल बाजार, गुरु गोविंद सिंह चौक होते हुए दंतेश्वरी मंदिर तक परिक्रमा कराया जाता है. करीब 30 फीट ऊंची इस रथ निर्माण के लिए प्रयुक्त सरई की लकड़ियों से विशेष वर्ग बेड़ाउमरगांव , झाड़उमरगांव के ग्रामीण आदिवासियों द्वारा 14 दिनों में रथ का निर्माण किया जाता है. करीब 30 टन वजनी इस रथ को खींचने के लिए सैकड़ों लोगों की जरूरत पड़ती है. जिसे बस्तरवासी मिलकर हर्ष -उल्लास के साथ अपने हाथों से ही खींचते हैं.बस्तर दशहरे की इस अद्भुत रस्म की शुरुआत 1420 ईस्वी में तत्कालिक महाराजा पुरुषोत्तम देव के द्वारा की गई थी. महाराजा पुरुषोत्तम ने जगन्नाथपुरी जाकर रथपति की उपाधि प्राप्त की थी. जिसके बाद से अब तक यह परंपरा अनवरत इसी तरह चले आ रही है. यह रस्म 27 सितंबर से 5 दिन तक प्रतिदिन शाम 5:00 बजे से निभाई जाएगी.

छठवीं रस्म बेल पूजा : इस बस्तर दशहरे की महत्वपूर्ण रस्म बेल पूजा विधि विधान के साथ निभाई जाती है. यह रस्म जगदलपुर शहर से लगे ग्राम सरगीपाल के बेल चबूतरा में राज परिवार पहुंचकर पूजा अर्चना के साथ निभाते हैं. मान्यता यह है कि महाराजा और महारानी इस इलाके में जब भी शिकार पर पहुंचते थे, तब यहां से चीजें अदृश्य हो जाती थी. जिसके बाद से उन्हें ऐसा लगा कि यहां दिव्य शक्ति है और प्रतिवर्ष केवल एक ही ऐसा दिन होता है जहां एक पेड़ पर एक साथ दो बेल जोड़े के रूप में दिखाई देते . यही कारण है कि राज परिवार यहां पहुंचता है और ग्रामीण गाजे-बाजे के साथ उनका स्वागत करते हैं. साथ ही इस दौरान सभी को हल्दी भी लगाया जाता है. मानो यह किसी शादी का समारोह है.जिसके बाद राज परिवार के सदस्य पेड़ में चढ़कर इस बेल को तोड़ते हैं और बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी के चरणों पर लाकर अर्पित करते हैं. यह परंपरा 2 अक्टूबर 2022 की सुबह 11:00 बजे ग्राम सरगीपाल में निभाई जाएगी.

सांतवी रस्म निशा जात्रा पूजा विधान : इस बस्तर दशहरे की सबसे अद्भुत रस्म निशा जात्रा होती है.इस रस्म को काले जादू की रस्म भी कहा जाता है. प्राचीन काल में इस रस्म को राजा-महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से अपने राज्य की रक्षा के लिए निभाते थे. जिसमें हजारों बकरों, बैलों यहां तक की नर की बलि भी दी जाती थी. लेकिन अब केवल 11 बकरों की ही बलि देकर इस रस्म की अदायगी रात 11:00 बजे शहर के अनुपमा चौक स्थित गुड़ी मंदिर में पूर्ण की जाती है. निशा जात्रा की यह रस्म बस्तर के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह रस्म 3 अक्टूबर रात 11:00 बजे अनुपमा चौक स्थित मंदिर में निभाया जाएगा.

आंठवी रस्म मावली परघाव : इस बस्तर दशहरे पर्व की एक और महत्वपूर्ण रस्म मावली परघाव होती है. 2 देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में अदा की जाती है. परंपरा अनुसार इस रस्म में शक्ति पीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है. जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों के द्वारा भव्य रूप से किया जाता है. नवरात्रि के नवमी में मनाए जाने वाले इस रस्म को देखने के लिए लिए बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है. मान्यता के अनुसार 600 वर्ष पूर्व रियासत काल से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है.बस्तर के महाराजा रूद्र प्रताप सिंह द्वारा इस डोली का भव्य स्वागत किया जाता था. जिसे आज भी परंपरा अनुसार बखूबी निभाई जाती है। यह परंपरा 4 अक्टूबर 2022 की रात 8:00 बजे जगदलपुर शहर के कुटरु बाड़ा में निभाया जाएगा.

नवमी रस्म भीतर रैनी : दशहरा में विजयदशमी के दिन एक ओर पूरे भारत देश में रावण का पुतला दहन किया जाता है, वहीं बस्तर में विजयदशमी के दिन दशहरा की प्रमुख रस्म भीतर रैनी निभाई जाती है, मान्यताओं के अनुसार आदिकाल में बस्तर असुरों की नगरी हुआ करती थी. यही वजह है कि शांति अहिंसा और सद्भाव के प्रतीक बस्तर दशहरे पर्व में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता. भीतर रैनी रस्म में रथ परिक्रमा पूरी होने पर आधी रात को इसे चुराकर माड़िया जाति के लोग शहर से लगे कुम्हड़ाकोट ले जाते हैं. इस संबंध में बताया जाता है कि राजशाही युग में राजा से असंतुष्ट लोगों ने रथ चुराकर एक जगह छिपा दिया था. यह रस्म 5 अक्टूबर 2022 की रात सिरहसार से कुम्हड़ाकोट तक रथ को ले जाकर निभाया जायेगा.

दसवीं रस्म बाहर रैनी पूजा विधान : माड़िया जाति के लोगों द्वारा रथ चुराकर कुम्हड़ाकोट ले जाया जाता है. जिसके पश्चात राजा द्वारा कुम्हड़ाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाकर एवं उनके साथ भोजन करने के बाद रथ को वापस जगदलपुर लाया जाता गया था. इसी परंपरा को बाहर रैनी रस्म कहा जाता है. इस परंपरा को बस्तर दशहरा में विधि विधान के साथ प्रतिवर्ष राज परिवार के सदस्य निभाते आ रहे हैं. इसी के साथ बस्तर में बाहर रैनी के दिन रथ परिक्रमा समाप्त की जाती है. यह रस्म 6 अक्टूबर 2022 की शाम कुम्हड़ाकोट से दंतेश्वरी मंदिर तक रथ लाकर निभाया जाएगा.

ग्याहरवीं रस्म मुरिया दरबार : इस दशहरे पर्व में अगली रस्म के रूप में मुरिया दरबार लगाकर निभाया जाता है. यह रस्म जगदलपुर शहर के सिरहसार भवन में पूर्ण किया जाता है. बताया जाता है कि दशहरा पर्व के दौरान बस्तर के महाराजा ग्रामीणों की एक दरबार लगाया करते थे जहां वे उनकी समस्या को सुनकर निराकरण किया करते थे. अब इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सिरहासार भवन में मुरिया दरबार लगाया जाता है. और इस दरबार में कुछ सालों पहले से ही प्रदेश के मुख्यमंत्री मुखिया की तौर पर आकर बैठते हैं और बस्तर वासियों की समस्या सुनकर उसका निराकरण करते हैं. इसके अलावा इस दरबार में बस्तर के सांसद, विधायक, राजपरिवार सदस्य, दशहरा समिति के लोग, दशहरा को शांतिपूर्ण तरीके, विधि विधान के साथ पूर्ण कराने वाले मांझी-चालकी, पुजारी अन्य सेवकारी मौजूद रहते हैं. यह मुरिया दरबार 7 अक्टूबर 2022 की दोपहर 1:00 बजे सिरहासार भवन में लगाया जाएगा.

बाहरवीं रस्म कुटुंब जात्रा पूजा विधान :इस दशहरे पर्व को भव्य रूप से मनाने के लिए बस्तर के चारों दिशाओं से अलग-अलग देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया जाता है। और इन देवी देवताओं के सहयोग से दशहरे पर्व को शांतिपूर्वक तरीके से निभाए जाने के बाद उन्हें विदाई देने के लिए जगदलपुर शहर के गीदम रोड स्थित महात्मा गांधी स्कूल परिसर में पूजा विधान का आयोजन किया जाता है. इस पूजा विधान के साथ ही उन्हें विदाई दी जाती है. इस रस्म को कुटुंब जात्रा पूजा विधान कहा जाता है.यह रस्म 8 अक्टूबर 2022 की सुबह 11:00 बजे गंगामुंडा में निभाया जाएगा.

अंतिम रस्म डोली विदाई : बस्तर दशहरा का समापन दशहरा पर्व में दंतेवाड़ा से पधारी दंतेश्वरी की समारोहपूर्वक अभूतपूर्व विदाई की परंपरा को पूरी गरिमा के साथ जिया डेरा से दंतेवाड़ा के लिए विदाई देकर की जाती है. इस परंपरा को डोली विदाई कहा जाता है. दंतेश्वरी की डोली विदाई के साथ ही ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का समापन किया जाता है, विदाई से पहले डोली और छत्र को स्थानीय दंतेश्वरी मंदिर के सामने बनाए गए मंच पर आसीनकर महाआरती की जाती है. यहां सशस्त्र सलामी बलों द्वारा डोली को सलामी देने के बाद डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जिया डेरा तक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. बस्तर के महाराजा दंतेश्वरी मंदिर से जिया डेरा तक अपने कंधों पर डोली को उठाकर पहुंचते हैं. जिसके बाद जिया डेरा में पूजा विधान करने के बाद डोली की विदाई की जाती है. इस विदाई के साथ ही 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा का समापन किया जाता है. यही कारण है कि 75 दिनों तक मनाए जाने वाले इस बस्तर दशहरे के रोचक, अनोखी रस्मों को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों की संख्या में पर्यटक प्रतिवर्ष बस्तर पहुंचते हैं. Bastar Dussehra 2022

Last Updated :Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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