जगदलपुर : छत्तीसगढ़ में 42% के करीब वन क्षेत्र है. बस्तर इसमें अहम स्थान रखता है. हालांकि वन क्षेत्र घट रहा है और ऐसे में वन कर्मचारियों की ड्यूटी उतनी ही मुश्किल होती जा रही है. बस्तर में तो ड्यूटी दोगुनी खतरनाक भी होती है. क्योंकि एक तरफ तस्करों का खौफ है तो दूसरी तरफ नक्सलियों का. जरा सी बात बिगड़ी तो नक्सली वन कर्मचारियों अधिकारियों को भी नहीं छोड़ते. पुलिस के लिए तो नक्सल मोर्चे पर कई प्रावधान है लेकिन वनकर्मचारी इस मामले में अब तक विशेष सुविधा से वंचित (Demands of forest workers for martyr status) हैं.
नक्सलगढ़ में दुविधा : बस्तर में नक्सल मोर्चे पर काम कर रहे वन कर्मचारियों पर पुलिस की तरह ही दबाव होता है. यहां वन कर्मचारी अकेले ही दुर्गम और घने जंगलों के बीच नक्सलियों के सीधे निशाने पर होते हैं. देखने में भी यह आया है कि जब जब नक्सलियों की अनबन वन कर्मचारियों से हुई है तो उन्होंने बेरहमी से हत्या की है. हाल ही में रेंजर पद पर काम कर रहे भैरमगढ़ के रथराम पटेल को नक्सलियों ने बेरहमी से मार दिया. वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन निर्मम हत्या का खतरा इन वन कर्मचारियों पर हमेशा मंडराता है.
वनकर्मियों में नक्सलियों का खौफ : बीते दो दशक में नक्सलियों ने कर्मचारियों की हत्या की है कईयों को धमकाया है. तो कईयों पर अलग-अलग तरह से दबाव भी बनाते रहे हैं . यही वजह है कि सिर्फ नक्सली ही नहीं बल्कि पुलिस की मुखबिरी के निशाने पर भी वन कर्मचारी बने रहते हैं. कई बार ऐसी भी नौबत बनी है. जहां पुलिस ने भी इन वन कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. इतना ही नहीं दबाव की वजह ओड़िशा तेलंगाना महाराष्ट्र से लगती सीमा पर तस्करों का हमेशा दबाव बना रहता है.
शासन से शहीद का दर्जा देने की मांग : बीते तीन दशक से भी ज्यादा समय से ओडीशा और तेलंगाना के तस्करों ने तो बस्तर के कीमती सागौन की तस्करी जारी रखी है. गाहे-बगाहे वन कर्मचारियों से उलझते रहते हैं कई मौकों पर तो इनकी पिटाई भी हुई है. वन कर्मचारियों के लिए वर्दी में घूमना तो अनिवार्य हैं. लेकिन बंदूक रखने की सुविधा वर्षों पहले नक्सली हिंसा की आशंका में खत्म कर दी गई थी. लिहाजा निहत्थे गश्त करना एकमात्र विकल्प है. घटना होने पर सरकार की तरफ से इन वन कर्मचारियों के लिए कोई विशेष प्रावधान भी नहीं होता. हताहत कर्मचारियों को तो पर्याप्त मात्रा में मुआवजा मिलना भी मुश्किल होता है. केवल अनुकंपा नियुक्ति की आस में परिवार इस जोखिम भरी नौकरी पर संतोष करने को मजबूर है.इसलिए वनकर्मियों ने शासन से पुलिस के जैसे ही शहीद का दर्जा देने की मांग की (martyr status like police in naxal areas) है.