धर्मांतरण आस्था पर चोट करती है इसलिए लोग इसे बर्दाश्त नहीं करते- बृजमोहन अग्रवाल

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Published : Oct 30, 2021, 9:24 PM IST

Updated : Oct 30, 2021, 9:56 PM IST

Exclusive conversation with BJP leader Brijmohan Agarwal

आज हम बात करेंगे ऐसे शख्स से जिनके बारे में कहा जाता है कि चुनावी रणनीति (Election Strategy) बनाने के लिए प्रदेश में इनकी बराबरी का शायद ही कोई दूसरा नेता होगा. पार्टी की ओर से इस काम के लिए इन्हें कई बार जवाबदारी भी दी गई, जिसे इन्होंने बखूबी निभाया है. बात हो रही है भाजपा के दिग्गज नेता (BJP Leader) बृजमोहन अग्रवाल के संबंध में. ईटीवी ने उनसे खास बातचीत की तो उन्होंने अपने जीवन की यात्रा में क्या खुलासा किया? आप भी जानिए...


रायपुरः राजधानी रायपुर के सात बार के विधायक व भाजपा के दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल एक शख्सियत जिन्होंने अपने अभी तक के जीवन में सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. चुनावी रणनीति (Election Strategy) बनाने के लिए प्रदेश में इनकी बराबरी का शायद ही कोई दूसरा नेता होगा. पार्टी की ओर से इस काम के लिए इन्हें कई बार जवाबदारी भी दी गई, जिसे इन्होंने बखूबी निभाया. इस दौरान ईटीवी भारत ने बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agarwal) से मौजूदा दौर की राजनीति (Politics) को लेकर कई सवाल किए, जिनका उन्होंने बेबाकी से जवाब दिया.

भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल EXCLUSIVE


सवाल: धर्मांतरण का मुद्दा प्रदेश में गरमाया हुआ है मगर सरकार के मंत्री मानते हैं कि प्रदेश में धर्मांतरण (Conversion) कोई मुद्दा है ही नहीं?
जवाब: बहुत बड़ा मुद्दा है धर्मांतरण (Conversion). आस्था पर चोट होती है, इसलिए लोग इसे बर्दाश्त नहीं करते. प्रदेश में लालच देकर धर्मांतरण (Greedy Conversion In The State ) का खेल चल रहा है. बस्तर में ही इसके विरोध में 20 आंदोलन हो चुके हैं. जगह-जगह झगड़े हो रहे हैं. शिकायत दर्ज भी करवाई गई है. सरकार फिर भी कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. उल्टे धर्मांतरण का विरोध करने वालों पर ही केस दर्ज किए जा रहे हैं. कवर्धा में भी कुछ ऐसा ही हुआ है.

भाजपा नेता बृजमोहन अग्रवाल

सवाल: कांग्रेस नेताओं (Congress Leaders ) का तो यह कहना है कि बीजेपी मुद्दा विहीन हो गई है. बीजेपी (BJP ) के पास कोई मुद्दा नहीं है सरकार को घेरने के लिए. इसी वजह से धर्म से जुड़े मुद्दे को आप सब तूल देने में लगे हुए हैं?
जवाब: 15 सालों में जब तक हमारी पार्टी की सरकार थी. तब प्रदेश में कहीं भी विवाद की स्थिति निर्मित नहीं हुई. जबकि कवर्धा में आज तक रात्रि कर्फ्यू लगाना पड़ रहा है. बस्तर से आदिवासी राज्यपाल से मिलने आ रहे हैं. ऐसी स्थिति हमारी सरकार के शासनकाल के दौरान कभी नहीं बनी.

सवाल: अप्रत्यक्ष रूप से राज्यपाल (Governor ) की भूमिका पर भी उंगलियां उठाई जा रही हैं. कांग्रेस के मंत्री यह भी बयान देते हैं कि राजभवन को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनना चाहिए?
जवाब: सरकार जब लोगों की नहीं सुनती तब आम लोग राज्यपाल से मिलने आते हैं. यह सरकार अंधी, बहरी और गूंगी हो गई है, इसलिए लोग अपनी बात राज्यपाल से कर रहे हैं. यह सरकार की नाकामी का प्रतीक है.


सवाल: क्या आपको लगता है कि किसी मंत्री को अपने क्षेत्र के दौरे के दौरान ढाई सौ गाड़ियों के काफिले को ले जाना चाहिए?
जवाब: यही सवाल सरकार से है कि जिस जगह पर भीड़ इकट्ठा करने पर पाबंदी है, वहां 300 गाड़ियों के काफिले के साथ पहुंचने वाले पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इसका संकेत यही है कि सरकार भयभीत है (The Government Is Scared ) और इसी वजह से तानाशाही रवैया (Dictatorial Attitude ) अपना रही है.


सवाल: धान खरीदी को लेकर सरकार ने 1 दिसंबर का समय की घोषणा की है. इस पर क्या आपत्ति है आप लोगों को कि खरीदी 1 नवंबर से ही की जाए?
जवाब: हमारी सरकार थी. तब हम धान खरीदी 1 नवंबर से ही करते थे. इसके पीछे बड़ी वजह देश के सबसे बड़े त्यौहार दीपावली पर अन्नदाताओं के हाथों तक पैसा पहुंचाना रहता था. अब जब दिवाली मनाने की बात आएगी या फिर बच्चों की फीस देने की बात आएगी तो हमारे किसान भाई क्या करेंगे? जबकि हमारे प्रदेश की अर्थव्यवस्था के स्तंभ किसान ही हैं. धान कटने के बाद इनके पास में उसे रखने की जगह नहीं रहती. धूप में धान सूख जाएंगे या फिर बरसात में भीग जाएंगे. इससे किसानों को प्रति क्विंटल कम से कम 200 से 300 रुपए तक का नुकसान होगा. सरकार ने बिजली देने का वादा किया था. मगर वह भी किसानों को नहीं मिल रही. शार्ट-टर्म-लोन (Short-Term Loan ) को ही सरकार (Government ) ने माफ किया है. जबकि राष्ट्रीयकृत बैंकों (Nationalized Banks ) से लिए गए लोन को भी इन्हें माफ करना था और लॉन्ग-टर्म-लोन को भी माफ किया जाना था. इस तरह सरकार किसानों (Government Farmers ) के पैसे में डाका डाल रही है.


सवाल: क्या आपके मन में कभी इस बात का मलाल रहा कि 7 बार लगातार चुनाव जीतने के बाद भी आप मुख्यमंत्री नहीं बन पाए?
जवाब: मुझे जो सम्मान मिलता है. जनता जिस तरह से आदर और सम्मान भाव मेरे प्रति रखती है. यह मेरे लिए बड़ी प्रतिष्ठा का विषय है. मगर हर व्यक्ति को महत्वाकांक्षा रखनी चाहिए. आगे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व (Top Party Leadership ) से जो भी जिम्मेदारी मुझे दी जाएगी, मैं उसे आगे भी निभाऊंगा.

इसके अलावा हमने भाजपा के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल से दूसरे कई ज्वलंत और महत्वपूर्ण विषयों पर वाल किया. इसमें उनके राजनीतिक कैरियर की शुरूआत से लेकर अभी तक का सफर शामिल रहा. इसका उन्होंने काफी सहजता के साथ जवाब दिया.

सवाल: राजनीति की शुरुआत कैसे हुई आपकी?
जवाब: जब मैं स्कूल (School ) में दसवीं क्लास में पढ़ रहा था. उस समय एक शिक्षक ने कुछ बच्चों को महज इस वजह से फेल कर दिया कि वे उनसे ट्यूशन क्यों नहीं पढ़ते ? यहीं से ही फिर धरना-प्रदर्शन और आंदोलन की शुरुआत हुई. अंग्रेजी हटाओ आंदोलन भी चला. स्कूल के समय ही इन आंदोलनों की वजह से केस दर्ज हुआ और जेल भी जाना पड़ा. इसके बाद कॉलेज में कई गैंग चला करते थे. जो छात्र राजनीति की दिशा तय करते थे. एबीवीपी से जुड़ कर और अच्छे लोगों को जोड़कर हमने इन सब को जवाब दिया. दो बार कॉलेज में प्रेसिडेंट भी रहा. उस समय कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी. इस वजह से हमें कई कठिनाइयां भी झेलनी पड़ती थीं. कॉलेज में एडमिशन (College Admission ) के लिए मुझे हाई कोर्ट का भी सहारा लेना पड़ा. इसके बाद कुशाभाऊ ठाकरे जी और सुंदर लाल पटवा जी ने कहा कि मुझे राजनीति (Politics ) में आना चाहिए. जिसके बाद 1989 में पहली बार मुझे पार्टी ने प्रत्याशी बनाया और उस विधानसभा चुनाव में बहुत कम अंतर से मुझे जीत मिली.


सवाल: आपके बारे में ऐसा कहा जाता है कि आप चुनावी प्रबंधन में इतने माहिर हैं कि किसी भी विधानसभा क्षेत्र से आप चुनाव लड़ें, आपकी जीत पक्की मानी जाती है?
जवाब: मुझे ऐसा लगता है कि पैसा और ताकत के दम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता. लोगों के दुख दर्द में भागीदार रह कर ही यह संभव हो सकता है. यही वजह है कि 7 बार से लगातार मैं अपनी विधानसभा सीट से जीत रहा हूं.

सवाल: ऐसा भी कहा जाता है कि आप अपने कार्यकर्ताओं के कार्यक्रम में देर रात को ही सही मगर, पहुंचते जरूर हैं?
जवाब: लोगों के दुख और सुख में शामिल होकर आप उनके परिवार के सदस्य हो जाते हैं. सिर्फ मैं अपने विधानसभा क्षेत्र में ही नहीं. प्रदेश और देश के संबंधों को निभाने की कोशिश करता हूं. कभी-कभी तो एक ही रात में 30 से 35 शादियों में शामिल होता हूं. क्योंकि कार्यकर्ताओं को उम्मीद रहती है कि मैं उनके आमंत्रण पर आऊंगा जरूर.

सवाल: आप रात को 2-2 बजे तक अपने कार्यकर्ताओं से मिलते हैं?
जवाब: प्रेम काम करने की ताकत को बल देता है. कई बार तो ऐसा होता है कि रात में 3 बजे तक जगने के बाद सुबह किसी कार्यक्रम में भी जाना पड़ता है.

सवाल: आप पान खाने के बड़े शौकीन हैं. इसकी शुरुआत कैसे हुई और किस पान की गुमटी से आप पान खाना ज्यादा पसंद करते हैं?
जवाब : हमारे घर में कोई भी पान नहीं खाता. मगर मुझे रात रात भर कार्यक्रम के सिलसिले में दूर जाना पड़ता था. उसी दौरान रात जागने के लिए पान दबा लिया करता था और मुझे लगता है कि पान से एनर्जी भी बढ़ती है. हमारे घर के पास रामसागर पारा के राठौर चौक में कस्तूर पान ठेला है जो करीब 100 साल पुराना है. मैं वहीं का पान खाना ज्यादा पसंद करता हूं. जब मैं भोपाल में रहता था, तब भी यहीं से पान ले जाया करता था. शहर के बनारसी पान की दुकान से भी मैं पान खाता हूं. प्रदेश में भी अलग-अलग जगहों पर पान की कई ऐसी दुकाने हैं, जहां से कार्यकर्ता पान लेकर आते हैं. कई बार तो मैं इन पान की गुमटियों पर खुद जाकर पान खा लिया करता हूं.

सवाल: क्या इसी सरलता और सहजता की वजह से लगता है कि चुनाव के समय जिस तरह का तनाव अन्य प्रत्याशियों के चेहरे पर दिखाई देता है वैसा आपके चेहरे में नजर नहीं आता?
जवाब: मुझे ऐसा लगता है कि इन्हीं कारणों की वजह से लगातार 7 बार विधानसभा चुनाव लड़ने के दौरान मुझसे कहीं पर भी किसी ने दुर्व्यवहार नहीं किया और नहीं ऐसी स्थिति निर्मित हुई जहां विवाद हो.

सवाल: कौन से अभिनेता आपको पसंद है और स्कूल-कॉलेज के दिनों में आप किन की फिल्में देखना पसंद करते थे?
जवाब: फिल्मों का बहुत ज्यादा शौक नहीं रहा कभी. मगर पुराने गाने सुनने का शौक जरूर था. राजेश खन्ना, देवानंद और हेमा मालिनी की फिल्मों के गाने पसंद आते थे. कुछ ही ऐसे गाने थे जिन्हें मैं गुनगुनाना पसंद करता था.

सवाल: कौन से गाने थे जिन्हें आप गुनगुनाना पसंद करते थे?
जवाब: छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए यह मुनासिब नहीं आदमी के लिए.

सवाल: आपकी क्या खेल में रुचि रही है, कौन-कौन से ऐसे खेल है जिन्हें आप पसंद करते हैं?
जवाब: मुझे बैडमिंटन, कबड्डी और फुटबॉल जैसे खेल ज्यादा पसंद थे. बैडमिंटन तो मैं अभी भी खेल लेता हूं.

सवाल: क्या फुटबॉल का वर्ल्ड कप देखते हैं?
जवाब: वैसे भी टीवी मैं बहुत कम ही देखता हूं. अब सोशल मीडिया से ही ज्यादातर खबरें मिल जाती हैं.

Last Updated :Oct 30, 2021, 9:56 PM IST
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