राज्यपाल को झीरम आयोग जांच की रिपोर्ट सौंपने पर सीएम ने उठाए सवाल

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Published : Nov 6, 2021, 9:52 PM IST

Updated : Nov 8, 2021, 5:18 PM IST

Report of the Jhiram Valley Inquiry Commission submitted to the Governor

राज्यपाल अनुसुईया उइके को झीरम घाटी जांच आयोग की रिपोर्ट (report of the commission of inquiry) सौंपी गई. यह रिपोर्ट आयोग के सचिव (secretary of the commission) एवं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (high Court) के रजिस्ट्रार (न्यायिक) संतोष कुमार तिवारी ने सौंपी. राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपे जाने के लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं. पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने कहा कि जांच रिपोर्ट सरकार के बदले राज्यपाल को सौंपकर नियम का उल्लंघन किया गया है. सीएम बघेल ने भी इस पर सवाल खड़े किए हैं.

रायपुरः राज्यपाल अनुसुईया उइके को झीरम घाटी जांच आयोग की रिपोर्ट सौंपी गई. यह रिपोर्ट आयोग के सचिव एवं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) संतोष कुमार तिवारी ने सौंपी. यह प्रतिवेदन 10 वाल्यूम और 4184 पेज में तैयार की गई है. यह आयोग छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में गठित की गई थी. श्री मिश्रा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (Acting Chief Justice) भी थे तथा वर्तमान में आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of High Court) हैं. वहीं, सीएम समेत, मोहन मरकाम ने सीधे राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपे जाने पर कई सवाल खड़े किए हैं.

झीरम मामले में सीएम ने दिया बयान

राज्यपाल को जांच रिपोर्ट सौंपने पर सियासी घमासान तेज

राज्य सरकार ने सिटिंग जज की अध्यक्षता में साल 2013 में जांच आयोग का गठन किया. जून 2021 में यह पत्र आया कि जांच आयोग को अंतिम मौका दिया गया. सितंबर महीने में जांच आयोग को और समय देने की बात सामने आई. इस बीच जस्टिस मिश्रा का ट्रांसफर हो गया. इसके बाद हमने विधि विभाग से सलाह मांगी. इस आयोग के सचिव की तरफ से बार-बार समय की मांग की जा रही है. अब उसकी रिपोर्ट सौंपी गई है. समाचार पत्रों से जानकारी मिली की राज्यपाल महोदया को यह रिपोर्ट सौंप दी गई. यह जानकारी हमे राजभवन से नहीं मिली है. अब तक राज्य सरकार ने सात या आठ जांच आयोग का गठन राज्य सरकार की तरफ से किया है. मान्य परिपाटी ये है कि, जांच आयोग की रिपोर्ट को राज्य सरकार को सौंपी जाती है. फिर एक्शन टेकन रिपोर्ट के साथ इसे विधानसभा में पेश किया जाता है. इस बार ऐसा नहीं हुआ. राज्यपाल महोदया को रिपोर्ट सौंपी गई है. ये जानकारी भी हमें मीडिया के माध्यम से मिली है. तो इसका अर्थ यह है कि यह जांच रिपोर्ट आधी अधूरी है.

मान्य परिपाटी का हुआ उल्लंघन

हमने पहले ही कहा था कि इस मामले में विधि विभाग से अभिमत लिया जा रहा है. इसी बीच जांच रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी गई. इसका मतलब है कि, जांच पूरी नहीं हो पाई है. इस पूरे मामले में मान्य परिपाटी का उल्लंघन हुआ है. राज्य सरकार को रिपोर्ट मिलने के बाद इसे विधानसभा में पेश किया जाता है. आयोग घटना स्थल पर जाकर जांच नहीं कर सकता. यह जांच एजेंसियां करती है.

केंद्र की जांच पर सीएम ने उठाए सवाल

एनआईए की जांच पर भी सीएम ने सवाल उठाए उन्होंने कहा कि कई बार हमने केंद्र से यह जांच वापस मांगी. इस केस में भारत सरकार किस को बचाना चाहती है. केंद्र सरकार से केस डायरी वापस मांगी राज्य सरकार ने ही उसे NIA को दिया था और NIA जांच पूरी कर चुकी थी. अनेक बार पत्राचार के बाद भी, गृह मंत्री के साथ कई बैठकों के बाद भी केंद्र सरकार ने केस वापस नहीं किया. हमें तो न्याय चाहिए. आप जांच नहीं कर सकते तो हमें जांच करने दीजिए. केंद्र सरकार यह केस नहीं दे रही है. खुद NIA कोर्ट ने कहा था, सरेंडर के बाद आंध्र प्रदेश की जेल में बंद नक्सली नेता गुडसा उसेंडी का बयान लिया जाना चाहिए. उसके बाद भी NIA ने आज तक गुडसा उसेंडी से पूछताछ क्यों नहीं की?

इतना ही नहीं सीएम भूपेश बघेल ने सवाल उठाया कि झीरम नक्सली हमले में केंद्रीय जांच ऐजेंसियों ने षडयंत्र के पहलू पर जांच नहीं की. इससे पहले भी कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण हुआ. बाद में भी कई लोगों को नक्सलियों ने किडनैप किया. सरकार से बातचीत के बाद उन्हें छोड़ा गया. ऐसे में जब नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल को नक्सली पकड़कर ले गए तो उन्हें गोली क्यों मार दी गई. इन सब सवालों के जवाब अब तक नहीं मिल सके हैं.

मोहन मरकाम ने भी उठाए सवाल

झीरम आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपने पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं. पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने कहा कि जांच रिपोर्ट सरकार के बदले राज्यपाल को सौंपकर नियम का उल्लंघन किया गया है. यह राज्यपाल को सौंपना ठीक नहीं है. तीन महीने में रिपोर्ट सौंपना था. लेकिन इसे तैयार करने में 8 साल लग लगए. इस रिपोर्ट में ऐसा क्या है जिसे छिपाने का प्रयास किया जा रहा है. मरकाम ने कहा कि झीरम कांड देश का सबसे बड़ा राजनीतिक षडयंत्र था. NIA की जांच भी संदिग्ध थी. विधानसभा में चर्चा के बाद कोई भी रिपोर्ट सार्वजनिक होती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.

आयोग जांच की रिपोर्ट सौंपने पर कांग्रेस ने उठाए सवाल

मोहन मरकाम ने इन बिंदुओं के आधार पर कई सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि झीरम नरसंहार के लिए गठित न्यायिक आयोग (judicial commission) द्वारा अपनी रिपोर्ट सरकार के बदले राज्यपाल (Governor) को सौंप कर तय एवं मान्य प्रक्रिया का उलंघन किया गया. न्यायिक आयोग (judicial commission) का जब भी गठन किया जाता है तो आयोग अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपती है. गठित जस्टिस प्रशांत मिश्र आयोग की ओर से रिपोर्ट सरकार के बदले राज्यपाल को सौंपना ठीक संदेश नहीं दे रहा. जब आयोग का गठन किया गया था तब इसका कार्यकाल 3 महीने का था. तीन महीने के लिए गठित आयोग को जांच में 8 साल कैसे लग गया?

तर्क रखने का नहीं दिया गया मौका

मोहन मरकाम ने कहा कि उक्त आवेदन पर कई बार सुनवाई बढ़ी और अंत में 22 अगस्त 2018 को सुनवाई हुई. 7 जनवरी 2019 को लगभग 5 माह बाद उक्त आवेदन खारिज करने का आदेश और आयोग की सुनवाई अचानक बंद करने का आदेश, गवाही के बाद तर्क रखने का मौका नही दिया गया. 21 जनवरी 2021 को सरकार ने 8 नए जांच बिंदु जोड़े. 27 अगस्त 2021 को 8 नये जांच बिंदु पर सुनवाई प्रारंभ हुई. 11 अक्टूबर को सुनवाई अचानक बंद कर दी गई. न तो राज्य सरकार के 5 गवाहों को मौका दिया गया और न ही तकनीकी गवाहों को ही बुलाया गया.

उन्होंने कहा कि 6 नवम्बर को आयोग ने रिपोर्ट राज्य सरकार को नहीं, बल्कि राज्यपाल के यहां प्रस्तुत की है. आयोग राज्य सरकार ने बनाया और रिपोर्ट भी राज्य सरकार को ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए. सरकार को आयोग की रिपोर्ट खारिज करने और नया आयोग बनाने का पूरा अधिकार है. राज्यपाल को रिपोर्ट पर कार्रवाई या टिपण्णी का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का आशय कैबिनेट से होता है. राज्यपाल अविलंब पूरी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजें.

25 मई 2013 को हुई थी घटना

झीरम घाटी की घटना 25 मई 2013 को हुई थी. इस घटना की जांच के लिए आयोग का गठन 28 मई 2013 को किया गया था. उल्लेखनीय है कि बस्तर के झीरम घाटी में नक्सलियों ने तत्कालीन कांग्रेस विधायक नंदकुमार पटेल (Congress MLA Nandkumar Patel) के काफिले पर हमला किया था. जिसमें नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा सहित अन्य लोग शहीद हो गए थे. इस घटना में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल (Former Union Minister Vidya Charan Shukla) गंभीर रूप से घायल हुए थे. जिनका बाद में इलाज के दौरान निधन हो गया

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में शामिल हुए रमन सिंह

कांग्रेस ने खोई वरिष्ठ नेताओं की पीढ़ी

उन्होंने कहा कि आयोग ने हाल ही में यह कहते हुए सरकार से कार्यकाल बढाने की मांग की थी कि जांच रिपोर्ट तैयार नहीं है. इसमें समय लगेगा. जब रिपोर्ट तैयार नहीं थी तो आयोग इसके लिए समय मांग रहा था. फिर अचानक रिपोर्ट कैसे जमा हो गयी? यह भी शोध का विषय है. ऐसा क्या है जो सरकार से छुपाने की कोशिश की जा रही है? मोहन मरकाम ने कहा कि झीरम हमले में कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेताओं की एक पूरी पीढ़ी सहित 31 लोगों को खो दिया है. झीरम देश ही नहीं दुनिया का सबसे बड़ा राजनैतिक हत्या कांड था. इस हमले की पीछे की पूरी सच्चाई सामने आनी ही चाहिए.

कांग्रेस (Congress) ने हमेशा ही इस नरसंहार के षडयंत्र की जांच की मांग की है. पूर्ववर्ती सरकार और एनआईए की भूमिका संदिग्ध रही है. कांग्रेस पार्टी राज्य सरकार से मांग करती है कि झीरम कांड की व्यापक जांच के लिए एक वृहत न्यायिक जांच आयोग का गठन किया जाय. प्रदेश की जनता इस मामले के पीछे के षड्यंत्रकारियों को बेनकाब होते देखना चाहती है. 27 मई 2013 को 9 जांच बिंदु पर अधिसूचना जारी किया गया. जुलाई 2013 में शपथ पत्र पेश हुआ. अगस्त 2013 से दिसंबर 2017 तक गवाही जारी रही. डॉ. रमन सिंह, ननकीराम कंवर, सुशील शिंदे, आरपीएन सिंह को गवाही के रूप में बुलाने के लिए आवेदन पेश किया गया.

Last Updated :Nov 8, 2021, 5:18 PM IST
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