आदिवासियों के आंदोलन की कमान युवाओं ने संभाली, सोशल मीडिया को बनाया हथियार

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Published : Oct 10, 2022, 8:54 PM IST

Updated : Oct 13, 2022, 6:16 PM IST

Tribal youth takes command of movemen

Tribal youth takes command of movement छत्तीसगढ़ में विभिन्न मुद्दों को लेकर आदिवासी समाज ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. समाज में बैठक, जनप्रतिनिधियों से मुलाकात और प्रदर्शन का सिलसिला जारी है. खास बात यह है कि अब इस आंदोलन की कमान युवाओं ने संभाल ली है. आदिवासी युवा सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात लोगों तक पहुंचा रहे हैं.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में आदिवासी आंदोलन की कमान अब युवाओं के हाथ में है. युवा अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस सोशल मीडिया का उपयोग उन क्षेत्रों में भी किया जा रहा है, जहां एक समय मोबाइल तो दूर बिजली और टेलीफोन भी नहीं था. Tribal youth takes command of movement

social media becomes weapon
आदिवासी युवा सोशल मीडिया

सोशल मीडिया के जरिए देश विदेश तक आंदोलन की गूंज: नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आदिवासी युवा अब सोशल मीडिया के माध्यम से सिर्फ बस्तर संभाग या प्रदेश ही नहीं बल्कि देश विदेश में अपनी बात पहुंचा रहे हैं. आदिवासियों की जल जंगल जमीन की लड़ाई हो या फिर आरक्षण का मुद्दा, इन सभी विषयों को लेकर आदिवासी युवा सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. युवाओं को अच्छा रिस्पांस भी मिल रहा है.

आदिवासी आरक्षण कटौती मुद्दा भी उछला: हाल ही में हाईकोर्ट ने 58% आरक्षण देने के मामले को खारिज कर दिया. आदिवासी युवाओं ने आरक्षण की मांग को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. चंद घंटों में ही आदिवासी युवाओं ने यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल किया. इसके बाद सरकार भी सक्रिय हुई और अब इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की बात कह रही है. सरकार और आदिवासी समाज के बीच बैठकों का दौर भी शुरू हुआ है.

सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग ने संभाली कमान: आदिवासी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं. इसमें सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. आदिवासियों के आंदोलन की कमान युवाओं ने संभाल ली है. वह सोशल मीडिया के माध्यम से आदिवासियों के आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं आदिवासियों के इस युवा विंग का नाम छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग है. इसमें काफी संख्या में आदिवासी समाज के युवा जुड़े हुए हैं.

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व्हाट्सएप ग्रुप और ट्वीटर पर सक्रिय हैं युवा: छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग कांकेर के जिला अध्यक्ष योगेश नरेटी ने बताया कि ''बड़े पैमाने पर तो नहीं लेकिन छोटे पैमाने पर जरूर कुछ व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं. ट्विटर पर भी युवाओं के अकाउंट हैं. उसके जरिए भी वे आदिवासी आंदोलन को लेकर अपनी बात लोगों तक पहुंचाते हैं. हमारे छात्रों का भी ग्रुप है. ये छात्र आंदोलन से संबंधित जानकारी व्हाट्सएप ग्रुप और ट्विटर अकाउंट सहित अन्य सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं.

आंदोलन के लिए कम समय में जुटते हैं ज्यादा लोग: छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग कांकेर के जिला अध्यक्ष योगेश नरेटी ने बताया कि ''हसदेव और रायपुर में क्या चल रहा है. दूरस्थ अंचलों तक भी यह बातें, सोशल मीडिया के माध्यम से आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं. हाल ही में 32% आरक्षण और स्थानीय भर्ती को लेकर जो आंदोलन किया गया, इसमें सोशल मीडिया का बहुत बड़ा सहयोग रहा है. कुछ ही समय में लोग अपने घरों से बाहर निकल कर इस आंदोलन में शामिल हुए. हमारे पास बहुत कम समय था, बावजूद इसके हम इतनी भीड़ जुटा सके. अभी हम लोग अपने आंदोलन के छोटे छोटे वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं. अलग से उसमें एडिट या फिर बैकग्राउंड म्युजिक इफेक्ट के साथ वीडियो नहीं बना रहे हैं.''

बस्तर के अंदरुनी इलाकों तक पहुंच: योगेश नरेटी ने बताया कि ''भले ही बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में इंटरनेट ना हो, लेकिन गांव की सड़क तक इंटरनेट जरूर है. सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक बात पहुंचाई जाती है. फिर वहां से दूसरे लोग अंदर ग्रामीण क्षेत्रों में बात को पहुंचाते हैं.''

जूम और गूगल मीट का भी ले रहे सहारा: छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग के कार्यकारिणी सदस्य एवं सोशल मीडिया प्रभारी पूरन कश्यप का कहना है कि ''अब सोशल मीडिया के जरिए आंदोलन को बढ़ाने में काफी मदद मिल रही है. आसानी से एक जगह से दूसरी जगह अपनी बात पहुंचा सकते हैं. आंदोलन के वीडियो फोटो सहित अन्य जानकारी कुछ ही मिनटों में बस्तर से लेकर रायपुर तक पहुंचाई जा सकती है. यहां तक की अब इन युवाओं के द्वारा जूम और गूगल मीट के माध्यम से भी बैठक की जा रही है. इन बैठकों में आंदोलन सहित समाज से संबंधित अन्य गतिविधियों की रूपरेखा तैयार की जाती है. फिर उसे लोगों तक पहुंचाया जा सकता है.''

इंटरनेट के लिए पहाड़ों पर चढ़ते हैं आदिवासी युवा: पूरन कश्यप का कहना है कि ''पहले लोगों तक बात पहुंचाने में काफी दिक्कतें होती थी. अब सोशल मीडिया की वजह से सब आसान हो गया है.'' हालांकि उन्होंने इस दौरान बस्तर के लगभग 50% जगहों पर इंटरनेट ना होने की भी बात कही. कश्यप का कहना है कि ''बस्तर के अंदरूनी इलाकों में इंटरनेट ना होने की वजह से सोशल मीडिया के इस्तेमाल में थोड़ी परेशानी जरूर होती है. कई बार तो इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए पहाड़ों पर भी चढ़ना होता है और वहां से वह अपना संदेश सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते हैं.''

Last Updated :Oct 13, 2022, 6:16 PM IST
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