12 घंटे के लिए खाली हो जाता है यह गांव, कारण जानकर हैरत में पड़ जायेंगे आप

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Published : May 11, 2022, 9:41 AM IST

Updated : May 11, 2022, 6:58 PM IST

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बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा अनुमंडल के नौरंगिया गांव (Naurangiya village of Bagaha) के लोग एक दिन के लिए पूरा गांव खाली कर देते हैं. बैसाख की नवमी तिथि को 12 घंटे के लिए गांव के बाहर जंगल चले जाते हैं. लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से देवी प्रकोप से निजात मिलती है. पढ़ें पूरी खबर

बगहाः बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा के नौरंगिया गांव में वर्षों पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है. यहां बैसाख के नवमी तिथि को गांव के लोग अपना-अपना घर छोड़कर 12 घंटे के लिए गांव से बाहर जंगल में (Villagers Went to forest for one day in Bagaha) चले जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि ऐसा देवी को प्रसन्‍न करने के लिए किया जाता है. इस दौरान गांव में सन्‍नाटा पसरा रहता है. इसका लोगों की प्राचीन मान्यता है. यहां के लोगों का कहना है कि ऐसा करने से देवी प्रकोप से निजात मिलती है.

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''यह पुरानी प्रथा है. जो वर्षों से चली आ रही है. आज अगर हम लोग इस प्रथा को नहीं मानेंगे और घर में ही रहेंगे तो घर में आग लग जाएगी. एक दो नहीं बहुत सारे घरों में एक साथ आग लग जाती है. इसलिए हर साल हमलोग यह प्रथा मनाते है. जो हमारे पूर्वजों ने बताया है, उसे हम लोग ईमानदारी से निभा रहे हैं. '' - कौशल्या देवी, स्थानीय निवासी, नौरंगिया गांव

मवेशियों को भी ले जाते हैं साथ: थारू समुदाय बाहुल्य इस गांव के लोगों में आज भी यह अनोखी प्रथा जीवंत है. इस प्रथा के चलते नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी गांव में नहीं छोड़ते हैं. उन्हें अपने साथ ले जाते हैं. सभी लोग जंगल में जाकर पूरा दिन बिताते हैं. आधुनिकता के इस दौर में इस गांव के लोग अंधविश्वास की दुनिया में जी रहे हैं. गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह देवी प्रकोप से निजात पाना है. कहा जाता है कि वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी. गांव में अक्सर आगलगी की घटना घटती थी. चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का हरदम प्रकोप रहता था. हर साल प्राकृतिक आपदा से गांव में तबाही का मंजर नजर आता था. लिहाजा, इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना कर ऐसा करने का फरमान सुनाया था.

''इस प्रथा के पीछे की वजह देवी प्रकोप से निजात पाना है. कहा जाता है कि वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी. गांव में अक्सर आगलगी की घटना घटती थी. चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का हरदम प्रकोप रहता था. हर साल प्राकृतिक आपदा से गांव में तबाही का मंजर नजर आता था. इसलिए, इससे मुक्ति पाने के लिए यहां एक साधु ने साधना कर ऐसा करने का फरमान सुनाया था.'' - महेश्वर काजी, स्थानीय निवासी, नौरंगिया गांव

एक कहानी यह भी: दूसरी तरफ गांव के कुछ लोगों का कहना है कि यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवा मां आई थीं. मां ने बाबा को गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया कि नवमी को गांव खाली कर पूरा सभी लोग वनवास को चले जायें. इसके बाद से ही यह परंपरा शुरू हुई. यह आज भी बदस्तूर कायम है.

''यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवा मां आई थीं. मां ने बाबा को गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया कि नवमी को गांव खाली कर पूरा सभी लोग वनवास को चले जायें. इसके बाद से ही यह परंपरा शुरू हुई. यह आज भी बदस्तूर कायम है.'' - जीतन भगत, पुजारी, नौरंगिया गांव

यहां ठहरते हैं ग्रामीण: नवमी के दिन लोग घर खाली कर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में चले जाते हैं और पूरा दिन वहीं बिताते हैं. यहां पर ग्रामीण मां दुर्गा की पूजा करते हैं. इसके बाद 12 घंटे गुजरने के बाद सभी घर लौट आते हैं. हैरानी की बात तो ये है कि आज भी इस मान्यता को लोग उत्सव की तरह मनाते हैं.

घर में नहीं लगाते ताला, उत्सव सा माहौल: इस पूरे मामले के बारे में ग्रामीण ने बताया कि इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते हैं. घर खुला रहता है. इस दौरान चोरी भी नहीं होती है. लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परम्परा किसी उत्सव से कम नहीं होती है. इस दिन जंगल में पिकनिक जैसे माहौल रहता है. मेला लगता है. वहीं, पूजा करने के बाद रात को सब वापस आते हैं. इस गांव की इस मान्यता को देखने के बाद यह कहना गलत ना होगा कि अधुनिकता के इस दौर में मान्यता से परे कुछ भी नहीं. ईटीवी भारत ऐसे किसी भी अंधविश्वास का कोई समर्थन नहीं करता है.

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Last Updated :May 11, 2022, 6:58 PM IST
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