चंपारण का भितिहरवा आश्रम, जहां से बापू ने शुरू किया था पहला सत्याग्रह

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Published : Oct 2, 2022, 8:35 AM IST

चंपारण का भितिहरवा आश्रम.

16 नवंबर 1917 को बापू ने चंपारण के भितिहरवा (Mahatma Gandhi Start First Satyagraha) में एक विद्यालय और एक कुटिया बनायी. ब्रिटिश अधिकारियों ने साजिश कर बापू के कोठी में आग लगवा कर मारने की कोशिश भी की लेकिन नाकामयाब रहे. पढ़ें पूरी खबर.

प. चंपारण : वैसे तो राष्ट्रपिता के कदम जिन-जिन स्थानों पर पड़े वह धन्य हो गये. पर कुछ जगहें ऐसी है जिसका नाम लेने से ही कई यादें सामने आ जाती हैं. ऐसा ही एक नाम है पश्चिम चंपारण. महात्मा गांधी ने न सिर्फ चंपारण की धरती से स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका था, बल्कि रोजगारपरक शिक्षा के लिए देश में पहले बुनियादी विद्यालय की स्थापना भी चंपारण में ही की थी. जिला मुख्यालय से करीब नौ से दस किलोमीटर दूर भितिहरवा आश्रम (Mahatma Gandhi Bhitiharwa Ashram) के वृंदावन में आज भी तालिम के साथ बच्चों को हुनर भी सिखाया जाता है.

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बच्चे यहां प्रवेश करते ही अपने अंदर एक अलग प्रकार का अलख देखते हैं. क्योंकि अंदर प्रवेश करते ही यहां गांधी जी का एक बेहत ही प्रभावित करने वाला संदेश लिखा दिखाई पड़ता है. इसमें अंकित है 'यदि युवक अच्छे तौर-तरीके नहीं सीखते हैं, तो उनकी सारी पढ़ाई बेकार है.' इसी के नीचे एक और संदेश लिखा है 'यदि आप न्याय चाहते हैं तो आप को भी दूसरों के प्रति न्याय बरतना होगा.'

स्कूल का कराया था निर्माण: 1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने आश्रम और स्कूल का निर्माण भी करवाया था. भितिहरवा के वृंदावन में आज भी खपरैल कुटिया है, स्कूल की घंटी, वो टेबल जिसे बापू ने अपने हाथों से बनाया था. कुंआ...जिसके पानी से कभी बापू अपनी प्यास बुझाते थे. कस्तूबरा गांधी की चक्की, कुटिया के अंदर 'बापू' की याद दिलाती है.

आइये अब आपको इतिहास के पन्नों में ले चलते हैं: 27 अप्रैल1917 का दिन था...जब बापू राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांव में पहुंचे. भितिहरवा की दूरी नरकटियागंज से 16 किलोमीटर है. बेतिया से 54 किलोमीटर है. बापू यहां देवनंद सिंह, बीरबली जी के साथ पहुंचे. बताया जाता है कि बापू सबसे पहले पटना पहुंचे थे. जहां वे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बंगले में रुके थे. वहां से आकर मोतिहारी में रुके. मोतिहारी से बेतिया आए. बेतिया के बाद उनका अगला प्रवास कुमार बाग में हुआ. कुमार बाग से हाथी पर बैठकर बापू श्रीरामपुर भितिहरवा पहुंचे थे. गांव के मठ के बाबा रामनारायण दास द्वारा बापू को आश्रम के लिए जमीन उपलब्ध करायी गई.16 नवंबर 1917 को बापू ने यहां एक विद्यालय और एक कुटिया बनायी.

बापू की हत्या की साजिश: बापू का यहां रहना ब्रिटिश अधिकारियों को बिल्कुल गवारा नहीं था. एक दिन बेलवा कोठी के एसी एमन साहब ने कोठी में आग लगवा दी. उनकी साजिश बापू की सोते हुए हत्या करवा देने की थी. पर संयोग था कि बापू उस दिन पास के गांव में थे, इसलिए बच गये. बाद में सब लोगों ने मिलकर दुबारा पक्का कमरा बनाया, जिसकी छत खपरैल है. इस कमरे के निर्माण में बापू ने अपने हाथों से श्रमदान किया.

देश में बापू के दो प्रमुख आश्रम: फिलहाल, देश में बापू के दो प्रमुख आश्रम हैं, अहमदाबाद में साबरमती और महाराष्ट्र में वर्धा.लेकिन भितिहरवा बापू की जिंदगी से जुड़े भावनात्मक और सामाजिक जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. पश्चिमी चंपारण से जितेन्द्र कुमार की रिपोर्ट.

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